दांडी हनुमान मंदिर में स्थापित हनुमानजी और मकरध्वज की प्रतिमाएं
हिंदू धर्म को मानने वाले और हनुमानजी के भक्तों को ये बात पता है कि भगवान श्रीराम के परम भक्त और भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे. लेकिन अनेक ग्रंथों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है, जिसका नाम मकरध्वज बताया गया है. कहते हैं, मकरध्वज की उत्पत्ति हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली के गर्भ से हुआ थी. पसीने यानी स्वेद से उत्पन्न होने के कारण मकरध्वज को स्वेदज भी कहा जाता है.
गुजरात में द्वारका से लगभग चार मील की दूरी पर स्थित है बेटद्वारका. यहां स्थापित एक मंदिर में मकरध्वज के साथ हनुमानजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है. बेटद्वारका का यह मंदिर दांडी हनुमान मंदिर के नाम से से प्रसिद्ध है. इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहां हनुमानजी पहली बार अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे.
मंदिर में प्रवेश करते ही सामने हनुमानपुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है और वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है. कहते हैं, भारत में यह पहला मंदिर है जहां पिता-पुत्र, हनुमानजी और मकरध्वज, का मिलन दिखाया गया है. लगभग 500 वर्ष पुराने दांडी हनुमान मंदिर में स्थापित इन दोनों प्रतिमाओं की एक विशेषता यह है कि इन दोनों प्रतिमाओं के हाथों कोई अस्त्र या शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में है. शास्त्रों में आनंदित मुद्रा वाली प्रतिमाओं की काफी प्रशंसा की गई है.
दांडी हनुमान मंदिर में आनंदित मुद्रा में पिता-पुत्र के मिलन वाली इन प्रतिमाओं के दर्शन को लेकर यहां एक प्रचलित मान्यता यह है कि जिन पिता-पुत्रों का आपस में नहीं बनता है या कोई मतभेद या मनमुटाव होता है, यदि वे इस मंदिर में इकट्ठे आकर दर्शन करते हैं, तो उनके सारे अनबन समाप्त हो जाते हैं और उनका आपसी लगाव बढ़ जाता है.
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गुजरात में द्वारका से लगभग चार मील की दूरी पर स्थित है बेटद्वारका. यहां स्थापित एक मंदिर में मकरध्वज के साथ हनुमानजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है. बेटद्वारका का यह मंदिर दांडी हनुमान मंदिर के नाम से से प्रसिद्ध है. इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहां हनुमानजी पहली बार अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे.
मंदिर में प्रवेश करते ही सामने हनुमानपुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है और वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है. कहते हैं, भारत में यह पहला मंदिर है जहां पिता-पुत्र, हनुमानजी और मकरध्वज, का मिलन दिखाया गया है. लगभग 500 वर्ष पुराने दांडी हनुमान मंदिर में स्थापित इन दोनों प्रतिमाओं की एक विशेषता यह है कि इन दोनों प्रतिमाओं के हाथों कोई अस्त्र या शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में है. शास्त्रों में आनंदित मुद्रा वाली प्रतिमाओं की काफी प्रशंसा की गई है.
दांडी हनुमान मंदिर में आनंदित मुद्रा में पिता-पुत्र के मिलन वाली इन प्रतिमाओं के दर्शन को लेकर यहां एक प्रचलित मान्यता यह है कि जिन पिता-पुत्रों का आपस में नहीं बनता है या कोई मतभेद या मनमुटाव होता है, यदि वे इस मंदिर में इकट्ठे आकर दर्शन करते हैं, तो उनके सारे अनबन समाप्त हो जाते हैं और उनका आपसी लगाव बढ़ जाता है.
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