ड्राइंग रूम घर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कमरा है। इसकी साज-सज्जा और सामानों के रखरखाव का सीधा असर मन और मस्तिष्क पर होता है। आइए जानते हैं भारतीय वास्तुशास्त्र की दृष्टि से ड्राइंग रूम कैसा होना चाहिए।
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- इस कमरे में भारी वस्तुएं, जैसे फर्नीचर, शो-केस आदि दक्षिण-पश्चिम कोने यानी नैऋत्य कोण में रखनी चाहिए। इन्हें रखते समय यह ध्यान रखना जरुरी है कि गृहपति (घर के मालिक) जब बैठें तब उनका मुख समय पूर्व या उत्तर की ओर हो।
- वास्तुशास्त्र में दीवारों के रंग को काफी महत्व दिया गया है। ड्राइंग रूम के लिए क्रीम, सफेद और हल्का भूरा, पीला या नीला रंग बढ़िया माना गया है। इसकी दीवारों के लिए हल्के आसमानी या हरे रंग भी उत्तम माने गए हैं।
- यदि ड्राइंग रूम वायव्य कोण यानी पश्चिम-उत्तर कोने पर बना है, तो हल्का स्लेटी, सफेद या क्रीम रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- ड्राइंग रूम के दरवाजे और खिड़कियों के लिए हरे, नीले, सुनहरे, मरून रंग के पर्दे अच्छे होते हैं। पर्दों की डिजाईन यदि लहरदार हो तो और अच्छा है।
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- यदि ड्राइंग रूम में अक्वेरियम या कृत्रिम पानी का फव्वारा आदि रखना हो तो उसके लिए उत्तर-पूर्व कोना यानी ईशान कोण बढ़िया माना गया है। यह घर के वास्तुदोष को भी दूर करने में सहायक माना गया है।
- आधुनिक समय में टी.वी. ड्राइंग रूम का अविभाज्य अंग बन गया है। इस उपकरण को अग्नि कोण यानी दक्षिण-पश्चिम कोने में रखा जा सकता है।
- ड्राइंग रूम में ऐसे फर्नीचर का व्यवहार करना सबसे उत्तम माना गया है, जिनके कोने थोड़े गोलाई लिए हुए हों। बेहतर वास्तु परिणाम पाने लिए के लिए फर्नीचर लकड़ी का बनवाना चाहिए।
- वास्तुशास्त्र की दृष्टि से ड्राइंग रूम में मृत-पूर्वजों का चित्र लगाना उचित है। इसे दक्षिणी दीवार लगाना सबसे उत्तम माना गया है। इसे पश्चिमी दीवार पर लगाया जा सकता है।
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