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This Article is From Mar 05, 2020

दिल्ली हिंसा में घायल गरीबों को अब सरकारी मदद का इंतजार

मंगलवार रात को बेकरी का काम करने वाले जमालुद्दीन की इलाज के दौरान मौत हो गई. बड़े भाई निजामुद्दीन का ईलाज अब भी GTB हॉस्पिटल में चल रहा है. मजदूरी करने वाले निजामुद्दीन का सबकुछ खत्म हो चुका है.

दिल्ली हिंसा में घायल गरीबों को अब सरकारी मदद का इंतजार
दिल्ली हिंसा में घायल अधिकतर घायलों का ईलाज जीटीबी हॉस्पिटल में चल रहा है. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

दिल्ली दंगों घायल में एक शख्स की जहां ईलाज के दौरान मौत हो गई है वहीं दो दर्जन से ज्यादा लोगों का ईलाज अब भी GTB में चल रहा है. इनमें ज्यादातर घायल इतने गरीब हैं कि सरकारी मदद अगर वक्त रहते न मिली तो ये परिवार भुखमरी के शिकार हो जाएंगे. मंगलवार रात को बेकरी का काम करने वाले जमालुद्दीन की इलाज के दौरान मौत हो गई. बड़े भाई निजामुद्दीन का ईलाज अब भी GTB हॉस्पिटल में चल रहा है. अस्पताल के एक बेड पर निजामुद्दीन के पूरे शरीर पर पट्टी बंधे हुए लेटा हुआ. मजदूरी करने वाले निजामुद्दीन का सबकुछ खत्म हो चुका है. NDTV से बात करते हुए निजामुद्दीन ने कहा, 'भाई खत्म हो चुका. मैं यहां पड़ा हूं. तीन उसकी बेटियां हैं और दो मेरी. सब जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ पड़ी. अभी कुछ मदद मिली है.'

इसी वार्ड में मोहम्मद अश्फाक भर्ती हैं. जींस की सिलाई करके हर महीने तीस से चालीस हजार कमाते थे, लेकिन जिस हाथ में सिलाई का हुनर था उसे ही दंगे में गंवा बैठे हैं. सरकार से मदद मिलने पर वह बोले, 'सरकार से बीस हजार रुपए मिला है.' इसके अलावा GTB अस्पताल के न्यूरो वार्ड में एक बेड पर पुताई का काम करने वाले लोकमन भर्ती हैं दूसरे बेड पर शाकिब. लोकमन की पिटाई के चलते रीढ़ की हड्डी टूट गई है. अब पत्नी कोठियों में काम करके घर चला रही है और बेटा पिता की देखभाल के लिए अस्पताल में है. उन्होंने कहा, '1100 रुपए का टेस्ट बाहर से करवाया है. घर का खर्च चलाने के लिए मम्मी कोठियों में काम करती है.'

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वहीं अस्पताल के बाहर कुछ संस्थाओं ने हेल्प डेस्क लगा रखे हैं. इस डेस्क पर मदद की आस में पहुंचे एक शख्स इलियास आया हुआ है. मजदूरी करने वाले इलियास को न तो सही ईलाज मिल पा रहा है और न ही आर्थिक मदद. रिश्तेदार न होते तो परिवार दाने दाने को मोहताज हो जाता. इस बारे में दंगों में घायल हुए इलियास ने कहा, 'आज आया था लेकिन बोला गया है कि भीड़ ज्यादा है शुक्रवार को आना. अब शुक्रवार को आऊंगा. यह पूछने पर कि खर्चा कैसे चल रहा है. उन्होंने कहा कि ऊपर वाले का सहारा है. रिश्तेदार हैं बस उन्ही के भरोसे हैं.

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दूसरी ओर सरकारी कागजों में दंगा पीड़ित अब आंकड़ों में तब्दील हो रहे हैं. अस्पतालों से मीडिया का जमावड़ा हट चुका है. सरकारी महकमा जिंदगी को पटरी पर लौटते दिखाना चाहती है. लेकिन इस दंगे के वजह से जिन्हें  मानसिक और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है उसकी भरपाई शायद न हो पाए या होने में  दशकों लग जांए. 

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