फाइल फोटो
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है राज्य का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान राजिम। इसे पद्मवातीपुरी, पंचकोशी, छोटा काशी आदि नामों से भी जाना जाता है। यह स्थान छत्तीसगढ़ में ‘त्रिवेणी संगम’ के लिए प्रसिद्ध है, जहां महानदी, पैरी और सौंढुल नदियां पवित्र संगम बनाती हैं, जिसका काफी महत्त्व है। यही कारण है कि धार्मिक दृष्टि यह ‘छत्तीसगढ़ का प्रयाग’ कहलाता है।
प्रयाग, अयोध्या और गया के समान है महत्त्व...
यह संगम स्थान यहां स्थापित प्रसिद्ध पंचमुखी कुलेश्वर मंदिर और राजीव लोचन मंदिर के पास है। मान्यता के अनुसार इस संगम स्थल का महत्त्व उत्तर प्रदेश के प्रयाग और अयोध्या तथा बिहार के गया तीर्थ के बराबर है। इसलिए यहां भी हिन्दू श्रद्धालु श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण, दान, दशकर्म आदि करते हैं।
यहां लगता है देश का पांचवां कुंभ मेला...
जिस प्रकार हरिद्वार, नासिक, इलाहाबाद और उज्जैन में कुंभ मेला लगता है, वैसे ही यहां भी कुंभ का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश भर के प्रख्यात साधु-संत और अखाड़ों का जमावड़ा होता है। यही कारण है कि इसे देश का पांचवां कुंभ कहा जाता है।
वनवास में राम-सीता-लक्ष्मण आए थे यहां...
लोगों का मानना है कि वनवास के दौरान भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण ने यहां अपनी कुटिया बनाई थी और कुछ दिनों तक निवास किया था। इस प्रकार इस स्थान की प्राचीनता त्रेतायुग से जुड़ी है।
भगवान श्रीराम हैं यहां के भांजा...
ग्रंथों में वर्णन है कि छत्तीसगढ़ की धरती एक ऐसी धरती है, जहां भगवान श्री राम ने भ्रमण किया। कहते हैं कि राजिम के पंचमुखी कुलेश्वर मंदिर को माता जानकी (सीता) ने बनवाया था। साथ ही यह जगह उनकी मां कौशल्या की जन्मभूमि है। लिहाजा भगवान श्रीराम यहां के भांजा भी हैं।
प्रयाग, अयोध्या और गया के समान है महत्त्व...
यह संगम स्थान यहां स्थापित प्रसिद्ध पंचमुखी कुलेश्वर मंदिर और राजीव लोचन मंदिर के पास है। मान्यता के अनुसार इस संगम स्थल का महत्त्व उत्तर प्रदेश के प्रयाग और अयोध्या तथा बिहार के गया तीर्थ के बराबर है। इसलिए यहां भी हिन्दू श्रद्धालु श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण, दान, दशकर्म आदि करते हैं।
यहां लगता है देश का पांचवां कुंभ मेला...
जिस प्रकार हरिद्वार, नासिक, इलाहाबाद और उज्जैन में कुंभ मेला लगता है, वैसे ही यहां भी कुंभ का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश भर के प्रख्यात साधु-संत और अखाड़ों का जमावड़ा होता है। यही कारण है कि इसे देश का पांचवां कुंभ कहा जाता है।
वनवास में राम-सीता-लक्ष्मण आए थे यहां...
लोगों का मानना है कि वनवास के दौरान भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण ने यहां अपनी कुटिया बनाई थी और कुछ दिनों तक निवास किया था। इस प्रकार इस स्थान की प्राचीनता त्रेतायुग से जुड़ी है।
भगवान श्रीराम हैं यहां के भांजा...
ग्रंथों में वर्णन है कि छत्तीसगढ़ की धरती एक ऐसी धरती है, जहां भगवान श्री राम ने भ्रमण किया। कहते हैं कि राजिम के पंचमुखी कुलेश्वर मंदिर को माता जानकी (सीता) ने बनवाया था। साथ ही यह जगह उनकी मां कौशल्या की जन्मभूमि है। लिहाजा भगवान श्रीराम यहां के भांजा भी हैं।
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