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शादी के 45 दिन बाद ही नई नवेली दुल्हन को जाना चाहिए Honeymoon पर, इसके पीछे है बड़ी ज्योतिषीय वजह...!

यह अंधविश्वास नहीं बल्कि शरीर, मन और ग्रहों को संतुलित करने के लिए जरूरी हैं. आइए जानते हैं कैसे...

शादी के 45 दिन बाद ही नई नवेली दुल्हन को जाना चाहिए Honeymoon पर, इसके पीछे है बड़ी ज्योतिषीय वजह...!
शास्त्रों के अनुसार, जब कोई स्त्री विवाह के बाद गृहस्थ जीवन में प्रवेश करती है, तब उसे शुद्ध और संयमित आचरण करना चाहिए.

Post-Marital Physical and Emotional Adjustment: आजकल शादी के तुरंत बाद हनीमून पर जाने का चलन आम हो चुका है. यहां तक कि विवाह की तारीख तय करने से पहले भावी दुल्हा-दुल्हन हनीमून पर कहां जाएंगे इसकी प्लानिंग पहले कर लेते हैं. आने जाने रहने की प्री-बुकिंग कर लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं 'हनीमून' को लेकर भारतीय परंपरा क्या कहती है? आपको बता दें कि हिन्दू धर्म शास्त्रों में विवाह के बाद नए जोड़े को 45 दिन बाद ही किसी यात्रा पर निकलने की बात कही गई है. जी हां,  इसके पीछे गहरी पारंपरिक और शास्त्रीय वजहें बताई गईं हैं, जो अंधविश्वास नहीं बल्कि शरीर, मन और ग्रहों को संतुलित करने के लिए जरूरी हैं. आइए जानते हैं कैसे...

शादी के 45 दिन बाद ही क्यों जाना चाहिए यात्रा पर

दरअसल, शादी के बाद दुल्हन का 45 दिन की जो अवधि होती है, उसमें अपने शरीर, मन और रिश्तों को नए सांचे में ढालना होता है. यह नई नवेली दुल्हन के लिए नए घर और माहौल में अपने शरीर और मन के बीच संतुलन बैठाने का समय होता है. इसे शास्त्रों में ‘ऋतु शुद्धि', ‘गृहस्थ व्रत', या ‘गर्भ संयम' और आधुनिक भाषा में ‘योनिक संयोजन' कहते हैं.

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वहीं, वैज्ञानिक भाषा में इसे पोस्ट मैरिटल फीजिकल एंड इमोशनल एडजस्टमेंट (Post-Marital Physical and Emotional Adjustment) कहा जाता है. 

यह अवधि दुल्हन के लिए हार्मोनल, मानसिक संतुलन, 9 ग्रहों के प्रभाव से तालमेल बैठाना और गृहस्थ जीवन की तैयारी का समय होता है.

शास्त्रों के अनुसार, जब कोई स्त्री विवाह के बाद गृहस्थ जीवन में प्रवेश करती है, तब उसे शुद्ध और संयमित आचरण करना चाहिए, ताकि विवाह के बाद स्थिति शुद्ध और संतुलित रहे. इससे नई दुल्हन को इमोशनल रेग्युलेशन, हॉर्मोनल अलाइनमेंट के लिए समय मिलता है. 

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योनिक संयोजन क्या होता है

आपको बता दें कि योनिक संयोजन 3 चरणों में बाटा गया है, जो इस प्रकार हैं-

  1. प्रारंभिक संयोजन 7 दिन का होता है जिसमें शरीर व मन को स्थिर करने के लिए पूर्ण विश्राम शामिल होता है.
  2. मध्य संयोजन काल 8 से 21 दिन को होता है जिसमें मानसिक अनुकूलन और गृहस्थ जीवन में भावनात्मक तालमेल बिठाना शामिल होता है.
  3. पूर्ण संयोजन काल 22 से 45 दिन को होता है, जिसमें ऊर्जा स्थिरीकरण, ग्रह दशा का सामंजस्य, नए रिश्तों की गहराई समझना शामिल है.

इन सारी बातों का यही सार है कि नई नवेली दुल्हन को समय देना ताकि वह नए माहौल में ढल सके और खुद को सुरक्षित महसूस करे. 

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