सरकार ने सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन का इस्तीफ़ा मंजूर कर लिया है। गुरमीत राम रहीम की फ़िल्म मैसेंजर ऑफ़ गॉड को ट्राइब्युनल के ग्रीन सिगनल दिए जाने से सेंसर बोर्ड में तूफ़ान मच गया। सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन के अपने पद से इस्तीफ़े के बाद बोर्ड के कुल 10 सदस्यों ने लीला का समर्थन करते हुए अपना सामूहिक इस्तीफ़ा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भेजा है।
पद छोड़ने वाले सदस्यों में इरा भास्कर, राजीव मसंद, पंकज शर्मा, लौरा प्रभु, ममंग दाय, टीजी त्यागराजन, शुभ्रा गुप्ता, अरुंधती नाग, शेखरबाबू कंचरेला और शाजी करुण शामिल हैं।
वहीं अंजुम राजाबली और एमके रैना जैसे सदस्य कई महीने पहले ही सेंसर बोर्ड में दखल को लेकर आईबी को अपना इस्तीफ़ा भेज चुके हैं।
हालांकि सूचना प्रसारण राज्यमंत्री ने दखल देने के आरोपों को खारिज करते हुए सबूत की मांग की है। वहीं केंद्रीय आईबी मिनिस्टर अरुण जेटली ने पीटीआई को दिए अपने बयान में कहा है कि फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन की जहां तक बात है एनडीए सरकार इससे एक हाथ की दूरी बनाकर रखती है। यूपीए सरकार ने सेंसर बोर्ड का राजनीतिकरण किया, जो हो रहा है वो दुर्भाग्यपुर्ण है।'
दरअसल, पूरा सेंसर बोर्ड और उसके सदस्यों को यूपीए सरकार ने नियुक्त किया था। नई सरकार भी नया बोर्ड और नया अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर पाई। कुछ को सेवा विस्तार दिया गया और कहा गया कि जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं होती वह काम करते रहें।
आरोप यह भी है कि अतिरिक्त प्रभार वाले सीईओ के ज़रिये मंत्रालय द्वारा सीबीएफ़सी के कामकाज में हस्तक्षेप सामने आते हैं।
इससे पहले सात दिसंबर 2013 को आईबी मिनिस्ट्री को भेजे गए अपने पत्र में 15 बोर्ड के सदस्यों ने कई गंभीर सवाल उठाते हुए
मांग की थी कि सेंसर बोर्ड को एक स्वतंत्र संस्था की तरह काम करने दिया जाए।
सीबीएफसी में भ्रष्टाचार जैसे आरोपों के बीच सेंसर बोर्ड के 25 बोर्ड सदस्यों में 10 सदस्यों और अध्यक्ष के इस्तीफ़े के बाद अब सरकार पर नए बोर्ड के गठन का दबाव है।
इस्तीफ़ों की झड़ी के बाद सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वो जल्द से जल्द नया बोर्ड बनाए ताकि सेंसर बोर्ड की वजह से फिल्मों की रिलीज़ में किसी तरह की देरी न हो।
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