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This Article is From Aug 24, 2018

रक्षाबंधन 2018: जानिए राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्‍व

Rakhi or Raksha Bandhan: रक्षाबंधन के दिन शुभ मुहूर्त में ही राखी बांधनी चाहिए. यहां पर जानिए रक्षाबंधन के बारे में सब कुछ.

रक्षाबंधन 2018: जानिए राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्‍व
Raksha Bandhan 2018: रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं
नई दिल्‍ली: भारत में त्‍योहार सिर्फ खाने-पीने और मौज-मस्‍ती का नाम नहीं हैं, बल्‍कि यह एक दूसरे के प्रति प्‍यार, समर्पण और त्‍याग को भी दर्शाते हैं. ऐसा ही एक त्‍योहार है रक्षाबंधन (Raksha Bandhan), जो भाई-बहन के असीम प्‍यार का प्रतीक है. भाई-बहन साल भर इस त्‍योहार का इंतजार करते हैं. रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी (Rakhi) बांधती हैं. वहीं, भाई अपनी बहनों को सामर्थ्‍य के अनुसार भेंट देकर उनकी रक्षा का वचन देते हैं. होली, दीपावली की तरह ही इस त्‍योहार को देश भर में परंपरऔर उत्‍साह के साथ मनाया जाता है. 

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कब मनाया जाता है रक्षाबंधन?
रक्षाबंधन हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार हर साल श्रावण या सावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस बार रविवार के दिन 26 अगस्‍त को रक्षाबंधन का त्‍योहार मनाया जाएगा.

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रक्षाबंधन का महत्‍व 
हिन्‍दू धर्म में रक्षाबंधन का विशेष महत्‍व है. पुरातन काल से इस पर्व को मनाया जा रहा है. यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है. यह ऐसा पर्व है जिसमें संवेदनाएं और भावनाएं कूट-कूट कर भरी हुईं हैं. यह इस पर्व की महिमा ही है जो भाई-बहन को हमेशा-हमेशा के लिए स्‍नेह के धागे से बांध लेती है. रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. देश के कई हिस्‍सों में रक्षाबंधन को अलग-अलग तरीके से भी मनाया जाता है. महाराष्‍ट्र में सावन पूर्णिमा के दिन जल दवता वरुण की पूजा की जाती है. रक्षाबंधन को सलोनो नाम से भी जाना जाता है. मान्‍यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्‍नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्‍य देने से सभी पापों का नाश हो जाता है. इस दिन पंडित और ब्राह्मण पुरानी जनेऊ का त्‍याग कर नई जनेऊ पहनते हैं. 

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राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 
मान्‍यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के दिन अपराह्न यानी कि दोपहर में राखी बांधनी चाहिए. अगर अपराह्न का समय उपलब्‍ध न हो तो प्रदोष काल में राखी बांधना उचित रहता है. भद्र काल के दौरान राखी बांधना अशुभ माना जाता है. यहां पर हम आपको इस साल राखी बांधने के सही समय के बारे में बता रहे हैं. 

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राखी बांधने का समय: सुबह 5 बजकर 59 मिनट से शाम 5 बजकर 25 मिनट तक (26 अगस्‍त 2018)
अपराह्न मुहूर्त: दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 4 बजकर 12 मिनट तक (26 अगस्‍त 2018)

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: दोपहर 03 बजकर 16 मिनट (25 अगस्‍त 2018)
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: शाम 05 बजकर 25 मिनट (26 अगस्‍त 2018)

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राखी बांधने की पूजा विधि
रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र, संपन्‍नता और खुशहाली की कामना करती हैं. वहीं भाई अपनी बहन को कपड़े, गहने, पैसे, तोहफे या कोई भी भेंट देकर उनकी रक्षा का वचन देते हैं. रक्षाबंधन के दिन अपने भाई को इस तरह राखी बांधें: 
- सबसे पहले राखी की थाली सजाएं. इस थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीज, दीपक और राखी रखें. 
- इसके बाद भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र यानी कि राखी बांधें. 
- राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें. 
- फिर भाई को मिठाई खिलाएं. 
- अगर भाई आपसे बड़ा है तो चरण स्‍पर्श कर उसका आशीर्वाद लें. 
- अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्‍पर्श करना चाहिए. 
- राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्‍छा और सामर्थ्‍य के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए. 
- ब्राह्मण या पंडित जी भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं. 
- ऐसा करते वक्‍त इस मंत्र का उच्‍चारण करना चाहिए: 
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

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रक्षाबंधन का त्‍योहार क्‍यों मनाया जाता है?
भारत में रक्षाबंधन मनाने के कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं: 

वामन अवतार कथा: असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्‍य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्‍णु के पास मदद मांगने पहुंचे. भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें.

भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह देवताओं की चिंता खत्‍म हो गई. वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्‍न हुए. उन्‍होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया. बलि की इच्‍छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा. भगवान विष्‍णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंतित हो गए. अपने पति भगवान विष्‍णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी गरीब स्‍त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी. बदले में भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी और मान्‍यता है कि तभी से  रक्षाबंधन मनाया जाने लगा.

भविष्‍य पुराण की कथा: एक बार देवता और दानवों में 12 सालों तक युद्ध हुआ लेकिन देवता विजयी नहीं हुए. इंद्र हार के डर से दुखी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए. उनके सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षा सूत्र  तैयार किए. फिर इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई. यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को संपन्न किया गया था.

द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण की कथा: महाभारत काल में कृष्ण और द्रौपदी का एक वृत्तांत मिलता है. जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई. द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया. यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था.

रक्षाबंधन मनाए जाने के पीछे कई ऐतिहासिक कारण भी हैं: 
बादशाह हुमायूं और कमर्वती की कथा: मुगल काल में बादशाह हुमायूं चितौड़ पर आक्रमण करने  के लिए आगे बढ़ रहा था. ऐसे में राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लिया. फिर क्‍या था हुमायूं ने चितौड़ पर आक्रमण नहीं किया. यही नहीं आगे चलकर उसी राख की खातिर हुमायूं ने चितौड़ की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरूद्ध लड़ते हुए कर्मवती और उसके राज्‍य की रक्षा की. 

सिकंदर और पुरू की कथा: सिकंदर की पत्नी ने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास यानी कि राजा पोरस को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया. पुरूवास ने युद्ध के दौरान सिकंदर को जीवनदान दिया. यही नहीं सिकंदर और पोरस ने युद्ध से पहले रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी. युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार के लिए हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया. सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया.

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