त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जश्न मनाते बीजेपी कार्यकर्ता
नई दिल्ली:
कर्नाटक चुनाव से पहले बीजेपी ने उत्तरपूर्व में शानदार प्रदर्शन किया है. सबसे बड़ी कामयाबी उसे त्रिपुरा में मिली जहां उसने 25 साल पुरानी सीपीएम की सरकार को सत्ता से हटा दिया है्. यहां बीजेपी और आईपीएफटी गठबंधन को 50 प्रतिशत से अधिक वोट के साथ 43 सीटों पर जीत हासिल की है जिसमें से बीजेपी ने अकेले 35 सीटों पर कामयाबी हासिल की है.
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के 5 हीरो
- त्रिपुरा में बीजेपी की शानदार जीत दिलाने में सुनील देवधर का अहम योगदान रहा है. वह त्रिपुरा में बीजेपी के प्रभारी हैं और चार साल पहले उन्होंने इस जीत के लिए मेहनत शुरू कर दी थी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 2014 में उन्हें त्रिपुरा की जिम्मेदारी सौंपी और इसके बाद उन्होंने अगरतला से आदिवासियों पर काम करना शुरू किया. इसका ही नतीजा है कि बीजेपी ने आदिवासी बहुल सीटों पर जीत हासिल की जो हमेशा से लेफ्ट का गढ़ रही हैं. देवधर महाराष्ट्र के रहने वाले और स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं. वह मेघालय के प्रचार रह चुके हैैं और 2013 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दाहोद से बीजेपी के चुनाव रणनीतिकार भी रहे.
- बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष 49 वर्षीय बिप्लब कुमार देव ने बनामिलपुर से चुनाव जीता है और उन्होंने सुनील देवधर के साथ मिलकर दो साल तक चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया. लेफ्ट के 25 साल के किले को ढहाने में भी बिप्लब कुमार का बहुत बड़ा हाथ है. बीजेपी के पोस्टर ब्वॉय ने घर-घर जाकर चलो पलटाई मुहिम चलाई और जिसका असर चुनावी नतीजों पर साफ तौर पर देखने को मिला. आरएसएस में सक्रिय बिप्लब कुमार को साल 2016 में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली. त्रिपुरा में बीजेपी की जीत के बाद वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं.
- कांग्रेस का दामन छोड़कर 2015 में बीजेपी का दामन थामने वाले हेमंत बिस्व सरमा का भी त्रिपुरा में पार्टी की जीत पर सहयोग किया. बीजेपी ने पूर्वोत्तर में सबसे पहली जीत असम में हासिल की थी और इसमें पार्टी की जीत का चेहरा हेमंत बिस्व सरमा थे और वह असम की सरकार में वित्त मंत्री हैं. इसके बाद उन्हें पूर्वोत्तर में चुनाव अभियान की कमान सौंपी गई. बीजेपी की नागालैंड और त्रिपुरा में शानदार प्रदर्शन का श्रेय दिया जाता है. हेमंत बिस्व 2006 तक पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के सबसे करीबियों में से एक थे. लेकिन दोनों 2010 में अलग हो गए और इसके बाद बिस्व ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया. यह अलायंस बीजेपी के नेतृत्व वाला गैर-कांग्रेसी गठबंधन हैं और बिस्व इसके संयोजक हैं.
- आरएसएस से बीजेपी में आए राम माधव का पार्टी की नागालैंड और त्रिपुरा की जीत में अहम योगदान है. पिछले कुछ सालों में वह पार्टी के रणनीतिकार के रूप में उभरे हैं. आंध्र के रहने वाले राम माधव ने 2014 में लोकसभा चुनाव से सक्रिय राजनीति में आए.
- त्रिपुरा में बीजेपी की जीत में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रचार अभियान ने भी अहम भूमिका निभाई. योगी आदित्यनाथ ने 12 और 13 फरवरी को त्रिपुरा में सात सभाएं और चार रोड शो किए. आपको बता दें कि त्रिपुरा में करीब 36 लाख की जनसंख्या में लगभग एक तिहाई यानी 12 लाख बंगाली नाथ संप्रदाय से जुड़े हैं. यह वही संप्रदाय है, जिसके महंत योगी आदित्यनाथ आते हैं. योगी ने त्रिपुरा के नाथ संप्रदाय को बताया कि वामपंथी सरकार उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रख रही है. त्रिपुरा की जीत में आरक्षण का वादा भी काम आया. योगी ने उन्हें बताया कि पूरे देश में नाथ संप्रदाय को ओबीसी के तहत आरक्षण मिलता है और त्रिपुरा में भाजपा सरकार बनने पर उन्हें भी आरक्षण दिया जाएगा.