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Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: 'हिंद की चादर' कहलाने वाले सिखों के नौवें गुरु कैसे बने त्यागमल से तेग बहादुर?

Guru Tegh Bahadur 350th martyrdom anniversary: गुरु तेग बहादुर जी सिर्फ सिखी परंपरा के नहीं बल्कि पूरे भारत के गौरव हैं, जिन्होंने अपना शीश कटा देना उचित समझा लेकिन धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं किया. ​सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर के 350वीं शहादत दिवस का महत्व और उनसे जुड़े गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के बारे में जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: 'हिंद की चादर' कहलाने वाले सिखों के नौवें गुरु कैसे बने त्यागमल से तेग बहादुर?
Guru Tegh Bahadur 350th martyrdom anniversary: गुरु तेग बहादुर का 350वां शहीदी दिवस
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Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2025: सिख धर्म में गुरु तेग बहादुर जी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है क्योंकि उन्होंने मुगलों के अत्याचार से पीड़ित हिंदू समाज को बचाने के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया था. हिंद की चादर कहलाने वाले जिस 'सच्चे पातशाह' गुरुतेग बहादुर ने अपना सिर कलम कराना मंजूर किया लेकिन इस्लाम को स्वीकार नहीं किया आज उनका 350वां बलिदान दिवस मनाया जा रहा है. सिखी परंपरा के इस महान गुरु से जुड़ा गुरुद्वारा देश की राजधानी दिल्ली में स्थित है, जिसे लोग सीसगंज साहिब के नाम से जानते हैं. आइए इसके धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

गुरु तेग बहादुर को क्यों कहते हैं 'हिंद की चादर'

गुरु तेग बहादुर को 'हिंद की चादर' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने मुगलों के जुल्मों-सितम के आगे घुटने नहीं टेके और अपने सिद्धांत पर अडिग रहते हुए भारत के आत्मसम्मान को बनाए रखा. उन्होंने मुगलों से पीड़ित कश्मीरी पंडितों को भरोसा दिलाया था कि उनके बलिदान के बाद औरंगजेब की सेना के अत्याचार खत्म हो जाएंगे. इसके बाद कश्मीरी पंडितों के विश्वास और अधिकारों की रक्षा के लिए जो उन्होंने बलिदान दिया, उसके सम्मान में उन्हें 'हिंद की चादर' सम्मान से नवाजा गया. 

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त्यागमल से कैसे बने तेग बहादुर

सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था. उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद साहिब और माता का नाम नानकी था. गरु हरगोविंद सिंह ​सिखों के छठे गुरु थे. गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था. मान्यता है कि महज 13 साल की अवस्था में जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ने के लिए तलवार उठा ली तो उनके पिता ने उनका नाम बदलकर तेग बहादुर रख दिया था. गुरु तेग हादुर ने लंबे समय तक बकाला में आध्यात्मिक साधना की और बाद में सिखों के 9वें गुरु बने. 

गुरुद्वारा सीसगंज साहिब

देश की राजधानी दिल्ली के लाल किले के पास गुरुद्वारा सीसगंज साहिब है. बेहद भीड़-भाड़ वाले इस स्थान पर जाने पर आपको उस इतिहास के पन्नों को पलटने का अवसर प्राप्त होगा जिसका संबंध सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी से जुड़ा है. यह वही स्थान है जहां पर गुरुतेग बहादुर ने औरंगजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाने का विरोध किया था. इसके बाद औरंगजेब ने गुरुतेग बहादुर जी पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बनाया था, लेकिन जब गुरु साहिब ने इससे इंकार कर दिया तो उसने उनका सिर काटने का आदेश दे दिया था. 

मान्यता है कि जिस स्थान पर गुरुतेग बहादुर जी ने अपना बलिदान दिया था आज उसी स्थान पर पवित्र गुरुद्वारा सीसगंज साहिब है. बेहद खूबसूरत इस गुरुद्वारे में हर समय शबद-कीर्तन और सेवा कार्य चलता रहता है. इस गुरुद्वारे में न सिर्फ सिखी परंपरा बल्कि तमाम धर्म से जुड़े लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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