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This Article is From Apr 04, 2018

जब शबरी ने भगवान राम को चख-चख कर खि‍लाए जूठे बेर

भगवान राम की अनन्‍य उपासक शबरी ने अपने आराध्‍य को जूठे बेर खि‍लाए थे. इसका प्रसंग रामायण, भागवत पुराण, रामचरितमानस, सूरसागर, साकेत जैसे ग्रंथों में मिलता है.

जब शबरी ने भगवान राम को चख-चख कर खि‍लाए जूठे बेर
शबरी जयंती: जानें कौन थी शबरी, क्यों उन्होंने भगवान राम को खिलाए जूठे बेर
नई दिल्ली: भारत में मौजूद माता शरबी को समर्पित मंदिरों में हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है. इस बार यह जयंती 7 फरवरी को मनाई जा रही है. मान्‍यता है कि भगवान राम की अनन्‍य उपासक शबरी ने अपने आराध्‍य को जूठे बेर खि‍लाए थे. इसका प्रसंग रामायण, भागवत पुराण, रामचरितमानस, सूरसागर, साकेत जैसे ग्रंथों में मिलता है. शबरी जयंती के मौके पर हम आपको माता शबरी के बारे में कुछ बातें बता रहे हैं:

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कौन थीं शबरी?
कहा जाता है कि शबरी भील जाति से ताल्लुक रखती थीं. इस जाति में शुभ कामों में पशुओं की बलि दी जाती थी. वह बचपन से ही भगवान राम की भक्त थीं. सुबह-शाम वह अपने राम जी के लिए पूजा-पाठ और व्रत रखतीं. जब उनका विवाह तय हुआ तब बकरों और भैसों को को बलि के लिए लाया गया. इन पशुओं की जान बचाने के लिए उन्होंने विवाह ना करने का फैसला किया और घर से निकल गईं.

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रास्ते में उन्हें एक आश्रम भी दिखा लेकिन अंदर जाने का साहस ना जुटा सकीं. उस वक्त वहां मतंग ऋषि आए और शबरी से उनका परियच पूछा. काफी सोच विचार कर उन्होंने उसे आश्रम में आने की अनुमति दी. कुछ ही दिनों में वो अपनी राम भक्ति और अच्छे व्यवहार से सबकी प्रिय बन गईं. कई वर्ष उन्होंने मतंग ऋषि की पिता समान सेवा की. लेकिन एक दिन मतंग ऋषि के दुर्बल शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया. लेकिन उससे पहले वो शबरी को आशीर्वाद देकर गए कि उन्हें एक दिन उनके राम के दर्शन ज़रूर होंगे. 

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भगवान राम को शबरी ने क्‍यों खिलाए जूठे बेर?
कई साल बीत गए. शबरी हर दिन रास्ते पर फूल बिछाती और भोग का इंतजाम करके रखती. इस आस में कि भगवान राम जरूर उन्हें दर्शन देंगे. और, एक दिन भगवान राम माता सीता की खोज में मतंग ऋषि के आश्रम पहुंचे. एक ऋषि ने राम जी को बिठाया और शबरी को आवाज दी. उन्होंने आवाज लगाते हुए कहा कि तुम जिन भगवान का दिन-रात पूजन करती हो वह खुद आश्रम पधारे हैं. आओ, और मन भरके राम जी की सेवा करो. भगवान राम को सामने पाकर वो उन्हें निहारती रहीं. कुछ देर बाद उन्‍हें स्मरण हुआ कि उन्‍होंने अपने भगवान को भोग नहीं लगाया. इसीलिए वह जगंल जाकर कंद-मूल और बेर लेकर वापस आश्रम लौटीं. कंद-मूल तो उन्‍होंने राम जी को दिए, लेकिन बेर खट्टे ना हो इस डर से उन्हें देने का साहस नहीं कर पाईं. 

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अपने भगवान को मीठे बेर खिलाने के लिए उन्‍होंने उन्हें चखना शुरू किया. अच्छे और मीठे बेरों को राम जी को देने लगी और खट्टे बेरों को फेंकने लगी. भगवान राम शबरी की इस भक्ति को देख मोहित हो गए. लेकिन राम जी के भाई लक्षण उन्हें देखकर अचंभित हुए कि भैया झूठे बेर क्यों खा रहे हैं. इसपर भगवान राम ने लक्षण को समझाया कि यह जूठे बेर शबरी की भक्ति हैं और इसमें उनका प्रेम है. 

तभी से शबरी और भगवान राम की यह कहानी 'शबरी के बेर' नाम से प्रसिद्ध हुई.

 

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