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This Article is From Feb 25, 2016

जेएनयू विवाद : आप जानते हैं, क्या कहती है देशद्रोह की धारा 124 ए ?

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जेएनयू विवाद : आप जानते हैं, क्या कहती है देशद्रोह की धारा 124 ए ?
जेएनयू में छात्रों का प्रदर्शन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: श की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जहां पर पढ़ने के लिए तमाम शहरों से लोग आते हैं और देश-विदेश में अच्छी नौकरियों में जाकर नाम कमाते हैं, लेकिन अब इस यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों पर देशद्रोह का आरोप लगा है।  आखिर यह कानून क्या है, इसका विरोध क्यों होता रहा है और क्यों तमाम लोग इस कानून को छात्रों पर लगाने के खिलाफ हैं? इस कानून को आप भी समझें....

राजद्रोह यानी आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा-124 A, क्या कहती है?
कोई भी आदमी यदि देश के खिलाफ लिखकर, बोलकर, संकेत देकर या फिर अभिव्यक्ति के जरिये विद्रोह करता है या फिर नफरत फैलाता है या ऐसी कोशिश करता है तब मामले में आईपीसी की धारा-124 ए के तहत केस बनता है। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। वहीं, इस कानून के दायरे में स्वस्थ आलोचना नहीं आती।

धारा के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिया है आदेश
इस धारा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ फैसले सुनाए हैं और उससे साफ होता है कि कोई भी हरकत या सरकार की आलोचनाभर से देशद्रोह का मामला नहीं बनता, बल्कि उस विद्रोह के कारण हिंसा और कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो जाए तभी देशद्रोह का मामला बनता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राजद्रोह की कुछ ऐसी व्याख्या की है। 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फेडरल कोर्ट ऑफ (ब्रिटिश) इंडिया से सहमति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ केस में व्यवस्था दी कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर टिप्पणी भर से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता।

सुप्रीम कोर्ट ने धारा-124 ए के दायरे को सीमित करते हुए कहा था कि वैसा ऐक्ट जिसमें अव्यवस्था फैलाने या फिर कानून व व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने या फिर हिंसा को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति या फिर मंशा हो तभी देशद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि देशद्रोह के मामले में हिंसा को बढ़ावा देने का तत्व मौजूद होना चाहिए। महज नारेबाजी राजद्रोह नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में कहा था कि महज नारेबाजी किए जाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक-दो बार कुछ लोगों द्वारा कुछ नारेबाजी किए जाने पर राजद्रोह का मामला नहीं बनाता। सरकारी नौकरी करने वाले दो लोगों ने देश के खिलाफ नारेबाजी की थी और तब पंजाब में चल रहे खालिस्तान की मांग के पक्ष में नारे लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दो लोगों द्वारा बिना कुछ और किए दो बार नारेबाजी किए जाने से देश को किसी प्रकार के खतरे का मामला नहीं बनता।

कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी हरकत जिससे कि देश और समुदाय के खिलाफ विद्रोह और नफरत पैदा हो तभी देशद्रोह का मामला बनेगा।

कानून के जानकारों का कहना है कि देशद्रोह की परिभाषा काफी व्यापक है और इस कारण इसके दुरुपयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा-196 में प्रावधान किया गया कि देशद्रोह से संबंधित मामले में दर्ज मामले में पुलिस को चार्जशीट के वक्त मुकदमा चलाने के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार से संबंधित प्राधिकरण से मंजूरी लेना जरूरी है।


124 A. Sedition.
1*[124A. Sedition.--Whoever by words, either spoken or written,
or by signs, or by visible representation, or otherwise, brings or
attempts to bring into hatred or contempt, or excites or attempts to
excite disaffection towards, 2***the Government established by law in
3*[India], a 4***shall be punished with 5*[imprisonment for life], to
which fine may be added, or with imprisonment which may extend to
three years, to which fine may be added, or with fine.
Explanation 1.-The expression "disaffection" includes disloyalty
and all feelings of enmity.
Explanation 2.-Comments expressing disapprobation of the measures
of the Government with a view to obtain their alteration by lawful
means, without exciting or attempting to excite hatred, contempt or
disaffection, do not constitute an offence under this section.
Explanation 3.-Comments expressing disapprobation of the
administrative or other action of the Government without exciting or
attempting to excite hatred, contempt or disaffection, do not
constitute an offence under this section.]

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