क्या राष्ट्रपति चुनाव पर नीतीश कुमार का रुख बिहार में महागठबंधन के अंत की शुरुआत है...?

नीतीश और लालू में लगातार बढ़ती दूरियों के बीच जानते हैं वे 10 कारण, जिनसे स्पष्ट है कि अगस्त, 2015 में बना यह गठजोड़ अब ज़्यादा वक्त तक चलने वाला नहीं है...

क्या राष्ट्रपति चुनाव पर नीतीश कुमार का रुख बिहार में महागठबंधन के अंत की शुरुआत है...?

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रुख ने राज्य सरकार में सहयोगी आरजेडी के प्रमुख लालू यादव को नाखुश कर दिया है...

पटना: राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलग रुख की वजह से क्या राज्य में उनके सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस उनकी सरकार को अस्थिर कर देंगे - पत्रकारों के इस सवाल को खारिज करते हुए झुंझलाए नज़र आ रहे आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा, "सपोर्ट (समर्थन) तो दे ही दिए हैं..." लेकिन यह बात सभी जानते हैं कि नीतीश के इस कदम ने लालू और राज्य में सत्तासीन गठबंधन में जूनियर पार्टनर कांग्रेस को नाराज़ तो कर ही दिया है, और नीतीश का उन्हें मनाने का भी कोई इरादा नहीं है... आइए, नीतीश और लालू में लगातार बढ़ती दूरियों के बीच जानते हैं वे 10 कारण, जिनसे स्पष्ट है कि अगस्त, 2015 में बना यह गठजोड़ अब ज़्यादा वक्त तक चलने वाला नहीं है, लेकिन यह फैसला जब भी करेंगे, नीतीश कुमार ही करेंगे, क्योंकि लालू यह निर्णय नहीं करने वाले, क्योंकि वह जानते हैं कि अगर वह समर्थन वापस ले लेंगे, तो 122 के बहुमत के आंकड़े को छूना उनके लिए मुमकिन नहीं, और फिर वह सत्ता से दूर हो जाएंगे...

पढ़िए, वे 10 कारण, जिनसे स्पष्ट है, महागठबंधन टूट सकता है...

  1. नीतीश कुमार नहीं चाहते कि घोटालों से घिरे लालू प्रसाद यादव तथा उनके परिवार से उनका कोई जुड़ाव नज़र आए, और इसीलिए लालू और उनके परिवार के खिलाफ जारी मौजूदा जांच को लेकर नीतीश चुप्पी साधे रहे हैं, जबकि कांग्रेस, वामदलों और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों ने इसे बदले की कार्रवाई करार दिया है... और यह चुप्पी इसलिए भी है, क्योंकि वह जानते हैं कि लालू और उनके परिवार की ये संपत्तियां गलत तरीकों से बनाई गई थीं...

  2. नीतीश कुमार अपने जूनियर मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा उनके भाई तेजप्रताप यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर भी पूरी तरह सजग हैं, और वह जानते हैं कि उनके नाम दर्ज संपत्तियों के जब्त होने पर ही विपक्ष उनके इस्तीफों की मांग कर रहा है, तो चार्जशीट किए जाने पर वह कितना हंगामा करेगा... दूसरी ओर, लालू उस स्थिति में अपने बेटों के लिए ज़मानत चाहेंगे, और चाहेंगे कि वे पद पर बने रहें, जैसे 2000-2001 में राबड़ी देवी चार्जशीट हो जाने के बावजूद ज़मानत मिल जाने की वजह से पद पर बनी रही थीं...

  3. चाहे राष्ट्रपति चुनाव का मामला हो, या नोटबंदी का, नीतीश कुमार हर बार अपनी राजनैतिक समझ से ही फैसला करते रहे हैं, जिससे लालू प्रसाद यादव नाखुश हुए...

  4. नीतीश कुमार कम से कम रक्षा तथा विदेश संबंधी मामलों में केंद्र सरकार की आलोचना करने में यकीन नहीं करते, जबकि लालू प्रसाद यादव हर तरह के हर मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोलने में यकीन रखते हैं...

