प्रतीकात्मक तस्वीर...
अहमदाबाद:
केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने पटेल आरक्षण आंदोलन पर बनी गुजराती फिल्म को हरी झंडी देने से इंकार कर दिया है। बोर्ड ने 'सलगतो सवाल अनामत' को यह कहते हुए प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया कि वर्तमान स्वरूप में अगर यह फिल्म प्रदर्शित होती है तो इससे कानून और व्यवस्था से जुड़ी समस्या और बिगड़ सकती है।
सेंसर बोर्ड को फिल्म के संवाद के साथ भी दिक्कत है और उसका मानना है कि संवाद भारत के संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर के खिलाफ हैं। फिल्म को 17 जून को रिलीज किया जाना था।
क्षेत्रीय फिल्मों से जुड़े मामलों को देखने वाले सीबीएफसी कार्यालय अधीक्षक केडी कांबले ने कहा, 'फिल्म को प्रमाण पत्र देने से इंकार किया गया है।' कांबले ने कहा, 'ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि अगर इसके वर्तमान स्वरूप में इसे रिलीज किया गया तो इससे कानून और व्यवस्था से जुड़ी समस्या और बिगड़ सकती है, क्योंकि फिल्म आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के जीवन पर आधारित है, जो जेल में हैं और मामला विचाराधीन है। साथ ही फिल्म में डॉक्टर अंबेडकर और आरक्षण नीति के खिलाफ संवाद हैं।' निर्माताओं ने अब अपना आवेदन सीबीएफसी की पुनरीक्षण समिति को भेजा है और अब वे उसकी मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
निर्देशक राजेश गोहिल ने कहा, 'हम लोगों को हाल ही में सीबीएफसी की तरफ से जवाब मिला है, जिसमें उसने कहा है कि फिल्म हार्दिक पटेल पर आधारित है और वह जेल में हैं और कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी हुई दिक्कत के कारण उनके खिलाफ मामला चल रहा है।'
उन्होंने साथ ही कहा, 'हमारी फिल्म हार्दिक पटेल के जीवन पर आधारित नहीं है। हम लोगों की फिल्म पाटीदार आरक्षण आंदोलन पर आधारित है, हार्दिक पटेल पर नहीं। हम लोगों ने यह बात कही है।' फिल्म में अहम भूमिका निभाने वाले मोबिन खान ने कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि सेंसर बोर्ड को गुजराती भाषा की भी बहुत कम जानकारी है, क्योंकि उसने कहा है कि फिल्म में बोले गए संवाद बाबा साहब अंबेडकर के खिलाफ है, लेकिन बात ऐसी नहीं है। अगर ठीक से सुना जाए तो सिर्फ एक बार उनका जिक्र है, जब एक पात्र कहता है कि अंबेडकर ने भारतीय संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की।' निर्माताओं ने कहा कि पिछले वर्ष अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में पाटीदार आंदोलन के शुरू होने के एक माह के भीतर ही उन्होंने फिल्म निर्माण शुरू कर दिया था और दो माह पहले प्रमाणन के लिए इसे सेंसर बोर्ड को भेजा था।
गुजराती फिल्म की कहानी दीपक पटेल पर केन्द्रित है, जिसे उसके पिता की मौत के बाद अपनी शिक्षा और नौकरी के लिए संघर्ष करते हुए दिखाया गया है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
सेंसर बोर्ड को फिल्म के संवाद के साथ भी दिक्कत है और उसका मानना है कि संवाद भारत के संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर के खिलाफ हैं। फिल्म को 17 जून को रिलीज किया जाना था।
क्षेत्रीय फिल्मों से जुड़े मामलों को देखने वाले सीबीएफसी कार्यालय अधीक्षक केडी कांबले ने कहा, 'फिल्म को प्रमाण पत्र देने से इंकार किया गया है।' कांबले ने कहा, 'ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि अगर इसके वर्तमान स्वरूप में इसे रिलीज किया गया तो इससे कानून और व्यवस्था से जुड़ी समस्या और बिगड़ सकती है, क्योंकि फिल्म आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के जीवन पर आधारित है, जो जेल में हैं और मामला विचाराधीन है। साथ ही फिल्म में डॉक्टर अंबेडकर और आरक्षण नीति के खिलाफ संवाद हैं।' निर्माताओं ने अब अपना आवेदन सीबीएफसी की पुनरीक्षण समिति को भेजा है और अब वे उसकी मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
निर्देशक राजेश गोहिल ने कहा, 'हम लोगों को हाल ही में सीबीएफसी की तरफ से जवाब मिला है, जिसमें उसने कहा है कि फिल्म हार्दिक पटेल पर आधारित है और वह जेल में हैं और कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी हुई दिक्कत के कारण उनके खिलाफ मामला चल रहा है।'
उन्होंने साथ ही कहा, 'हमारी फिल्म हार्दिक पटेल के जीवन पर आधारित नहीं है। हम लोगों की फिल्म पाटीदार आरक्षण आंदोलन पर आधारित है, हार्दिक पटेल पर नहीं। हम लोगों ने यह बात कही है।' फिल्म में अहम भूमिका निभाने वाले मोबिन खान ने कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि सेंसर बोर्ड को गुजराती भाषा की भी बहुत कम जानकारी है, क्योंकि उसने कहा है कि फिल्म में बोले गए संवाद बाबा साहब अंबेडकर के खिलाफ है, लेकिन बात ऐसी नहीं है। अगर ठीक से सुना जाए तो सिर्फ एक बार उनका जिक्र है, जब एक पात्र कहता है कि अंबेडकर ने भारतीय संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की।' निर्माताओं ने कहा कि पिछले वर्ष अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में पाटीदार आंदोलन के शुरू होने के एक माह के भीतर ही उन्होंने फिल्म निर्माण शुरू कर दिया था और दो माह पहले प्रमाणन के लिए इसे सेंसर बोर्ड को भेजा था।
गुजराती फिल्म की कहानी दीपक पटेल पर केन्द्रित है, जिसे उसके पिता की मौत के बाद अपनी शिक्षा और नौकरी के लिए संघर्ष करते हुए दिखाया गया है।
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