देश का हृदय कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है भोजपुर नामक एक स्थान। यहां स्थापित है एक प्रसिद्ध मध्यकालीन शिव मंदिर है, जो भोजेश्वर शिव मंदिर के नाम विख्यात है।
वर्तमान में लोग भले ही भोजपुर को बहुत कम जानते हैं, लेकिन मध्यकाल में इस नगर की प्रसिद्धि काफी दूर-दूर तक फैली थी। इस नगर को धार के राजा भोज ने स्थापित करवाया था। जी हां, उसी राजा भोज ने जिसके बारे में प्रसिद्ध लोकोक्ति "कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली" कही-सुनी जाती है।
वर्तमान में जीर्णशीर्ण अवस्था में है मंदिर
इस मध्यकालीन नगर को प्रसिद्धि दिलाने मुख्य श्रेय भोजपुर के भोजेश्वर शिव मंदिर और यहां निर्मित एक विशाल झील का था। राजा भोज द्वारा बनवाए गए इस मंदिर की प्रसिद्धि 'पूरब के सोमनाथ मंदिर' के रूप में थी।
वर्तमान में भोजेश्वर शिव मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में है, लेकिन झील पूरी तरह सूख चुकी है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी आकर्षक है।
रहस्य: कभी पूरा नहीं बन पाया मंदिर का शिखर
शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट और परिधि 17.8 फीट है, जो स्थापत्य कला का एक बेमिसाल नमूना है। यह शिवलिंग एक वर्गाकार और विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर त्रिस्तरीय चूने-पत्थर की पाषाण-खंडों पर स्थापित है।
कहते हैं इस मंदिर का शिखर निर्माण का काम कभी भी पूर्ण नहीं हो सका था। शिखर को पूरा करने के लिए जो भी प्रयास किए गए, उसके अवशेष अब भी यहां बड़े-बड़े पत्थर के रूप में बिखड़े हुए हैं। मंदिर का शिखर क्यों नहीं बन पाया इस रहस्य को कोई नहीं जानता है।
वर्तमान में लोग भले ही भोजपुर को बहुत कम जानते हैं, लेकिन मध्यकाल में इस नगर की प्रसिद्धि काफी दूर-दूर तक फैली थी। इस नगर को धार के राजा भोज ने स्थापित करवाया था। जी हां, उसी राजा भोज ने जिसके बारे में प्रसिद्ध लोकोक्ति "कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली" कही-सुनी जाती है।
वर्तमान में जीर्णशीर्ण अवस्था में है मंदिर
इस मध्यकालीन नगर को प्रसिद्धि दिलाने मुख्य श्रेय भोजपुर के भोजेश्वर शिव मंदिर और यहां निर्मित एक विशाल झील का था। राजा भोज द्वारा बनवाए गए इस मंदिर की प्रसिद्धि 'पूरब के सोमनाथ मंदिर' के रूप में थी।
वर्तमान में भोजेश्वर शिव मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में है, लेकिन झील पूरी तरह सूख चुकी है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी आकर्षक है।
रहस्य: कभी पूरा नहीं बन पाया मंदिर का शिखर
शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट और परिधि 17.8 फीट है, जो स्थापत्य कला का एक बेमिसाल नमूना है। यह शिवलिंग एक वर्गाकार और विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर त्रिस्तरीय चूने-पत्थर की पाषाण-खंडों पर स्थापित है।
कहते हैं इस मंदिर का शिखर निर्माण का काम कभी भी पूर्ण नहीं हो सका था। शिखर को पूरा करने के लिए जो भी प्रयास किए गए, उसके अवशेष अब भी यहां बड़े-बड़े पत्थर के रूप में बिखड़े हुए हैं। मंदिर का शिखर क्यों नहीं बन पाया इस रहस्य को कोई नहीं जानता है।
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