sawan ke somvar ki katha: सावन के सोमवार की कथा, जिसके बिना अधूरा माना जाता है भगवान शिव का व्रत

sawan ke somvar ki katha: सावन सोमवार व्रत की यह कथा बेहद पौराणिक और खास मानी गई है. मान्यता है कि इस व्रत कथा के बिन सोमवार का व्रत अधूरा रह जाता है.

sawan ke somvar ki katha: सावन के सोमवार की कथा, जिसके बिना अधूरा माना जाता है भगवान शिव का व्रत

sawan ke somvar ki katha: सावन के सोमवार की यह व्रत कथा खास है.

sawan ke somvar ki katha: सावन 2022 का पहला सोमवार व्रत 18 जुलाई को यानी आज रखा जा रहा है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) की विधिवत पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. कहा जाता है कि सावन का महीना (Sawan Month 2022) भगवान शिव को बेहद प्रिय है. इसलिए इस महीने में शिवजी की उपासना बेहद फलदायी होती है. शिवजी के भक्त सावन में सोमवार का व्रत (Sawan Somvar Vrat) रखकर भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. इसके अलावा इस दिन सावन के सोमवार की कथा (sawan ke somvar ki katha) का पाठ करना भी उत्तम माना गया है. मान्यता है कि इस दिन सोमवार व्रत कथा का पाठ करन से भोनेनाथ अत्यंत प्रसन्न होते हैं. आइए जानते हैं सावन सोमवार के व्रत की कथा. 

सावन के सोमवार की कथा | sawan ke somvar ki katha

सावन के सोमवार की कथा (sawan ke somvar ki katha) के अनुसार, किसी स्थान पर एक व्यापारी रहता था. वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था. नगर के सभी लोग उसका आदर करते थे. उसका जीवन सुखी-संपन्न था, लेकिन उसका अपना कोई संतान नहीं था. जिस कारण वही हमेशा दुखी रहता था. साहूकार संतान प्राप्ति की कामना से प्रत्येक सोमवार को शिव जी की विधिवत पूजा-अर्चना करता था. कहते हैं कि साहूकार की शिव-भक्ति को देकर मां पार्वती ने शिवजी से कहा कि वह शिवजी का बहुत बड़ा भक्त है. प्रत्येक सोमवार को पूरी श्रद्धा से व्रत और पूजन करता है. लेकिन फिर भी आप उसकी इच्छा पूरी क्यों नहीं करते. मां पार्वती के इस बात पर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती- "इस साहूकार को संतान नहीं हैं, इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता". यह सुनकर मां पर्वती ने शिवजी से कहा कि वे साहूकार को संतान प्राप्ति का वरदान प्रदान करें. जिसके बाद भगवान शिव ने उस साहूकार को संतान प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन उन्हें यह भी कहा कि उसका कि उसके संतान की आयु महज 12 वर्ष ही होगी. भगवान शिव के वरदान स्वरूप कुछ दिनों के बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसके गर्भ से एक सुंदर संतान का जन्म हुआ. इस शुभ समाचार को जानकर सहूकार बहुत खुश हुआ, लेकिन उसे शिवजी की कही हुई बातें याद थीं. इसलिए पुत्र प्राप्ति के बाद भी वह दुखी रहता था. यह बाद उसने अपनी पत्नी को नहीं बताई थी.

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जब साहूकार का पुत्र 11 वर्ष को प्राप्त हुआ तो उसकी उसकी पत्नी ने अपने पुत्र का बाल विवाह करने कि लिए कहीं. जिस पर साहूकार ने कहा कि वह अपने पुत्र को काशी में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजेंगे. शिक्षा प्राप्ति के बाद ही उसका विवाह होगा. साहूकार ने अपने पुत्र को उसके मामा के साथ काशी भेज दिया. पुत्र को विदा करते समय साहूकार ने कहा कि काशी के रास्ते में जहां भी रुकना, वहां यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराकर ही आगे की ओर बढ़ना. साहूकार का पुत्र रास्ते में यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन करवाते हुए आगे बढ़ता गया. आगे उसने देखा की राजाकुमारी का विवाह हो रहा था. राजकुमारी का विवाह जिस राजकुमार से हो रहा था वह आंख के काना था. राजकुमारी के पिता की नजर साहूकार के पुत्र पर पड़ी तो उसने सोचा का क्यों ना राजकुमारी की शादी उस बालक से कर दूं. राजा ने अपने इस विचार को बालक के मामा से साझा किया. राजा के इस सुझाव को बालक का मामा मान गया और उसने अपने भांजे की शादी उस राकुमारी से करवा दी. शादी के बाद उसने राजकुमारी की चुनरी की पल्लू पर लिखा- तेरा विवाह मेरे साथ हुआ है, लेकिन यह राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे. यह लिखकर साहूकार का बेटा अपने मामा के साथ काशी चला गया. राजकुमारी ने जब अपनी चुनरी खोली तो उस पर लिखी हुई बातों को पढ़कर उसने उस राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया. 

काशी पहुंचकर मामा-भांजा अपने घर में यज्ञ करवा रहे थे. उसी वक्त भांजे की तबीयत खराब हो गई. उस दिन वह बालक कमरे से बाहर नहीं आया. मामा ने कमरे के अंदर जाकर देखा तो उसके भांगे के प्राण निकल चुके थे. लेकिन मामा ने यह बात किसी को नहीं बताई. उसने यज्ञ का सारा काम समाप्त कर ब्राह्मणों को भोजन करवाया. इसके बाद उसकी वेदना न रुकी और उसने विलाप करना शुरू कर दिया.

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संयोगवश भगवान शिव और मां पर्वती उसी रास्ते से जा रहे थे. रोने की आवाज सुनकर मां पर्वती ने शिवजी से पूछा कि यह कौन रो रहा है. भगवान शिव ने कहा कि यह उसी साहूकार के पुत्र की मृत्यु पर विलाप कर रहा है. जिसकी आयु सिर्फ 12 वर्ष की थी. तब मां पर्वती ने शिवजी से व्यापारी के बेटे को जीवन दान देने को कहा. भगवान शिव ने कहा कि उस साहूकार के पुत्र की आयु उतनी ही थी. शिवजी की वचन को सुनकर मां पार्वती में बार-बार भगवान से उस बालक को जीवन दान देने का आग्रह करने लगीं. मां पर्वती के आग्रह पर शिवजी ने उस साहूकार के पुत्र को जीवन दान दे दिया. जिसके बाद मामा और भांजा दोनों अपने घर वापस लौट गए. 

रास्ते में वह नगर मिला जहां साहूकार के पुत्र का विवाह हुआ था. वहां उन दोनों का खूब सत्कार हुआ. राजा ने अपनी कन्या को साहूकार के बेटे से साथ खूब सारा धन देकर विदा कर दिया. उधर साहूकार और उनकी पत्नी यह सोचकर बैठे थे कि अगर उनका पुत्र वापस नहीं आएगा तो वे अपनी जान न्योछावर कर देंगे. 

कहते हैं कि जब साहूकार को पता चला कि उनका पुत्र वापस आ रहा है, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. लेकिन बाद में उन्होंने अपने बेटे और बहू का भव्य स्वागत और सत्कार किया  और भगवान शिव को धन्यवाद दिया. रात में भगवान शिव ने साहूकार को स्वप्न दिए और 'कहा कि मैं तुम्हारे पूजा से बहुत प्रसन्न हूं. सोमवार व्रत में उसकी इस कथा को पढ़ेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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