
जानें गणेश जी की सवारी एक चूहा क्यों?
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क्रोंच एक विशाल चूहा था
मुनि ने क्रोंच को चूहे बनने का श्राप दिया
चूहे ने महर्षि पराशर की कुटिया कुतर डाली
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एक प्रचलित कथा के अनुसार एक आधा भगवान और आधा राक्षक प्रवृत्ति वाला नर था क्रोंच. एक बार भगवान इंद्र ने अपनी सभा में सभी मुनियों को बुलाया, इस सभा में क्रोंच भी शामिल हुआ. यहां गलती से क्रोंच का पैर एक मुनि के पैरों पर रख गया. इस बात से क्रोधित होकर उस मुनि ने क्रोंच को चूहे बनने का श्राप दिया. क्रोंच ने मुनि से क्षमा मांगी, लेकिन वह अपना श्राप वापस नहीं ले पाए, लेकिन उसने एक वरदान दिया कि आने वाले समय में वो भगवान शिव के पुत्र गणेश की सवारी बनेंगे.
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क्रोंच कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि एक विशाल चूहा था. जो मिनटों में पहाड़ों को कुतर डालता था. इसका आतंक इतना था कि वन में रहने वाले ऋषि-मुनियों को भी वह बहुत परेशान किया करता था. इसी तरह एक दिन उसने महर्षि पराशर की कुटिया भी तहस-नहस कर डाली. महर्षि पराशर भगवान गणेश का ध्यान कर रहे थे. कुटिया के बाहर मौजूद सभी ऋषियों ने उसे भगाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफल ना हो पाए.

इस समस्या के समाधान के लिए वो भगवान गणेश के पास गए और उन्हें सब कुछ बताया. गणेश जी ने चूहे को पकड़ने के लिए एक पाश (फंदा) फेंका. इस पाश ने चूहे का पाताल लोक तक पीछा किया और पकड़ कर गणेश जी के सामने ले आया.
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गणेश जी ने चूहे से इस तबाही की वजह जाननी चाही लेकिन गुस्से से भरे उस चूहे ने कोई जवाब ना दिया. इसीलिए गणेश जी ने आगे चूहे से बोला कि अब तुम मेरे आश्रय में हो इसलिए जो चाहो मुझ से मांग लो, लेकिन महर्षि पराशर को परेशान ना करो.
इस पर घमंडी चूहे ने गणेश जी से कहा 'मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए. हां, अगर आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग सकते हैं." इस घमंड को देख गणेश जी ने चूहे से कहा कि वो उनकी सवारी बनें. चूहे ने उनकी बात मानी और सवारी बनने को राज़ी हो गया. लेकिन जैसे ही गणेश जी उस चूहे के ऊपर बैठे वो उनकी भारी भरकर देह से दबने लगा. चूहे ने बहुत कोशिश की लेकिन गणेश जी को लेकर एक कदम आगे ना बढ़ा सका.
चूहे का घमंड चूर-चूर हो गया और उसने गणेश जी से बोला," गणपति बप्पा! मुझे माफ कर दें. आपके वजन से मैं दबा जा रहा हूं." इस माफी को स्वीकार कर गणेश जी ने अपना भर कम किया. इस तरह वह गणेश जी की सवारी बना. चूहे को मूषक भी कहा जाता है.
देखें वीडियो - गणेश पर निसार दुनिया
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