
रथ सप्तमी के दिन सूर्य उपासना का बड़ा महत्व है
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रथ सप्तमी के दिन सूर्य उपासना की जाती है
मान्यता है कि इसी दिन सूर्य का जन्म हुआ था
इस बार की रथ सप्तमी में 10 साल बाद अनोखा संयोग बन रहा है
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क्या है रथ सप्तमी?
रथ सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी और आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. अगर यह सप्तमी रविवार के दिन हो तो इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. दरअसल, रविवार का दिन सूर्य को समर्पित है और अगर इस दिन यह सप्तमी पड़े तो इसे भानु सप्तमी कहते हैं.
रथ सप्तमी का महत्व
रथ सप्तमी का बड़ा महात्म्य है. मान्यता है कि इस दिन सूर्य आराधना, स्नान और दान-पुण्य का फल हजार गुना बढ़ जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों में स्नान करने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिल जाती है. जो लोग निरोगी काया चाहते हैं उन्हें इस दिन सूर्य आराधना अवश्य करनी चाहिए.
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रथ सप्तमी की पूजा विधि
रथ सप्तमी के दिन स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. अर्घ्य देने से पहले सिर पर आक के सात पत्ते रखने चाहिए. अर्घ्य देने वक्त भक्त को नमस्कार मुद्रा में रहना चाहिए.
मंत्र
अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:। वरुणाय नमस्तेअस्तु
रथ सप्तमी की कथा
पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर अभिमान था. शाम्ब ने एक बार ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया. इस अपमान से ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. जब भगवान कृष्ण को श्राप के बारे में पता चला तो उन्होनें अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य की आराधना करने का निर्देश दिया. पिता की आज्ञा का पालन करते हुए शाम्ब ने सूर्य आराधना शुरू कर दी. सूर्य देव शाम्ब की आराधना से प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया. शाम्ब के सभी कष्टों का अंत हो गया.
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