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This Article is From Mar 07, 2018

शीतला सप्तमी या बसौड़ा, जानें पूजा का सही समय और कथा

इस पूजा में सबसे खास होते हैं बासी मीठे चावल, जिन्हें गुड़ या गन्ने के रस से बनाया जाता है. यही मीठे चावल माता को भी चढ़ाए जाते हैं और यही अगले पूरे दिन खाए जाते हैं.

शीतला सप्तमी या बसौड़ा, जानें पूजा का सही समय और कथा
शीतला सप्तमी 2018: जानें समय और पूजा विधि
नई दिल्ली: आपने उत्तरी भारत में देखा होगा कि कई महिलाएं सुबह अंधेरे में मीठे चावल, हल्दी, चने की दाल और जल लेकर मंदिर जाती हैं. इस पूजा को बसौड़ा या फिर शीतला सप्तमी कहा जाता है. इस पूजा में सबसे खास होते हैं बासी मीठे चावल, जिन्हें गुड़ या गन्ने के रस से बनाया जाता है. यही मीठे चावल माता को भी चढ़ाए जाते हैं और यही अगले पूरे दिन खाए जाते हैं. यहां जाने क्यों मनाया जाता है बसौड़ा और कैसे की जाती है पूजा. 

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बसौड़ा की तिथि और समय?
शीतला सप्तमी या बसौड़ा 8 मार्च 2018 को है. यह हर साल होली के बाद आने वाली सप्तमी या अष्टमी के दिन मनाई जाती है. इस साल बसौड़ा अष्टमी को मनाई जा रही है, जो 8 मार्च को है और इसी दिन शीतला माता का व्रत भी रखा जाएगा. 

शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त - 06:42 से 18:21 तक

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कैसे की जाती है बासौड़ा की पूजा?
1. सबसे पहले जल्दी सुबह उठकर ठंडे पानी से नहाएं.
2. व्रत का संकल्प लें और शीतला माता की पूजा करें. 
3. पूजा और स्नान के वक्त 'हृं श्रीं शीतलायै नमः' मंत्र का मन में उच्चारण करते रहें, बाद में कथा भी सुनें. 
4. माता को भोग के तौर पर रात को बनाए मीठे चावल चढ़ाएं.
5. रात में माता के गीत गाए जाएं तो और भी बेहतर. 

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क्या है कहानी?
एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक परिवार में बूढ़ी औरत और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा. मान्यता के अनुसार इस दिन सिर्फ बासी भोजन की खाया जाता है, इसी वजह से रात को ही माता का भोग सहित अपने लिए भी भोजन बना लिया. लेकिन बूढ़ी औरत की दोनों बहुओं ने ताज़ा खाना बनाकर खा लिया. क्योंकि हाल ही में उन दोनों को संतान हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना करे. 

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यह बात उनकी सास को मालूम चली कि दोनों ने ताज़ा खाना खा लिया, इस बात को जान वह नाराज हुई. थोड़ी देर बाद पता चला कि उन दोनों बहुओं के नवजात शिशुओं की अचानक मृत्यु हो गई. अपने परिवार में बच्चों की मौत के बाद गस्साई सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया. दोनों अपने बच्चों के शवों के लेकर जाने लगी कि बीच रास्ते कुछ देर विश्राम के लिए रूकीं. वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली. दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी. उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं. कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए. इस बात को सुन दोनों बहुएं रोने लगी और अपने बच्चों के शव दिखाए. ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि कर्मों का फल इसी जीवन में मिलता है. ये बात सुनकर वो दोनों समझ गई कि ये कोई और नहीं बल्कि स्वंय शीतला माता हैं. 

ये सब जान दोनों ने माता से माफी मांगी और कहा कि आगे से शीतला सप्तमी के दौरान वो कभी भी ताज़ा खाना नहीं खाएंगी. इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया. इस दिन के बाद पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा.      

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