'सिटी ऑफ लेक्स' के नाम से मशहूर शहर उदयपुर में स्थित है प्रसिद्ध ऐतिहासिक सास-बहू का मंदिर। सास बड़ी होती है, शायद इसलिए सास को सम्मान देने के लिए सास का मंदिर बहू से मंदिर से थोड़ा बड़ा है और बहू का मंदिर सास के मंदिर से थोड़ा छोटा है।
यह मंदिर 1100 साल पुराना है। इसे कच्छपघात राजवंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने बनवाया था। उन्होंने बड़ा मंदिर रानी मां के लिए और छोटा मंदिर रानी के लिए बनवाया था। इसलिए ये मंदिर सास-बहू के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
सहस्रबाहु मंदिर भी कहते हैं इसे
इस मंदिर में जगतपालक भगवान श्रीविष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी प्रतिमा है। यह प्रतिमा सौ भुजाओं से युक्त है। इस वजह से यह मंदिर सहस्रबाहु मंदिर भी कहा जाता है।
बहू के मंदिर की छत अष्टकोणीय है, जो सुंदर नक्काशी से सजी हैं। मंदिर की दीवालों पर रामायण की घटनाएं उकेरी गई हैं। मंदिर के एक मंच पर त्रिमूर्ति (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) की छवि खुदी है।
चूने और रेत से बंद करवा दिया था मंदिर
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि जब दुर्ग पर मुगलों ने कब्जा किया था, तो सास-बहू मंदिर को चूने और रेत से भरवा कर बंद करवा दिया था। समय के साथ यह मंदिर एक रेत के टापू जैसे लगने लगा था।
यह मंदिर दुबारा तब खुला जब उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों ने दुर्ग पर कब्जा किया।
यह मंदिर 1100 साल पुराना है। इसे कच्छपघात राजवंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने बनवाया था। उन्होंने बड़ा मंदिर रानी मां के लिए और छोटा मंदिर रानी के लिए बनवाया था। इसलिए ये मंदिर सास-बहू के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
सहस्रबाहु मंदिर भी कहते हैं इसे
इस मंदिर में जगतपालक भगवान श्रीविष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी प्रतिमा है। यह प्रतिमा सौ भुजाओं से युक्त है। इस वजह से यह मंदिर सहस्रबाहु मंदिर भी कहा जाता है।
बहू के मंदिर की छत अष्टकोणीय है, जो सुंदर नक्काशी से सजी हैं। मंदिर की दीवालों पर रामायण की घटनाएं उकेरी गई हैं। मंदिर के एक मंच पर त्रिमूर्ति (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) की छवि खुदी है।
चूने और रेत से बंद करवा दिया था मंदिर
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि जब दुर्ग पर मुगलों ने कब्जा किया था, तो सास-बहू मंदिर को चूने और रेत से भरवा कर बंद करवा दिया था। समय के साथ यह मंदिर एक रेत के टापू जैसे लगने लगा था।
यह मंदिर दुबारा तब खुला जब उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों ने दुर्ग पर कब्जा किया।
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