आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले के मुधोल क्षेत्र में है एक गांव, 'बासर'. इस गांव में गोदावरी के तट पर है विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती जी का प्राचीन मंदिर. बासर स्थित इस मंदिर के विषय में प्रचलित मान्यता है कि महाभारत के रचयित वेद व्यास जब मानसिक उलझनों से उलझे हुए थे तब शांति के लिए तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े, अपने मुनि वृन्दों सहित उत्तर भारत की तीर्थ यात्राए कर दंडकारण्य (बासर का प्राचीन नाम) पहुंचे. उन्होंने गोदावरी नदी के तट के सौंदर्य को देख कर कुछ समय के लिए यहीं पर रुक गए.
कहते हैं कि मां सरस्वती के मंदिर से थोडी दूर स्थित दत्त मंदिर से होते हुए मंदिर तक गोदावरी नदी में कभी एक सुरंग हुआ करती थी, जिसके द्वारा उस समय के महाराज पूजा के लिए आया-जाया करते थे. ऐसा कहा जाता है कि यहीं वाल्मीकि ऋषि ने रामायण लेखन प्रारंभ करने से पूर्व मां सरस्वती जी को प्रतिष्ठित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था. इस मंदिर के निकट ही वाल्मीकिजी की संगमरमर की समाधि भी बनी है.
मंदिर के गर्भगृह, गोपुरम, परिक्रमा मार्ग आदि इसकी निर्माण योजना का हिस्सा हैं. मंदिर में केंद्रीय प्रतिमा सरस्वती जी की है, साथ ही लक्ष्मी जी भी विराजित हैं. सरस्वती जी की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में 4 फुट ऊंची है. मंदिर में एक स्तंभ भी है जिसमें से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं. यहां की विशिष्ट धार्मिक रीति अक्षरआराधना कहलाती है. इसमें बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारंभ कराने से पूर्व अक्षराभिषेक हेतु यहां लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है.
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कहते हैं कि मां सरस्वती के मंदिर से थोडी दूर स्थित दत्त मंदिर से होते हुए मंदिर तक गोदावरी नदी में कभी एक सुरंग हुआ करती थी, जिसके द्वारा उस समय के महाराज पूजा के लिए आया-जाया करते थे. ऐसा कहा जाता है कि यहीं वाल्मीकि ऋषि ने रामायण लेखन प्रारंभ करने से पूर्व मां सरस्वती जी को प्रतिष्ठित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था. इस मंदिर के निकट ही वाल्मीकिजी की संगमरमर की समाधि भी बनी है.
मंदिर के गर्भगृह, गोपुरम, परिक्रमा मार्ग आदि इसकी निर्माण योजना का हिस्सा हैं. मंदिर में केंद्रीय प्रतिमा सरस्वती जी की है, साथ ही लक्ष्मी जी भी विराजित हैं. सरस्वती जी की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में 4 फुट ऊंची है. मंदिर में एक स्तंभ भी है जिसमें से संगीत के सातों स्वर सुने जा सकते हैं. यहां की विशिष्ट धार्मिक रीति अक्षरआराधना कहलाती है. इसमें बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारंभ कराने से पूर्व अक्षराभिषेक हेतु यहां लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है.
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