Ravi Pradosh Vrat 2023: प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है. दिसंबर में दो प्रदोष व्रत रखे जाने थे जिनमें से दूसरा प्रदोष व्रत आने वाले 24 दिसंबर, रविवार के दिन रखा जा रहा है. रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहते हैं. माना जाता है कि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखने पर जातक की हर मनोकामना पूरी हो जाती है और जीवन में आरोग्य और खुशहाली का वरदान मिलता है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस पूजा में प्रदोष व्रत की कथा पढ़ना भी बेहद शुभ होता है. कहते हैं इस कथा का पाठ करने पर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं.
प्रदोष व्रत की कथा | Pradosh Vrat Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय की बात है, एक गांव में गरीब विधवा ब्राह्मणी रहा करती थी. बुढ़िया अपने एक पुत्र के साथ रहती थी. दोनों भिक्षा मांगकर अपना भरण-पोषण करते थे. एक बार दोनों भिक्षा मांगकर लौट रहे थे जब उन्हें अचानक नदी किनारे एक बालक दिखा. ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि बालक कौन है. वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. इस बालक के पिता विदर्भ देश के राजा थे जिनकी मृत्यु युद्ध में हुई थी. राजा का राज्य अब दुश्मनों के कब्जे में था. अपने पति के शोक में रानी का भी निधन हो गया और बालक अनाथ रह गया.
इस बालक को देखकर ब्राह्मणी को उसपर तरस आया और उसने उसे गोद ले लिया. ब्राह्मणी इस बालक को भी पालने लगी. एक बार ब्राह्मणी और उसके बेटों की मुलाकात ऋषि शांडिल्य से हुई और उन्होंने इन सभी को प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी. तभी से ब्राह्मणी और दोनों पुत्र प्रदोष व्रत रखने लगे.
कुछ समय बीत जाने पर विदर्भ के राजकुमार को एक कन्या अच्छी लगी जिसका नाम अंशुमती था और जो गंधर्व कन्या थी. इस राजकुमारी से राजकुमार धर्मगुप्त का विवाह हो गया. भगवान शिव (Lord Shiva) की कृपा से राजकुमार ने अपने राज्य को वापस अपना बना लिया. तभी से माना जाता है कि प्रदोष व्रत रखने पर भगवान शिव की पूरे परिवार पर कृपा बनी रहती है और सभी बिगड़े कार्य बन जाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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