जितिया व्रत 2018: जानिए इस व्रत की पूरी कहानी
नई दिल्ली:
Jitiya Vrat 2018: हिंदू धर्म में बच्चों के लिए गिने-चुने व्रत ही रखे जाते हैं. उन्हीं व्रतों में से एक है जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika) या जितिया व्रत (Jitiya Vrat). यह व्रत महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए करती हैं. यह व्रत हर साल अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी को मनाया जाता है. तीन दिन किए जाने वाले इस व्रत की हर दिन की प्रक्रियाएं अलग हैं, लेकिन मान्यता एक ही है. इस व्रत की कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है.
जितिया व्रत 2018: जानिए जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व
यहां जानिए जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की पूरी कहानी
बात महाभारत काल की है जब युद्ध में पांडवों ने छल से द्रोणाचार्य का सिर काट दिया था. इस बात को जान द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हुए. अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गए और वहां सो रहे पांच लोगों को मार डाला. लेकिन वो पांच लोग पांडव नहीं थे, बल्कि उनके और द्रौपदी के पांच पुत्र थे.
पांडव पुत्रों की मृत्यु की खबर सुन अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनसे उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा पहले ही अपने पिता की मृत्यु की खबर से क्रोधित थे और अब मणि छिनने से और भी आग-बबूला हो गए. इसीलिए अब उन्होंने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को नुकसान पहुंचाना चाहा. इसके लिए उन्होंने अभिमन्यु के अजन्मे बच्चे पर अपना निशाना साधा.
अभिमन्यु का पुत्र अभी उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ में ही था. अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. ये बात भगवान श्रीकृष्ण को पता चली. उन्होंने अर्जुन के पोते को बचाने के लिए अपने सभी पुण्यों के फल से उत्तरा की अजन्मी संतान को वापस गर्भ में ही जीवित कर दिया. इसी वजह से अर्जुन के इस पोते का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा.
महाभारत में जीवित्पुत्रिका के मरकर फिर जीवित होने की इस कथा के चलते ही आज माताएं जितिया व्रत रखती हैं. इस मान्यता के साथ कि उनके बच्चों को भी लंबी उम्र मिले.
जितिया व्रत 2018: जानिए जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व
यहां जानिए जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की पूरी कहानी
बात महाभारत काल की है जब युद्ध में पांडवों ने छल से द्रोणाचार्य का सिर काट दिया था. इस बात को जान द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हुए. अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गए और वहां सो रहे पांच लोगों को मार डाला. लेकिन वो पांच लोग पांडव नहीं थे, बल्कि उनके और द्रौपदी के पांच पुत्र थे.
पांडव पुत्रों की मृत्यु की खबर सुन अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनसे उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा पहले ही अपने पिता की मृत्यु की खबर से क्रोधित थे और अब मणि छिनने से और भी आग-बबूला हो गए. इसीलिए अब उन्होंने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को नुकसान पहुंचाना चाहा. इसके लिए उन्होंने अभिमन्यु के अजन्मे बच्चे पर अपना निशाना साधा.
अभिमन्यु का पुत्र अभी उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ में ही था. अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. ये बात भगवान श्रीकृष्ण को पता चली. उन्होंने अर्जुन के पोते को बचाने के लिए अपने सभी पुण्यों के फल से उत्तरा की अजन्मी संतान को वापस गर्भ में ही जीवित कर दिया. इसी वजह से अर्जुन के इस पोते का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा.
महाभारत में जीवित्पुत्रिका के मरकर फिर जीवित होने की इस कथा के चलते ही आज माताएं जितिया व्रत रखती हैं. इस मान्यता के साथ कि उनके बच्चों को भी लंबी उम्र मिले.
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