हिन्दुओं के आदि काव्य रामायण (Ramayan) के रचयिता और संस्कृत भाषा के परम ज्ञानी महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) के जन्म दिवस को देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि वैदिक काल के महान ऋषियों में से एक वाल्मीकि पहले एक डाकू थे, लेकिन फिर ऐसी घटना घटित हुई जिसने उनको बदलकर रख दिया. वाल्मीकि (Valmiki) का व्यक्तित्व असाधारण था. यह उनके चरित्र की महानता ही है जिसने उन्हें इतना बड़ा कवि बनाया. उनका जीवन और चरित्र आज भी लोगों के लिए प्रेरणादायी है. देश भर में महर्षि वाल्मीकि की जयंती (Valmiki Jayanti) पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
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वाल्मीकि जयंती कब है?
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था. इस बार वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को है.
वाल्मीकि जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त
वाल्मीकि जयंती की तिथि: रविवार, 13 अक्टूबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक
Valmiki Jayanti: वाल्मीकि जयंती के मैसेजेस
कौन थे महर्षि वाल्मीकि?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था. इनके भाई का नाम भृगु था. कहते हैं कि बचपन में एक भीलनी ने वाल्मीकि को चुरा लिया था इसलिए उनका पालन-पोषण भील समाज में हुआ और वे डाकू बन गए. वाल्मीकि बनने से पहले उनका नाम रत्नाकर था और परिवार के भरण-पोषण के लिए जंगल से गुजर रहे राहगीरों को लूटते और जरूरत पड़ने पर उन्हें जान से भी मार देते थे. मान्यता है कि एक दिन उसी जंगल से नारद मुनि जा रहे थे. तभी रत्नाकर की नजर उन पर पड़ी और उसने उन्हें बंदी बना लिया. इस पर नारद मुनि ने उससे सवाल किया कि तुम ऐसे पाप क्यों कर रहे हो. रत्नाकर का जवाब था कि वह यह सब अपने परिवार के लिए कर रहा है. ऐसा जवाब सुनने के बाद नारद ने पूछा, "क्या तुम्हारा परिवार भी इन पापों का फल भोगेगा." रत्नाकर ने तुरंत जवाब दिया ''हां, मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहेगा." नारद मुनि ने कहा कि एक बार जाकर अपने परिवार से पूछ लो. रत्नाकर ने जब अपने परिवार से पूछा तो सबने मना कर दिया. इस बात से रत्नाकर का मन बेहद दुखी हो गया और उसने पाप का रास्ता छोड़ दिया.
वाल्मीकि को कैसे मिली रामायण लिखने की प्रेरणा.
नारद मुनि से मिलकर और अपने परिवार वालों की बातें सुनकर रत्नाकर की आंखें खुल गईं थीं. उसने अन्याय और पाप की दुनिया तो छोड़ दी, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि आगे क्या करना चाहिए. ऐसे में उसने नारद से ही पूछा कि वह क्या करे. तब नारद ने उसे 'राम' नाम का जप करने की सलाह दी. रत्नाकर अज्ञानतावश 'राम' नाम का जाप 'मरा-मरा' करते रहे, जो धीरे-धीरे 'राम-राम' में बदल गया. कहते हैं कि रत्नाकर ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिस वजह से उसके शरीर पर चीटियों ने बाम्भी बना दी. इस वजह से उनका नाम वाल्मीकि पड़ा. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञान का वरदान दिया. ब्रह्मा की प्रेरणा से ही उन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की.
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जब महर्षि वाल्मीकि ने रचा संस्कृत का पहला श्लोक
महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत साहित्य के पहले श्लोक की रचना की थी. संस्कृत साहित्य का यह पहला श्लोक रामायाण का भी पहला श्लोक बना. ज़ाहिर है रामायण संस्कृत का पहला महाकाव्य है. हालांकि इस पहले श्लोक में श्राप दिया गया था. इस श्राप के पीछे एक रोचक कहानी है. दरअसल, एक दिन वाल्मीकि स्नान के लिए गंगा नदी को जा रहे थे. रास्ते में उन्हें तमसा नदी दिखी. उस नदी के स्वच्छ जल को देखकर उन्होंने वहां स्नान करने की सोची. तभी उन्होंने प्रणय-क्रिया में लीन क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखा. प्रसन्न पक्षी युगल को देखकर वाल्मीकि ऋषि को भी हर्ष हुआ. तभी अचानक कहीं से एक बाण आकर नर पक्षी को लग गया. नर पक्षी तड़पते हुए वृक्ष से गिर गया. मादा पक्षी इस शोक से व्याकुल होकर विलाप करने लगी. ऋषि वाल्मीकि यह दृश्य देखकर हैरान हो जाते हैं. तभी उस स्थान पर वह बहेलिया दौड़ते हुए आता है, जिसने पक्षी पर बाण चलाया था. इस दुखद घटना से क्षुब्ध होकर वाल्मीकि के मुख से अनायास ही बहेलिए के लिए एक श्राप निकल जाता है:
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥
अर्थात्: हे निषाद ! तुमको अनंत काल तक शांति न मिले, क्योकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी.
वाल्मीकि जयंती कैसे मनाई जाती है?
वाल्मीकि जयंती देश भर में धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. इस मौके पर मंदिरों में पूजा-अर्चना कर वाल्मीकि जी की विशेष आरती उतारी जाती है. साथ ही वाल्मीकि जयंती की शोभा यात्रा भी निकाली जाती है, जिसमें लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं. इस दिन रामायण का पाठ और राम नाम का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है.
VIDEO: कौन थे महर्षि वालमीकि?
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