Krichchhra Chaturthi 2025 Puja Vidhi and Significance: रिद्धि-सिद्धि के दाता की पूजा एवं व्रत आदि के लिए चतुर्थी तिथि अत्यंत ही फलदायी मानी गई है. इस तिथि का धार्मिक महत्व तब और बढ़ जाता है जब यह मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में पड़ती है और कृच्छ्र चतुर्थी कहलाती है. इस पावन चतुर्थी पर व्रत रखने के लिए गणपति के भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं क्योंकि इसकी पूजा से उन्हें सुख-सौभाग्य और समृद्धि प्राप्ति होती है. मान्यता है कि कृच्छ्र चतुर्थी की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश अपने भक्तों के सारे दुख दूर करते हुए उन्हें मनचाहा वर प्रदान करते हैं. आइए कृच्छ्र चतुर्थी की पूजा विधि और धार्मिक महत्व को विस्तार से जानते हैं.

कृच्छ्र चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष या फिर कहें अगहन मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी 23 नवंबर 2025 की शाम को 07:24 बजे से प्रांरभ होकर 24 नवंबर 2025, सोमवार को रात्रि 09:22 बजे तक रहेगी. ऐसे में कृच्छ्र चतुर्थी की पूजा और व्रत 24 नवंबर 2025 को करना उचित रहेगा. इस दिन चतुर्थी तिथि का मध्याह्न मुहूर्त प्रात:काल 11:04 से लेकर दोपहर 01:11 बजे तक रहेगा. गणेश चतुर्थी के दिन प्रात:काल 10:19 से लेकर रात्रि 08:34 बजे तक चंद्रदर्शन वर्जित रहेगा.

कृच्छ्र चतुर्थी व्रत पूजा विधि
अगहन महीने की विनायक चतुर्थी यानि कृच्छ्र चतुर्थी वाले दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले गणपति के व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प करें. इसके बाद अपने पूजा घर या फिर घर के ईशान कोण में एक चौकी पर गणपति को लाल कपड़ा बिछाकर बिठाएं और उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं. इसके बाद गणपति का धूप, दीप, फल, फूल, दूर्वा, नैवेद्य, नारियल, पान-सुपारी आदि अर्पित करते हुए पूजन करें. गणपति को भोग में आज उनका प्रिय मोदक या लड्डू अवश्य चढ़ाएं. गणपति की पूजा में विनायक चतुर्थी व्रत की कथा जरूर कहें या फिर सुने.

कृच्छ्र चतुर्थी का धार्मिक महत्व
स्कन्दपुराण के अनुसार अगहन महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली कृच्छ्र चतुर्थी को लगातार 4 साल तक व्रत रखते हुए विधि-विधान से उद्यापन किया जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करके सभी बाधा और दुख को दूर करता है. इस व्रत में पहले साल रखे जाने वाले व्रत में सिर्फ एक समय दिन में भोजन किया जाता है जबकि दूसरे साल रखे जाने वाले व्रत रात के समय भोजन करने का नियम है. वहीं तीसरे साल बगैर अन्न के व्रत किया जाता है तो वहीं चौथे साल पूर्ण से निराहार रखते हुए गणपति के इस व्रत को रखते हैं. चार साल पूर्ण करने के बाद इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं