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मदुरै:
तमिलनाडु सरकार ने एक जनवरी से प्रभाव में आए मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने का फैसला किया है जिसमें मंदिरों में जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए ड्रेसकोड निर्धारित किया गया था।
सरकार के वकील पी आर शन्मुगनाथन ने कहा कि तमिलनाडु के कई मंदिरों का प्रबंधन करने वाले हिन्दू धार्मिक और परमार्थ धर्मादा (एचआर और सीई) विभाग का मानना है कि उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के एकल न्यायाधीश का आदेश तमिलनाडु मंदिर प्रवेश अधिकार अधिनियम, 1947 के अनुरूप नहीं है जो मंदिरों को अपने अपने रिवाजों के अनुरूप पहनावे से जुड़े नियम बनाने की मंजूरी देता है।
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राज्य में ऐसे मंदिर हैं जहां पुरूषों को कमीज या अपने शरीर के उपरी हिस्से को तौलिये से ढंककर प्रवेश करने की मंजूरी नहीं है। विभाग को लगता है कि उच्च न्यायालय के निर्देश से इन मंदिरों की यह परंपरा प्रभावित होगी।
न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन ने पिछले साल एक दिसंबर को एक याचिका का निस्तारण करते हुए अपने आदेश में एचआर और सीई आयुक्त को एक जनवरी से ड्रेस कोड लागू करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा था कि मंदिरों में प्रवेश करने के लिए पुरूषों को ‘उपरी वस्त्र के साथ धोती या पायजामा या फिर पैंट और कमीज’ जबकि महिलाओं को ‘साड़ी या हाफ साड़ी या उपरी वस्त्र के साथ चूड़ीदार’ और बच्चों को ‘पूरी तरह से शरीर को ढंकने वाला कोई भी परिधान’ पहनना चाहिए।
सरकार के वकील पी आर शन्मुगनाथन ने कहा कि तमिलनाडु के कई मंदिरों का प्रबंधन करने वाले हिन्दू धार्मिक और परमार्थ धर्मादा (एचआर और सीई) विभाग का मानना है कि उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के एकल न्यायाधीश का आदेश तमिलनाडु मंदिर प्रवेश अधिकार अधिनियम, 1947 के अनुरूप नहीं है जो मंदिरों को अपने अपने रिवाजों के अनुरूप पहनावे से जुड़े नियम बनाने की मंजूरी देता है।
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न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन ने पिछले साल एक दिसंबर को एक याचिका का निस्तारण करते हुए अपने आदेश में एचआर और सीई आयुक्त को एक जनवरी से ड्रेस कोड लागू करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा था कि मंदिरों में प्रवेश करने के लिए पुरूषों को ‘उपरी वस्त्र के साथ धोती या पायजामा या फिर पैंट और कमीज’ जबकि महिलाओं को ‘साड़ी या हाफ साड़ी या उपरी वस्त्र के साथ चूड़ीदार’ और बच्चों को ‘पूरी तरह से शरीर को ढंकने वाला कोई भी परिधान’ पहनना चाहिए।
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