फिल्म के दृश्य से ली गई तस्वीर
मुंबई:
फिल्म 'चेहरे : ए मॉर्डन डे क्लासिक' एक मर्डर मिस्ट्री है, जिसका बैकड्रॉप है, 50 के दशक के शुरुआती दौर का बॉलीवुड। कहानी 1952 में एक अभिनेत्री तराना और उसकी छोटी बहन अमानत के इर्द-गिर्द घूमती है। मनीषा कोइराला इस फिल्म में अभिनेत्री और जैकी श्रॉफ़ फिल्म निर्माता की भूमिका में हैं। दिव्या दत्ता का किरदार है तराना यानी मनीषा की छोटी बहन का। गुलशन ग्रोवर एक हीरोइन के आशिक की भूमिका में हैं। ऋषिता भट्ट ने भूमिका निभाई है, एक जूनियर आर्टिस्ट की और आर्य बब्बर फिल्म में मर्डर की जांच करने वाले अधिकारी।
फिल्म 'चेहरे' देखने से पहले जब मैं इसके निर्देशक रोहित कौशिक से मिला था तब उन्होंने बताया था कि वह 40-50 के दशक की कई अभिनेत्रियों के साथ जुड़े हैं और उनके साथ कुछ काम भी किया है और जिस तरह उन अभिनेत्रियों ने उस दौर की कहानी का ज़िक्र किया है उसी से प्रेरित होकर रोहित ने यह फिल्म बनाई है।
फिल्म में साइलेंट सिनेमा से बोलते सिनेमा की और बढ़ती फिल्मों में अभिनेत्रियों को किस तरह की तकलीफें होती थीं, किस तरह के रिलेशनशिप्स होते थे या उस दौर में लालच, अपनी पोजीशन को बरक़रार रखने की कोशिश, यह सब फिल्म में दिखाया गया है।
मगर इन सबके बावजूद फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले सुस्त और कमज़ोर है। हालांकि इस मर्डर मिस्ट्री में आप कातिल और कत्ल की वजह का अंदाजा अंत तक नहीं लगा पाएंगे मगर फिल्म को मजेदार बनाने के लिए यह काफी नहीं है।
मैं इस फिल्म को थोड़े ज्यादा नंबर दे रहा हूं क्योंकि निर्देशक रोहित कौशिक ने उस दौर के ड्रामे और एक्टिंग को ठीक से दिखाने की कोशिश की है। फ़िल्म के लिए मेरी रेटिंग है, 2 स्टार।
फिल्म 'चेहरे' देखने से पहले जब मैं इसके निर्देशक रोहित कौशिक से मिला था तब उन्होंने बताया था कि वह 40-50 के दशक की कई अभिनेत्रियों के साथ जुड़े हैं और उनके साथ कुछ काम भी किया है और जिस तरह उन अभिनेत्रियों ने उस दौर की कहानी का ज़िक्र किया है उसी से प्रेरित होकर रोहित ने यह फिल्म बनाई है।
फिल्म में साइलेंट सिनेमा से बोलते सिनेमा की और बढ़ती फिल्मों में अभिनेत्रियों को किस तरह की तकलीफें होती थीं, किस तरह के रिलेशनशिप्स होते थे या उस दौर में लालच, अपनी पोजीशन को बरक़रार रखने की कोशिश, यह सब फिल्म में दिखाया गया है।
मगर इन सबके बावजूद फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले सुस्त और कमज़ोर है। हालांकि इस मर्डर मिस्ट्री में आप कातिल और कत्ल की वजह का अंदाजा अंत तक नहीं लगा पाएंगे मगर फिल्म को मजेदार बनाने के लिए यह काफी नहीं है।
मैं इस फिल्म को थोड़े ज्यादा नंबर दे रहा हूं क्योंकि निर्देशक रोहित कौशिक ने उस दौर के ड्रामे और एक्टिंग को ठीक से दिखाने की कोशिश की है। फ़िल्म के लिए मेरी रेटिंग है, 2 स्टार।
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