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Chhath Puja 2025: छठ पर क्यों होती है सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा? जानें धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व

Chhath Puja 2025 Surya Bhagwan: सनातन परंपरा में भगवान भास्कर या फिर कहें सूर्य एक ऐसे देवता हैं जिनका दर्शन हमें हर रोज होता है. पंचदेवों में से एक सूर्यदेव का उषा और प्रत्युषा से क्या संबंध है? छठ पर्व पर सूर्य एवं छठी मैया की साधना-आराधना का धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

Chhath Puja 2025: छठ पर क्यों होती है सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा? जानें धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व
Chhath Puja 2025: सूर्यदेव एवं षष्ठी माता की पूजा का धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व 
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Chhath Puja 2025 Significance:  सनतान परंपरा में छठ महापर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन दर्शन, आत्मशुद्धि और सामाजिक सामंजस्य का महोत्सव है. छठ व्रत सूर्योपासना और षष्ठी देवी की आराधना का अद्वितीय संगम है. यह विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र का पर्व है, परन्तु आज प्रवासी भारतीय समुदाय के कारण यह विश्वव्यापी बन चुका है. छठ पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्राकृतिक आराधना व मूर्तिपूजा नहीं बल्कि सूर्य और जल की उपासना है. कठोर व्रत नियम एवं चार दिन का तप, ब्रह्मचर्य, निराहार और संयम से जुड़े इस महापर्व में भगवान सूर्य की पूजा का क्या महत्व है, आइए इसे पटना के जाने-माने ज्योतिषाचार्य पं. राजनाथ झा से जानते हैं. 

सूर्य पूजा का धार्मिक पक्ष 

हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्यदेव की आराधना से कर्ण का जन्म हुआ. द्रौपदी ने सूर्यदेव से अक्षयपात्र प्राप्त किया. इससे सूर्यदेव के 'अन्नदाता' और 'पालनकर्ता' स्वरूप की पुष्टि होती है. पुराणों में षष्ठी देवी और स्कन्दपुराण में कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर सूर्यपूजन से पाप नाश होता है. मार्कण्डेयपुराण में "षष्ठयः पूजनमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते." पद्मपुराण में कार्तिक मास में स्नान करने के बाद तन-मन से शुद्ध होकर सूर्य को अर्घ्य देने का विधान.

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यहाँ छठ व्रत का स्पष्ट पुराणिक स्वरूप मिलता है. श्रीम‌द्भागवत महापुराणभागवत में सूर्यवंश की महिमा वर्णित है. “सूर्यो वंश्यः प्रजासृष्ट्यै लोकानां चानुग्रहार्थिनः." (भागवत ९.१.१७) . इससे छठ व्रत की सूर्यवंशी परंपरा की पुष्टि होती है. लोक परंपरा चार दिनों का विधान है जिसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य, उषा अर्घ्य लोकगीत, आस्था और सामाजिक एकता इस व्रत को जन-जन का महापर्व बना देते हैं.

सनातन धर्म में उषा और प्रत्युषा को सूर्य की पत्नियां माना जाता है, जो सूर्य की शक्तियों के स्रोत हैं; उषा सूर्य की पहली किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं और प्रत्युषा अंतिम किरण का, जो क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त को दर्शाती हैं. उषा एक वैदिक देवी हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है और वह सूर्योदय की देवी हैं, जबकि प्रत्युषा गोधूलि या संध्याकाल की देवी हैं, जो शाम की अंतिम किरणों का प्रतीक हैं.

छठ महापर्व ज्योतिषीय महत्व 

छठ महापर्व का ज्योतिषीय पक्ष इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाता है. ज्योतिष में सूर्य आत्मा, पिता, तेज, स्वास्थ्य और शासन के कारक हैं. नीच अथवा अशुभ स्थिति में नेत्रदोष, अस्थिरोग, आत्मबल की कमी, चर्म रोग, अप्रतिष्ठा के कारक होते हैं. कार्तिक महीने में सूर्य तुला राशि में नीच के होते हैं. नीचस्थ सूर्य रहने के कारण सूर्य की उपासना इस महीने में परम आवश्यक है.

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मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है - "षष्ठयाः पूजनमात्रेण सर्वरोगैः प्रमुच्यते.” कार्तिक महीने में षष्ठी तिथि को सूर्य पूजन करने से शारीरिक, मानसिक और पारिवारिक रोग-शांति हेतु उत्तम मानी जाती है. ज्योतिष के अनुसार रोगनाश, दीर्घायु, संतति, पितृदोष शांति, आत्मबल और तेज की वृद्धि आदि के लिए छठ व्रत की पूजा में की जाने वाली सूर्योपासना लोकानुकूल उपाय है.

प्राचीन काल से होती रही है सूर्य उपासना

सूर्य की उपासना जो आदि काल से ही न केवल हमारे देश में बल्कि, विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में भक्ति एवं श्रद्धा के साथ की जाती है. ऋग्वेद में कहा गया है कि सूर्य आत्मा जगतस्तस्थूषश्च अर्थात सूर्य स्थवर और जंगम की आत्मा है. वेदादि पुराण आदि में सूर्य को परमात्मा अंतरात्मा आदि से प्रतिपादित किया गया है. ज्योतिष के अनुसार सप्तमी तिथि के स्वामी भगवान सूर्य होते हैं, जिनकी पूजा सकाम और निष्काम दोनों भावों से किया जाता है. भारत में सूर्योपासना ऋग्वेद काल से होती आ रही है. मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है.

छठ पूजा से छठी मैया से क्या है जुड़ाव? 

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छठ पर्व के संबंध में एक कथा स्कंद देवता के जन्म से जुड़ी हुई है. गंगा देवी ने एक स्कंधाकार बालक को जन्म लिया, जिसे सरकंड के वन में छोड़ दिया. उस वन में छः कृतिकाएँ निवास करती थीं. उन सभी ने स्कंध का लालन-पालन किया. इसी कारण 'स्कंध' नाम पड़ा. ये कृत्तिकाएँ कार्तिक की षष्ठमाताएँ कहलायी, जिन्हें इस 'छठ माता' या 'षष्ठी मईया' कहते हैं.

यह घटना जिस माह में घटी उसका नाम 'कार्तिक' पड़ा. इसलिए यह व्रत प्राचीन काल में 'स्कंध षष्ठी' के नाम से प्रसिद्ध था. इस कारण इस पर्व को कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को मनाया जाने लगा. श्रीमद्देवी भागवत के अनुसार मूल प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न होने के कारण इस देवी का नाम षष्ठी देवी पड़ा जो सूर्य की शक्ति हैं जिनमें रोगमुक्त करने की विशेष शक्ति है. अतएव विशेषतः महिला वर्ग छठ माता या छठ महारानी कहकर प्रार्थना करती हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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