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Nagchandreshwar Temple: सावन माह में नागपंचमी (nag panchami) का पर्व पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस बार नागपंचमी का पर्व 9 अगस्त को मनाया जा रहा है. हर साल नागपंचमी के दिन उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के शिखर पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खोले जाते हैं. आपको बता दें कि 11वीं शताब्दी के इस मंदिर के पट साल में केवल एक बार यानी नागपंचमी के दिन ही खोले जाते हैं. नाग पंचमी के दिन यहां भक्त नागचंद्रेश्वर (nagchandreshwar puja) की त्रिकाल यानी तीन पहर की पूजा की जाती है. ये मंदिर अपने आप में इसलिए खास है क्योंकि विश्व में कहीं भी नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा भगवान शिव के साथ नहीं है.
आज है नाग पंचमी, जानिए पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में
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इस दिन खुलेगा नागचंद्रेश्वर मंदिर | Nagchandreshwar mandir open date
श्रद्धालुओं के लिए नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट गुरुवार की रात को 12 बजे खुलेंगे और 9 अगस्त यानी शुक्रवार की रात को 12 बजे तक दर्शन के लिए खुले रहेंगे. यहां भक्त नागचंद्रेश्वर और महाकाल के दर्शन कर सकेंगे. महाकाल के दर्शन के लिए त्रिवेणी संग्रहालय के रास्ते से जाया जाएगा. आपको बता दें कि ओंकारेश्वर मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह के ऊपर स्थित है.इसके शीर्ष पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है जो साल भर के इंतजार के बाद केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है. यहां नागपंचमी पर लाखों भक्तों की भीड़ लाइन में लगकर भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करती है.
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नेपाल से लाई गई थी नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा | Nagchandreshwar idol was bring from nepal
कहा जाता है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित प्रतिमा 11वीं सदी में स्थापित की गई थी. इस मंदिर का निर्माण और प्रतिमा की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी. ये सात फनों वाले नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा है. इसमे नाग देवता अपने सात फन फैलाए दिखते हैं. इस प्रतिमा के ठीक ऊपर भगवान शिव और मां पार्वती की मूर्ति है. नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा के एक तरफ नंदी की मूर्ति है और दूसरी तरफ सिंह की मूर्ति स्थापित है. ये दोनों ही शिव और पार्वती के वाहन कहे जाते हैं. नंदी भगवान शिव का वाहन कहलाता है और सिंह मां पार्वती का वाहन है.
नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा नेपाल से लाई गई है और कहा जाता है कि नागचंद्रेश्वर की ऐसी प्रतिमा विश्व में कहीं और नहीं है. अभी तक दुनिया ने सात फन वाले नाग देवता यानी भगवान नागचंद्रेश्वर को भगवान शिव की शय्या के रूप में देखा है. लेकिन इस मंदिर में नागचंद्रेश्वर भगवान शिव के साथ हैं. यहां भगवान विष्णु की जगह भगवान शिव सर्प शय्या के साथ दिखते हैं. इस मंदिर की एक अनोखी मान्यता है कि यहां महाकाल के दर्शन करने पर जातक सर्प दोष से मुक्त हो जाता है.
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