अजीब है इस साधू की तपस्या, चिलचिलाती धूप में करते हैं सूर्य-साधना और तपती रेत से स्नान

अजीब है इस साधू की तपस्या, चिलचिलाती धूप में करते हैं सूर्य-साधना और तपती रेत से स्नान

चिलचिलाती धूप में स्वामी राधिकानंद की सूर्य-साधना (फोटो साभार: jagran.com)

उज्जैन:

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ कुंभ मेला अपनी बानगी से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अनेक अविस्मर्णीय यादें देने में कामयाब दिख रहा है। आस्था और विश्वास के इस महाकुंभ में आए साधू-संत आकर्षण का विशेष केंद्र बने हुए हैं।
 
42 डिग्री तापमान, रेत के ढेर पर साधना...
आजकल जहां अंगार बरसाती तपती धूप में घर से एक कदम बाहर निकलना मुश्किल मालूम होता है, वहीं एक संत यहां शरीर पर केवल एक लंगोट धारण किए 42 डिग्री से अधिक तापमान में बालू (रेत) की की ढेर पर बैठकर साधना में मग्न हैं। ऐसे में किसी को भी आश्चर्य होना स्वाभाविक है।
 
चिलचिलाती धूप में रोज सूर्य-साधना...
ऑनलाइन पोर्टल दैनिक जागरण में छपी एक खबर के अनुसार, इस सिंहस्थ में दत्तअखाड़ा जोन में स्वामी राधिकानंदजी चिलचिलाती धूप में भी इसी तरह रोज सूर्य-साधना कर रहे हैं। इतना ही नहीं, साधना के दौरान वे गर्म बालू को शरीर पर मल-मल कर ही स्नान भी करते हैं।

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बरबस ही श्रद्धा से ठहर जाते हैं श्रद्धालु...
खबर के मुताबिक, राधिकानंदजी की इस सूर्य-साधना को देखकर श्रद्धालु बरबस ही श्रद्धा से ठहर जाता है। इतनी तेज गर्मी में साधु-संत भी एयरकंडिशनर कुटियाओं में रह रहे हैं और यहां राधिकानंदजी धूप में बालूरेत के ढेर पर ऐसे सहज भाव से बैठे हैं, मानों सूर्य की किरणें उन पर ठंडक बरसा रही हो। सुबह 10.30 बजे जब सूर्य अपनी तपन छोड़ने लगता है तो राधिकानंदजी का आसन बालू के इस ढेर पर लग जाता है।
 
वीआईपी आए या श्रद्धालु, साधना में विराम नहीं...
गौरतलब है कि सिंहस्थ में पधारे अधिकांश साधू-संत ऐसे समय में अपने ए.सी. रूम में विश्राम करते हैं और आगंतुक वीआईपी और श्रद्धालुओं से मिलते हैं। लेकिन राधिकानंदजी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई वीआईपी उनके यहां आ रहा है या साधारण श्रद्धालु, वे तो बस सूर्य के तेज को सहन करते हुए अपनी साधना करते रहते हैं।
 
सूर्य की तपिश कम होने पर लेते हैं विराम...
राधिकानंदजी की इस विकट साधना में शाम के लगभग 5 बजे के बाद ही विराम लगता है, जब सूर्य की तपिश कम हो जाती है।
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