Maha Saptami 2018: महा सप्तमी के दिन मां दुर्गा को महा स्नान कराया जाता है
नई दिल्ली:
दुर्गा पूजा (Durga Puja) 10 दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है और हर एक दिन का अपना अलग महत्व है. आखिरी के चार दिन बेहद पवित्र माने जाते हैं और इन्हें पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. नवरात्रि (Navratri) के सातवें दिन महा पूजा (Maha Puja) की शुरुआत होती है जिसे महा सप्तमी (Maha Saptami) के नाम से जाना जाता है. सप्तमी शब्द की उत्पत्ति सप्त शब्द से हुई है जिसका अर्थ है सात. सत्पमी की सुबह नवपत्रिका (Navpatrika or Nabapatrika) यानी कि नौ तरह की पत्तियों से मिलकर बनाए गए गुच्छे की पूजा कर दुर्गा आवाह्न किया जाता है. इन नौ पत्तियों को दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है. नवपत्रिका को सूर्योदय से पहले गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के पानी से स्नान कराया जाता है. इस स्नान को महास्नान (Maha Snan) कहा जाता है.
जानिए पंडाल, धुनुची डांस और सिंदूर खेला के बारे में सब कुछ
महासप्ती और नवपत्रिका पूजा कब है?
नवरात्रि के सातवें दिन को महा सप्तमी कहा जाता है. महा सप्तमी के दिन ही नवपत्रिका पूजन होता है. इस बार महा सप्तमी और नवपत्रिका पूजा 16 अक्टूबर को है.
नवपत्रिका पूजा का महत्व
दुर्गा पूजा में महा सप्तमी के दिन नवपत्रिका या नबपत्रिका पूजा का विशेष महत्व है. नवपत्रिका का इस्तेमाल दुर्गा पूजा में होता है और इसे महासप्तमी के दिन पूजा पंडाल में रखा जाात है. बंगाल में इसे कोलाबोऊ पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कोलाबाऊ को गणेश जी की पत्नी माना जाता है. बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम, त्रिपुरा और मणिपुर में नवपत्रिका पूजा धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इन इलाकों में पूजा पंडालों के अलावा किसान भी नवपत्रिका पूजा करते हैं. किसान अच्छी फसल के लिए प्रकृति को देवी मानकर उसकी आराधना करते हैं.
नवपत्रिका कैसे बनाई जाती है?
नौ अलग-अलग पेड़ों के पत्तों को मिलाकर नवपत्रिका तैयार की जाती है. इसे तैयार करने में केला, कच्वी, हल्दी, जौ, बेल पत्र, अनार, अशोक, अरूम और धान के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है. हर एक पत्ते को मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है.
केले के पत्ते: ब्राह्मणी का प्रतीक.
कच्वी (Colocasia) के पत्ते: मां काली का प्रतीक.
हल्दी के पत्ते: मां दुर्गा का प्रतीक.
जौ की बाली: देवी कार्तिकी का प्रतीक.
बेल पत्र: भगवान शिव का प्रतीक.
अनार के पत्ते: देवी रक्तदंतिका का प्रतीक.
अशोक के पत्ते: देवी सोकराहिता का प्रतीक.
अरूम के पत्ते: मां चामुंडा का प्रतीक.
धान की बाली: मां लक्ष्मी का प्रतीक
जानिए दुर्गा अष्टमी की तिथि और कन्या पूजन का सही समय
महास्पतमी के दिन होता है महास्नान
महास्पती के दिन महास्नान का विशेष महत्व है. इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के आगे शीशा रखा जाता है. शीशे पर पड़े रहे मां दुर्गा के प्रतिबिंब को स्नान कराया जाता है, जिसे महास्नान कहते हैं.
नवपत्रिका पूजन का शुभ मुहूर्त
16 अक्टूबर की सुबह ऊषाकाल का समय: 06 बजकर 01 मिनट
नवपत्रिका की पूजा विधि
- सभी नौ पत्तियों को एक साथ बांधकर उसे अलग-अलग पानी से नहलाया जाता है. सबसे पहले गंगाजल से स्नान कराया जाता है. इसके बाद बारिश के पानी, सरस्वती नदी का जल, समुद्र का जल, कमल वाले तालाब का पानी और आखिर में झरने के पानी से नवपत्रिका को स्नान कराया जाता है.
