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This Article is From Sep 27, 2017

Maha Saptami 2017: जानिए मां कालरात्रि की पूजा व‍िध‍ि, मंत्र, स्‍तोत्र पाठ और कवच

मां कालरात्रि ही वह देवी हैं जिन्होंने मधु कैटभ जैसे असुर का वध किया था. सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की पूजा और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है.

Maha Saptami 2017: जानिए मां कालरात्रि की पूजा व‍िध‍ि, मंत्र,  स्‍तोत्र पाठ और कवच
नई द‍िल्‍ली: नवरात्र के सातवें दिन महा सप्‍तमी होती है. इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्‍वरूप कालरात्र‍ि की पूजा का विधान है. शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्‍ट लोगों का संहार करने वाला है. मां कालरात्रि ही वह देवी हैं जिन्होंने मधु कैटभ जैसे असुर का वध किया था. सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की पूजा और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. मान्‍यता है कि पूरे विध‍ि-व‍िधान से पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. यही नहीं मां के भक्तों को किसी भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता.

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काल रात्र‍ि का स्‍वरूप
शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर है. देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. देवी कालरात्रि का रंग काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है. देवी कालरात्रि का रंग काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है.

भक्‍तों के लिए अत्‍यंत शुभ है मां का ये रूप
शास्त्रों में देवी कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है. इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं, जिनमें से बिजली की तरह किरणें प्रज्वलित हो रही हैं. इनके बाल खुले और बिखरे हुए हैं जो की हवा में लहरा रहे हैं. गले में विद्युत की चमक वाली माला है. इनकी नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं. बाईं भुजा में मां ने तलवार और खड्ग धारण की है. शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गधे पर विराजमान हैं. देवी कालरात्रि का विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है अत: देवी को शुभंकरी भी कहा जाता है.

महा सप्‍तमी पूजा की व‍िध‍ि
दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां के द्वार खुल जाते हैं. पूजा शुरू करने के लिए माँ कालरात्रि के परिवार के सदस्यों, नवग्रहों, दशदिक्पाल को प्रार्थना कर आमंत्रित कर लें. सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करें. इसके बाद माता कालरात्रि जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. मंत्र है "देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विदाधातु शुभानि सा न:".  पूजा के बाद कालरात्रि मां को गुड़ का भोग लगाना चाहिए. भोग करने के बाद दान करे और एक थाली ब्राह्मण के लिए भी निकाल कर रखनी चाहिए.

शत्रुओं का नाश करने वाली हैं मां कालरात्र‍ि 

तंत्र साधना के लिए महत्‍वपूर्ण है सप्‍तमी
सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात में पूजा का व‍िशेष व‍िधान है. सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है. दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्र‍िक क्रिया की साधना करने वाले लोगों के लिए बेहद महत्‍वपूर्ण है. इस दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे होते हैं आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं. देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी जरूर करनी चाहिए. 

देवी कालरात्रि का ध्यान
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥

दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघो‌र्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघ: पार्णिकाम् मम॥

महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥

सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृद्धिदाम्॥

देवी कालरात्रि के मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

देवी कालरात्रि के स्तोत्र पाठ
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥

क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

देवी कालरात्रि के कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥

रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥

वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

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