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This Article is From Nov 15, 2016

मंदिरों में भारतीय वेशभूषा के साथ प्रवेश करने की आवश्यकता है: नृत्यांगना सोनल मानसिंह

मंदिरों में भारतीय वेशभूषा के साथ प्रवेश करने की आवश्यकता है: नृत्यांगना सोनल मानसिंह
प्रतीकात्मक चित्र
भोपाल: प्रख्यात नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने सोमवार को मंदिरों में भारतीय वेशभूषा में प्रवेश करने की परैवी की है. राजधानी के विधानसभा परिसर में चल रहे तीन दिवसीय लोक-मंथन में सोमवार को 'राष्ट्र निर्माण में कला, संस्कृति और इतिहास की भूमिका' विषय पर सामूहिक सत्र को संबोधित करते हुए सोनल मानसिंह ने कहा, "मंदिरों में भारतीय वेशभूषा के साथ प्रवेश करने की आवश्यकता है. अन्य समुदाय के लोग अपने मस्जिद और गुरुद्वारों में वेशभूषा का विशेष ध्यान रखते हैं, जबकि हिन्दू समुदाय मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए जाते वक्त इन बातों का ध्यान नहीं रहते हैं. इसे हमें ठीक करना होगा."

सोनल ने आगे कहा, "भारत के ऋषि-मुनि तथा गुरुओं ने जो दृष्टांत हमें दिए, उनमें उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि यह उनकी उक्ति है, बल्कि उन्होंने हमेशा अपने दृष्टांत में कोट किया कि ऐसा उन्होंने सुना है. समाज की रीतियों, परंपराओं को ऋषियों ने आगे बढ़ाया है."

उन्होंने आगे कहा, "वर्तमान दौर में हम सामाजिक कुरीति के रूप में स्त्री और पुरुष में बढ़ते हुए भेद को पाते हैं. इस भेदभाव के कारण कला, संस्कृति सहित अन्य क्षेत्रों में कार्य करने वाली महिला विदुषियों को वह स्थान नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वह हकदार हैं."

पद्मविभूषण डॉ. सोनल ने नृत्य और संगीत को जीवन का आधार बताया और कहा, "नृत्य ही वो सर्वश्रेष्ठ योग है, जो जीवन में प्रवाह उत्पन्न करता है." उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के दशावतार का प्रसंग भी सुनाया और कहा, "कला, संस्कृति को सु²ढ़ करने का मार्ग सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् से होकर गुजरता है. जिसमें समानता, सौन्दर्य-बोध एवं कला-संस्कृति की झलक दिखती है."

मध्यप्रदेश आदिवासी लोककला परिषद के पूर्व निदेशक डॉ. कपिल तिवारी ने चर्चा में भाग लेते हुए मानव-जीवन में संस्कार, अनुशासन, आध्यात्मिकता और ज्ञान को महत्वपूर्ण तत्व बताया.

कुमार गंधर्व की बेटी कलापिनी कोमकली ने कहा कि उनका पूरा जीवन कला-संस्कृति में रचा-बसा है. बचपन से ही उन्हें यही शिक्षा मिली है. उन्होंने कहा, "कला-संस्कृति के बिना भारत देश की कल्पना ही नहीं की जा सकती. विश्व में हम जहां-जहां जाते हैं, वहां संस्कृति-कला की ही बात होती है. हमारे देश की संस्कृति सौभाग्यशाली और गौरवशाली है, जिस पर हमें गर्व है."

उन्होंने कहा, "व्यक्तित्व विकास और देश का विकास एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. लोक संगीत और लोक नाट्य को जहां से ऊर्जा प्राप्त होती है, वह आध्यात्म का ही क्षेत्र है."

उन्होंने कहा, "व्यक्ति के निर्माण से ही राष्ट्र का निर्माण होता है, इसलिए हमें शिक्षा और संस्कार के माध्यम से व्यक्तियों का निर्माण करना होगा."

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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