- स्नान के बाद नवपत्रिका को लाल पाड़ की साड़ी पहनाई जाती है. मान्यता है कि किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह नवपत्रिका को सजाना चाहिए.
- महास्नान के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को पंडाल में रखा जाता है.
- मां दुर्गा की प्राणप्रतिष्ठा के बाद षोडशोपचार पूजा की जाती है.
- नवपत्रिका को पूजा के स्थान पर ले जाकर चंदन और फूल अर्पित किए जाते हैं.
- फिर नवपत्रिका को गणेश जी के दाहिने ओर रखा जाता है.
- आखिर में मां दुर्गा की महा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया जात है.
Video: कोलाकात में कुछ ऐसा है दुर्गा पूजा का नजारा
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महासप्ती और नवपत्रिका पूजा कब है?
नवरात्रि के सातवें दिन को महा सप्तमी कहा जाता है. महा सप्तमी के दिन ही नवपत्रिका पूजन होता है. इस बार महा सप्तमी और नवपत्रिका पूजा 16 अक्टूबर को है.
नवपत्रिका पूजा का महत्व
दुर्गा पूजा में महा सप्तमी के दिन नवपत्रिका या नबपत्रिका पूजा का विशेष महत्व है. नवपत्रिका का इस्तेमाल दुर्गा पूजा में होता है और इसे महासप्तमी के दिन पूजा पंडाल में रखा जाात है. बंगाल में इसे कोलाबोऊ पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कोलाबाऊ को गणेश जी की पत्नी माना जाता है. बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम, त्रिपुरा और मणिपुर में नवपत्रिका पूजा धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इन इलाकों में पूजा पंडालों के अलावा किसान भी नवपत्रिका पूजा करते हैं. किसान अच्छी फसल के लिए प्रकृति को देवी मानकर उसकी आराधना करते हैं.
नवपत्रिका कैसे बनाई जाती है?
नौ अलग-अलग पेड़ों के पत्तों को मिलाकर नवपत्रिका तैयार की जाती है. इसे तैयार करने में केला, कच्वी, हल्दी, जौ, बेल पत्र, अनार, अशोक, अरूम और धान के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है. हर एक पत्ते को मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है.
केले के पत्ते: ब्राह्मणी का प्रतीक.
कच्वी (Colocasia) के पत्ते: मां काली का प्रतीक.
हल्दी के पत्ते: मां दुर्गा का प्रतीक.
जौ की बाली: देवी कार्तिकी का प्रतीक.
बेल पत्र: भगवान शिव का प्रतीक.
अनार के पत्ते: देवी रक्तदंतिका का प्रतीक.
अशोक के पत्ते: देवी सोकराहिता का प्रतीक.
अरूम के पत्ते: मां चामुंडा का प्रतीक.
धान की बाली: मां लक्ष्मी का प्रतीक
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महास्पतमी के दिन होता है महास्नान
महास्पती के दिन महास्नान का विशेष महत्व है. इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के आगे शीशा रखा जाता है. शीशे पर पड़े रहे मां दुर्गा के प्रतिबिंब को स्नान कराया जाता है, जिसे महास्नान कहते हैं.
नवपत्रिका पूजन का शुभ मुहूर्त
16 अक्टूबर की सुबह ऊषाकाल का समय: 06 बजकर 01 मिनट
नवपत्रिका की पूजा विधि
- सभी नौ पत्तियों को एक साथ बांधकर उसे अलग-अलग पानी से नहलाया जाता है. सबसे पहले गंगाजल से स्नान कराया जाता है. इसके बाद बारिश के पानी, सरस्वती नदी का जल, समुद्र का जल, कमल वाले तालाब का पानी और आखिर में झरने के पानी से नवपत्रिका को स्नान कराया जाता है.
- स्नान के बाद नवपत्रिका को लाल पाड़ की साड़ी पहनाई जाती है. मान्यता है कि किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह नवपत्रिका को सजाना चाहिए.
- महास्नान के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को पंडाल में रखा जाता है.
- मां दुर्गा की प्राणप्रतिष्ठा के बाद षोडशोपचार पूजा की जाती है.
- नवपत्रिका को पूजा के स्थान पर ले जाकर चंदन और फूल अर्पित किए जाते हैं.
- फिर नवपत्रिका को गणेश जी के दाहिने ओर रखा जाता है.
- आखिर में मां दुर्गा की महा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया जात है.
Video: कोलाकात में कुछ ऐसा है दुर्गा पूजा का नजारा
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