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This Article is From Feb 24, 2017

महाशिवरात्रि विशेष: यह है शिव आराधना का सर्वाधिक लोकप्रिय स्तोत्र, आदि शंकराचार्य ने की थी रचना

महाशिवरात्रि विशेष: यह है शिव आराधना का सर्वाधिक लोकप्रिय स्तोत्र, आदि शंकराचार्य ने की थी रचना
स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार भी माना जाता है.
नई दिल्‍ली: महाशिवरात्रि और अन्य शिवपूजा के अवसरों पर शिवमंदिरों और शिवाश्रमों में श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् या पंचाक्षर स्तोत्र एक बहुत ही लोकप्रिय शिव आराधना स्तोत्र है. ॐ नम: शिवाय के प्रत्येक अक्षर पर आधारित इस श्लोक-संग्रह यानी स्तोत्र की अत्यंत मनमोहक स्तुति स्वयं श्रीआदि शंकराचार्य ने की है, जो महान शिव भक्त थे. स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार भी माना जाता है. उन्होंने भारत में चार कोनों पर चार मठों की स्थापना की थी, जो आज भी स्थापित हैं.

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय.
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे ‘न’ काराय नमः शिवायः.

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय.
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे ‘म’ काराय नमः शिवायः.

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय.
श्री नीलकंठाय वृषभध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवायः.

वशिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय.
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवायः.

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय.
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवायः.

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ.
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते.

इस स्तोत्र का अर्थ इस प्रकार है:

हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं. हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भस्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं. अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगंबर शिव, आपके 'न' अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार.

चन्दन से अलंकृत एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुधा अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा पूजित हैं. हे 'म' धारी शिव, आपको नमन है.

हे धर्म ध्वजधारी, नीलकण्ठ, 'शि' अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था. माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य समान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है.

देवगणों एवं वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पूजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र समान हैं. हे शिव आपके 'व' अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को नमस्कार है.

हे यज्ञ स्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं. हे दिव्य अम्बरधारी शिव आपके 'य' अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है.

जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पुण्यलोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पूर्वक निवास करता है.

इस स्तोत्र के पांचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य है अर्थात् नम: शिवाय. यह पूरा स्तोत्र शिवस्वरूप है.

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