विज्ञापन
This Article is From Mar 15, 2016

फूल देई, फूल-फूल माई: उत्तराखंड की यह अनोखी लोक परंपरा देती है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का संदेश

फूल देई, फूल-फूल माई: उत्तराखंड की यह अनोखी लोक परंपरा देती है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का संदेश
फूल देई, फूल-फूल माई: घर-घर फूल बिखेरते बच्चे
देहरादून: फूलों की रंग-बिरंगी टोकरी लिए, फूल से नाजुक हाथ और निस्वार्थ फूल से चेहरों ने उत्तराखंड की अनोखी लोक परंपरा ‘फूल देई, फूल-फूल माई’ का आगाज कल देहरादून स्थित राज्य के राज्यपाल महामहिम डा. कृष्ण कांत पॉल के द्वार पर ताजा फूलों को बिखेर कर शुरू किया।

उसके बाद बच्चों की टोली मुख्यमंत्री हरीश रावत के द्वार पर फूल बिखेरते हुए देहरादून के एसएसपी, विधायकों और मंत्रियों के आवासों की ओर बढ़ चली। इसी तरह उमंग से भरी बच्चों की अलग अलग टोलियों ने राजपुर रोड, बलबीर रोड, तेगबहादुर रोड, सुभाष रोड, हरिद्वार रोड आदि से गुजरते हुए घर-घर फूल डाले और माहौल को सुरभित कर दिया।

सुख-सम्पदा-तरक्की का प्रतीक है यह परंपरा
बच्चों की संख्या जो कि 32 के करीब थी, अपने रास्ते में आने वाले हर घर के दरवाजे पर रंग बिरंगे फूल बिखेरती, वहां महज 3 से 4 मिनट रुक कर आगे बढ़ जाती थी और पीछे छोड़ जाते हंसते-मुस्कुराते खुश चेहरे जिन्हें अपनी परंपरा का नजारा एक बार फिर नई पीढ़ी ने कराया।

ऐसा नहीं है कि बच्चे केवल फूल बिखेरते जाते हैं। वे जिस भी घर में फूल बिखेरते हैं, उस घर से उन्हें (बच्चों की टोली को) परम्परानुसार एक-एक मुट्ठी चावल और एक-एक मुठी गेहूं भेंट किया गया। गहराई से देखें और समझें तो यह यह परम्परा घर-परिवार की सुख-सम्पदा और तरक्की का प्रतीक है।

हर घर फूल, हर मन सुरभित
यहां रहने वाली एक बुजुर्ग महिला दीपा डिमकी का कहना है कि यह देख कर उनके बचपन की यादें ताज़ा हो गई, जब वे भी वसंत के महीने में अपने दोस्तों के साथ घर-घर जाकर फूल बिखेरती थी।

वर्तमान में इस परंपरा को शुरू किया है शशि भूषण मैठाणी 'पारस' ने, जो राज्य में रंगोली आंदोलन के संस्थापक हैं। यह उनकी एक रचनात्मक मु्हिम है जो लोगों को पहाड़ों की लुप्त हो रही परंपरा से एक बार फिर जोड़ने की कोशिश कर रही है।

‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का संदेश देती है यह परंपरा
शशि भूषण मैठाणी का मानना है कि ‘‘फूल देई, फूल-फूल माई उत्तरखंडी परम्परा और प्रकृति से जुड़ा सामाजिक, सांस्कृतिक और लोक-पारंपरिक त्योहार है, जो कि पर्वतीय संस्कृति की त्रिवेणी है।’

यह एक सच्चाई है कि आधुनिक जीवन की भागदौड़ और आपाधापी में हम न जाने कितनी अच्छी परंपराओं और रिवाजों को भूल चुके हैं। लेकिन ऐसे अनेक परंपराएं थी जो निस्वार्थ थी, वे "वसुधैव कटुम्बकम" और "सर्वे भवन्तु सुखिन:" का संदेश देती थीं। "फूल देई, फूल-फूल माई" उत्तराखंड की ऐसी ही एक बेजोड़ परंपरा है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
फूल देई, फूल-फूल माई, उत्तराखंड की संस्कृति, सर्वे भवन्तु सुखिन:, राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पॉल, मुख्यमंत्री हरीश रावत, Phool Dei Phool Phool Mai, Culture Of Uttarakhand, Sarve Bhavantu Sukhinah, Krishna Kant Paul, CM Harish Rawat
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com