गुप्त नवरात्रि में देवी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के समय करें इन मंत्रों का जाप

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या देवियों तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुनेश्‍वरी, छिन्‍नमस्ता, काली, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी की गुप्त तरीके से पूजा-उपासना का विधान है. गुप्त नवरात्रि में माता को प्रसन्न करने के लिए पूजा के समय कुछ मंत्रों का जाप किया जाता है. कहते हैं कि इन मंत्रों के जाप से व्यक्ति को सुख, शांति और धन की प्राप्ति होती है.

गुप्त नवरात्रि में देवी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के समय करें इन मंत्रों का जाप

मां दुर्गा की पानी हैं कृपा, तो पूजा के समय इन मंत्रों का जरूर करें जाप

नई दिल्ली:

माघ मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि यानि 2 फरवरी से गुप्त नवरात्रि शुरू हो चुके हैं, जो 10 फरवरी को समाप्त होंगे. ज्ञात हो कि वर्ष में चार नवरात्रि मनाई जाती है. इनमें दो गुप्त नवरात्रि क्रमशः माघ और आषाढ़ में मनाई जाती है. वहीं, दूसरी नवरात्रि चैत्र और चौथी नवरात्रि अश्विन में मनाई जाती है. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्‍वरूप मां शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा होगी है. बता दें कि गुप्त नवरात्रि माघ व आषाढ़ में आती है. गुप्त नवरात्रि में माता के नौ रूपों की नहीं बल्कि 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है.

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या देवियों तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुनेश्‍वरी, छिन्‍नमस्ता, काली, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी की गुप्त तरीके से पूजा-उपासना का विधान है. मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में मां की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. गुप्त नवरात्रि में माता को प्रसन्न करने के लिए पूजा के समय कुछ मंत्रों का जाप किया जाता है. अगर आप भी मां दुर्गा की कृपा पाना चाहते हैं, पूजा के समय इन प्रभावशाली मंत्रों का जाप जरूर करें. कहते हैं कि इन मंत्रों के जाप से व्यक्ति को सुख, शांति और धन की प्राप्ति होती है.

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम |

लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम ||

शान्तिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्नदर्शने |

ग्रहपीडासु चोग्रासु माहात्म्यं श्रृणुयान्मम ||

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देहि सौभाग्य आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि।।

'धर्म्याणि देवि, सकलानि सदैव कर्माएयत्यादृत: प्रतिदिनं सुकृति करोति।

स्वर्गं प्रयाति च ततो भवानी प्रवती प्रसादात् लोकत्रयेऽपि फलदा तनु देवि, लेन।।'

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दुर्गा स्तुति

दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये

ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।

नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः

कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥ १ ॥

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त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्

त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।

त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं

किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥

या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया

देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।

त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता

भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥

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स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत्

त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।

सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-

स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥

तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय-

स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।

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ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-

च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥

षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-

स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।

तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके

त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥

॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)