कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ( फाइल फोटो )
नई दिल्ली:
घोटालों के आरोपों के तले दबी कांग्रेस और यूपीए के लिए क्या कथित 2जी घोटाले पर आया फैसला संजीवनी साबित होगा. क्योंकि इस मामले को लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और पूरी बीजेपी ने रैलियों में खूब भुनाया था. उस चुनाव में बीजेपी की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर '2जी और जीजाजी' घोटाले को लेकर तंज कसे थे. लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले में ए. राजा, कनिमोझी सहित 19 आरोपियों को बरी कर दिया है. लेकिन इस फैसले को अगर राजनीतिक नजरिए से देखें तो इसके कई मायने निकालते हैं.
5 खास बातें
- लेकिन इस फैसले के बाद डीएमके और मजबूत होगी क्योंकि उसके ऊपर घोटाले का दाग हटा है ऐसे में कांग्रेस को वह कितना तवज्जो देगी यह देखने वाली बात होगी क्योंकि कुछ महीने पहले ही पीएम मोदी ने डीएमके प्रमुख करुणानिधि से भी मुलाकात की है. हालांकि अब कनिमोझी भी इस फैसले के बाद डीमएके के अंदर मजबूत होंगी. वहीं माना जा रहा है कि जयललिता के न रहने से ऐआईएडीएमके और कमजोर होगी. इसका फायदा यूपीए की घटक डीएमके उठा सकती है.
- बीजेपी हर चुनाव में 2जी घोटाले को मुख्य हथियार बनाती रही है लेकिन अब मामला उल्टा हो गया है. इस फैसले के बाद कांग्रेस संसद में भी आक्रमक है और बीजेपी नेताओं की ओर से अभी तक इस फैसले को लेकर कोई मजबूत तर्क नहीं दिया गया है. कुल मिलाकर कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी अभी तक भ्रष्टाचार के मुद्दे को ही हथियार बनाती रही है लेकिन अब इसकी धार इस फैसले के बाद कुंद होती दिखाई दे रही है.
- भ्रष्टाचार की वजह से अभी तक कई दल यूपीए में जुड़ने से कन्नी काटते थे. लेकिन इस फैसले के बाद यूपीए में कुछ और दल भी शामिल हो सकते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर सपा, बीएसपी और कांग्रेस यूपी में हाथ मिला लेते हैं तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी. वहीं 2008 में कांग्रेस से अलग हुए वामदल भी हाथ मिला सकते हैं लेकिन चुनौती ये होगी कि ममता बनर्जी और वामदलों को एक साथ कैसे रखा जाए.
- लेकिन इस फैसले के बाद इतना तो तय है कि कांग्रेस को थोड़ी तो नैतिक ताकत मिली है ताकि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी बात मजबूती से रख सके. हालांकि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय हाईकोर्ट में अपील करने जा रही हैं और अभी 2जी का पर्दा अभी पूरी तरह से गिरा नहीं है.
- इस फैसले से पीएम मोदी के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलेरेंस की नीति को बड़ा झटका लगा है. सवाल यह भी है कि 3 साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद भी जांच एजेंसिया अभी तक किसी भी मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई हैं.