  5. महागठबंधन सलामत है, लेकिन इसके बावजूद सच्चाई यह है पिछले 17 महीनों के दौरान डीएम, एसपी और एसडीपीओ पदों पर बड़ी संख्या में स्थानांतरण कभी नहीं हुए, और इसका परिणाम यह है कि नवंबर, 2005 में नीतीश कुमार के पहली बार सत्ता में विराजने के बाद यह पहला मौका है, जब 100 से भी ज़्यादा अधिकारी ऐसे हैं, जो अपने तीन साल के निर्धारित कार्यकाल से कहीं ज़्यादा समय मौजूदा पद पर बिता चुके हैं... इन फैसलों में देरी की वजह लालू यादव का ज़िद्दी रवैया है, जो अपने पसंदीदा अधिकारियों को अहम पदों पर बनाए रखना चाहते हैं, जबकि उनमें से अधिकतर विवादित अधिकारी हैं, और नीतीश ऐसा होने नहीं देना चाहते...

  6. जब से महागठबंधन सरकार सत्तासीन हुई है, तेजस्वी और तेजप्रताप के अंतर्गत आने वाले सभी आठ विभागों को लालू प्रसाद यादव ही रिमोट कंट्रोल से संचालित कर रहे हैं... बेशक, नीतीश कुमार कुछ कहते नहीं हैं, लेकिन स्वास्थ्य जैसे अहम विभागों का कामकाज चिंता का विषय बन चुका है, क्योंकि बहुत-से मानकों पर बिहार फिर नीचे खिसकता नज़र आने लगा है...

  7. नीतीश कुमार के लिए यह भी अपमानजनक है कि उनके ड्रीम प्रोजेक्ट कहलाने वाली 'लोहिया पथ' और गंगा ड्राइव वे जैसी परियोजनाओं में भी जानबूझकर देरी की जा रही है, और कुछ हिस्सों के लिए गलत इरादों से दोबारा टेंडर मंगाए जा रहे हैं... और इस विभाग के मंत्री हैं - तेजस्वी यादव...

  8. शराबबंदी के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की सोच एक जैसी नहीं है... लालू विदेशी शराब पर पाबंदी नहीं चाहते...

  9. हाल ही में नीतीश ने ग्रांड ट्रंक रोड पर हुई गड़बड़ियों की जांच आईजी (पटना) नय्यर हसनैन खान से करवाने के आदेश दिए थे, और उन्होंने इसी साल मार्च में दाखिल अपनी रिपोर्ट में कुछ एसडीपीओ तथा खनन व वाणिज्य कर विभाग के सभी अधिकारियों को हटाए जाने की सिफारिश की थी... लेकिन अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है... गठबंधन सरकार में खनन तथा वित्त विभाग आरजेडी के मंत्रियों के अंतर्गत काम कर रहे हैं... रेत माफिया भी बिहार में काफी सक्रिय है... हाईकोर्ट के आदेश के बाद पटना के पूर्व डीआईजी से कराई गई जांच में बड़े स्तर पर अनियमितताएं सामने आई थी, और सुभाष यादव, राधाचरण सेठ और अरुण यादव जैसे सभी संदिग्ध या तो आरजेडी के विधायक हैं, या लालू के करीबी हैं... विडंबना यह है कि खनन विभाग भी आरजेडी के मंत्री के ही कब्ज़े में है...

  10. और अंत में, किसी भी मुद्दे पर, या यूं कहिए, हर मुद्दे पर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से भी पहले लालू की पार्टी आरजेडी ही नीतीश कुमार के प्रति हमलावर हो जाती है, और आरजेडी के प्रवक्ता रघुवंश प्रसाद सिंह व्यक्तिगत रूप से स्वीकार भी कर चुके हैं कि भले ही बयान वह देते हैं, लेकिन विचार हमेशा लालू प्रसाद यादव के ही होते हैं...