पौष माह को आम बोलचाल में पूस का महीना भी कहा जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार ये वर्ष का दसवां महीना होता है. इस महीने में शीत यानि की ठंड का प्रभाव काफी अधिक रहता है. पौष में में खरमास या मलमास भी पड़ता है, आम मान्यता है कि खरमास के दौरान किसी भी तरह के मांगलिक या शुभ कार्य संपन्न नहीं किए जाते. लेकिन पूजा-पाठ, ध्यान और धार्मिक अध्ययन की दृष्टि से पौष का महीना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस माह में भगवान सूर्यनारायण की पूजा का बहुत महत्व होता है.
कैसे करें सूर्यदेव की पूजा
प्रात:काल में उगते हुए सूर्य का दर्शन हमेशा से शुभ माना जाता रहा है. सूर्यदेव के पूजन के लिए भी यही काल श्रेष्ठ माना जाता है. सुबह स्नान कर सूर्य को जल का अर्घ्य अर्पित करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. सूर्य को जल अर्पित करने के लिए तांबे का पात्र या लोटा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. प्रात:काल सूर्यदेव की ओर मुख करके पूरी श्रद्धा के साथ ॐ आदित्याय नम:, ॐ सूर्याय नम:, ॐ भास्कराय नम: जैसे मंत्रों का उच्चारण करें और उन्हें जल अर्पित करें.
कौन से कार्य होते हैं वर्जित
इस दौरान शादी-विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश जैसे कई शुभ कार्य आमतौर पर नहीं किए जाते हैं. पौष मास में दान-आदि का भी विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि इस काल में अन्न का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. शीत के प्रकोप के देखते हुए कई लोग गर्म कपड़ों का भी दान करते हैं. इस माह में खान-पान और आहार संबंधी कुछ पाबंदियां भी रहती है, इन नियमों को कदाचित जलवायु के प्रकोप को देखते हुए बनाया गया है. इस मास में चीनी की बजाय गुड़ का प्रयोग श्रेष्ठ माना गया है. साथ ही मिताहार और सादा सुपाच्य भोजन किया जाना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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