
Vat Savitri Vrat Katha: हर माह की पूर्णिमा और अमावस्या तिथियों हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. हर माह की पूर्णिमा और अमावस्या पर खास व्रत रखे जाते हैं. ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को और अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. जहां महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है वहीं उत्तर भारत के राज्यों में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखने की परंपरा है. इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा को रखा जाने वाला व्रत 10 जून मंगलवार (Kab Hi Vat Savitri Vart 2025) को रखा जाएगा. इस व्रत से सावित्री और सत्यवान की कथा (Kya Hi Vat Savitri Vart Ki Katha) जुड़ी हुई है और इस दिन व्रत कथा सुनना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि व्रत के दिन सावित्री सत्यवान की कथा सुने बगैर व्रत पूर्ण नहीं (Vat Savitri Vart Ki Katha Ka Mahatva) होता है. आइए जानते हैं वट सावित्री से जुड़ी सावित्री और सत्यवान की कथा.
वट सावित्री से व्रत से जुड़ी सावित्री और सत्यवान कथा (Vat Savitri Vrat Katha)

वट सावित्री व्रत की कथा के बारे में स्कंद पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है. इस कथा में देवी सावित्री के पतिव्रता धर्म के बारे में बताया गया है. व्रत की कथा सुनने से व्रत करने वाली महिलाओं को पहले हाथ में अक्षत रखना चाहिए. पौराणिक कथा के अनुसार, मद्र देश के राजा अश्वपति और रानी मालवी की कोई संतान नहीं होने के कारण बहुत दुखी थे. दोनों से देवी सावित्री देवी की कठोर तपस्या कर देवी से संतान का वरदान पाया और उनके तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ. देवी सावित्री के आशीर्वाद से प्राप्त इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया. रूपवती, विदुषी और तेजस्विनी सावित्री विवाह योग्य होने पर वनवासी सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना. सत्यवान को एक शाप था कि उसकी एक वर्ष के भीतर मृत्यु हो जाएगी. राजा ने सावित्री को सत्यवान से विवाह नहीं करने की सलाह दी लेकिन सावित्री नहीं मानीं. सावित्री का विवाह सत्यवान से हो गया.
सावित्री सत्यवान की आयु बढ़ाने के लिए उपवास करने लगीं. एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने वन जाने लगे तो सावित्री भी उनके साथ गई. सत्यवान पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने लगे, थोड़ी देर बाद सिर में तेज दर्द होने के कारण सत्यवान पेड़ के नीचे लेट गए. सावित्री ने यह देखा तो सत्यवान का सिर अपनी गोद में रखा लिया. कुछ समय बाद यमराज अपने दूतों के साथ सत्यवान के प्राण लेने आ पहुंचे. वे सत्यवान के प्राण लेकर यमलोक की ओर लौटने लगे लेकिन सावित्री भी पीछे पीछे चलने लगीं. यह देखकर यमराज ने सावित्री को समझाया कि सत्यवान के साथ सावित्री का साथ धरती लोक तक ही था और अब वह समाप्त हो चुका है ऐसे में उसे लौट जाना चाहिए. इस पर सावित्री ने कहा कि वह पतिव्रता नारी है और इसलिए जहां उसके पति वहीं वे भी जाएंगी.
सावित्री के पतिव्रता धर्म से यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने अपने सास-ससुर को दृष्टि का वरदान मांगा. यमराज ने वरदान दे दिया और फिर चलने लगे लेकिन सावित्री अब भी उनके पीछे पीछे आ रही थी. यह देखकर यमराज ने फिर वरदान मांगने को कहा. इस बार सावित्री ने अपने ससुर का खोया राजपाट वापस पाने का वरदान मांगा. सावित्री इसके बाद भी यमराज के पीछे पीछे चलती रहीं. यह देखकर यमराज ने कहा कि अब तुम अंतिम वरदान मांगो और पृथ्वी लोक लौट जाओ. सावित्री ने सौ पुत्रों की माता बनने का आशीर्वाद मांगा. यमराज ने वह वरदान दे दिया. सावित्री पतिव्रता महिला थीं, सत्यवान के बिना यमराज का वरदान कभी पूर्ण नहीं हो सकता था. यमराज सावित्री की पतिव्रता धर्म से अत्यंत प्रसन्न हुए और सत्यवान के प्राण लौटा दिए. यमराज के इस वरदान से सत्यवान फिर जीवित हो गए. यमराज के वरदान से सत्यवान के प्राण बच गए, सास-ससुर को दृष्टि मिल गई और वे फिर से अपने महल में सुखपूर्वक रहने लगे.
प्रस्तुति: रोहित कुमार
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a press release)
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