दिल्ली चुनाव में बीजेपी की रणनीति लाई रंग, रच दिया इतिहास
दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 48 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया है. 1993 के बाद ये पहला मौका है जब दिल्ली में बीजेपी सत्ता में वापसी करने जा रही है. जानकार बताते हैं कि बीजेपी की इस ऐतिहासिक जीत के पीछे बूथ लेवल से लेकर बड़े स्तर तक की तैयारियों की अहम भूमिका है. बीजेपी ने इस चुनाव को एक मिशन की तरह लिया और हर स्तर पर दूसरी पार्टियों की तुलना में जबरदस्तर प्लानिंग की. उसकी इसी प्लानिंग और तैयारी का नतीजा उसे इस परिणाम के तौर पर मिला है. चाहे बात रैलियों की हो या फिर रोड शो की या फिर माइक्रोमैनेजमेंट लेवल पर काम करने की, हर स्तर पर बीजेपी दूसरों पर भारी पड़ी है.
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बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने संभाला मोर्चा
इस चुनाव की महत्ता को समझते हुए बीजेपी के कैंपेन की बागडोर दूसरे चुनावों की तरह ही यहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद संभाली. उन्होंने दिल्ली में तीन रैलियां की. इन रैलियों के माध्यम से पीएम मोदी ने अलग-अलग वर्ग के मतदाताओं को खुद से जोड़ा. उन्हें यकीन दिलाया कि भाजपा उनके विकास को सुनिश्चित करने वाली पार्टी है. पीएम मोदी के साथ-साथ गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में 16 रैलियां की, इनमें कई रोड शो भी शामिल थे. वहीं पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कुल 6 रैलियां की. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी इस चुनावी समर में उतरे और उन्होंने पार्टी के कुल 6 रैलियां की. इन बड़े नेताओं के अलावा पार्टी ने अन्य लोकप्रिय नेताओं को चुनाव प्रचार में शामिल किया. इस लिस्ट में केंद्रीय मंत्रियों में राजनाथ सिंह ,नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान,मनोहर लाल खट्टर,हरदीप सिंह पुरी,धर्मेंद्र प्रधान,ज्योतिरादित्य सिंधिया,भूपेन्द्र यादव,गिरिराज सिंह और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे बड़े चेहरे शामिल रहे.
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हर केंद्रीय मंत्री को दी गई जिम्मेदारी
इस चुनाव में बीजेपी कहीं से भी किसी दूसरी पार्टी को मौका देना नहीं चाहती थी. यही वजह थी कि पार्टी ने हर केंद्रीय मंत्री को दो विधानसभा सीटों की ज़िम्मेदारी दी. इतना ही नहीं पड़ोस के राज्यों के विधायकों,मंत्रियों और सांसदों को बुलाया गया. मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ के अलावा देवेंद्र फडणवीस,हिमंत बिस्वा सरमा, पुष्कर सिंह धामी, भजन लाल शर्मा, नायब सिंह सैनी और मोहन यादव को भी कई अहम जिम्मेदारी सौंपी गई. पूर्वांचली चेहरों में से मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव निरहुआ से भी पार्टी ने जमकर प्रचार कराया. दलित वर्ग के साथ 4500 से अधिक, विभिन्न वर्गों की महिलाओं के साथ 7500, मुस्लिम समाज के साथ 1700 बैठकें की गईं. ओबीसी समाज के साथ पांच हज़ार से ज़्यादा बैठके भी हुई. बीजेपी ने इस चुनाव प्रचार के दौरान हर उस बात का ध्यान रखा जो उसे जीत दिलाने में अहम भूमिका निभा सकती थी.
आरएसएस ने भी प्रचार में फूंका दम
आरएसएस ने दस हज़ार से अधिक ड्राइंग रूम बैठकें कीं. आरएसएस की ओर से मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी संपर्क साधा गया. सहयोगी दलों को साथ लिया गया. जेडीयू और एलजेपी को सीटें दी गईं ताकि बिहार चुनाव के लिए भी तालमेल करने में दिक़्क़त न आए. प्रचार के लिए टीडीपी और जेडीयू नेताओं को भी बुलाया गया. दक्षिण भारतीय राज्यों के मतदाताओं की पहचान की गई. चंद्रबाबू नायडू ने तेलुगु भाषी मतदाताओं से संपर्क किया, कर्नाटक के बीजेपी नेताओं को कन्नड़ भाषी मतदाताओं से संपर्ककी ज़िम्मेदारी दी गई. उत्तराखंड बीजेपी नेताओं को पहाड़ी मतदाताओं से संपर्क को कहा गया , थिंक टैंक बनाया गया.
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उसने दिल्ली की समस्याओं का विस्तृत अध्ययन किया, यमुना प्रदूषण, शराब घोटाला, टूटी सड़कें, गंदा पीने का पानी, गंदगी, प्रदूषण जैसे मुद्दों की पहचान की, जनता से फ़ीडबैक लिया गया, फ़ीडबैक के आधार पर संकल्प पत्र तैयार किया गया. पीएम मोदी ने ने सभी 70 उम्मीदवारों के परिचय के साथ मतदाताओं को पत्र लिखा, मोदी की गारंटी और पुरानी सरकार की योजनाओं को जारी रखने का वादा किया. बीजेपी ने जनहित के कामों को जारी रखने का फ़ैसला किया, महिलाओं के लिए 2500 रुपये देने का वादा कर महिला वोटरों को साथ लिया. साथ ही बीजेपी ने दिल्ली के लिए अपना विजन बताया और माइक्रो कैंपेनिंग की.
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बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए माइक्रोमैनेजमेंट की व्यापक रणनीति तैयार की. हर सीट पर पिछली बार की तुलना में वोट बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया. बड़े नेताओं को दी गई जिम्मेदारी, हर बूथ का विश्लेषण कर क्षेत्रवार ब्यौरा तैयार किया गया. जिन मतदाताओं की जड़ें दूसरे शहरों में हैं, वहां से बीजेपी नेताओं को कहा गया कि वे इनसे संपर्क कर बीजेपी के लिए वोट मांगें, कोविड के समय दिल्ली से अपने गांवों में चले गए मतदाताओं से संपर्क किया गया. उनसे कहा गया कि मतदान के लिए दिल्ली आएं और बीजेपी को वोट दें.
ऐसे वोटरों की सूची भी तैयार की गई है जो किसी दूसरे कारण से दिल्ली से बाहर चले गए लेकिन उनका वोट अब भी दिल्ली में ही है, उन्हें भी पांच फरवरी को वोट डालने के लिए दिल्ली आने के लिए तैयार किया गया. सरकार बिल्डिंगों में रहने वालों की सूची तैयार की गई, इनमें रहने वालों के अलावा काम करने वाले कर्मचारियों से भी संपर्क साधा गया. हर सीट पर पिछली बार की तुलना में 20 हजार वोट अधिक लाने का लक्ष्य बड़े नेताओं को दिया गया, हर बूथ पर कम से कम पचास प्रतिशत वोट बीजेपी को मिले. यह लक्ष्य भी तय किया गया, साथ ही यह भी लक्ष्य दिया गया कि हर बूथ पर पिछली बार की तुलना में अधिक मतदान हो.
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केंद्रीय मंत्रियों, केंद्रीय पदाधिकारियों, पड़ोसी राज्यों के नेताओं को दी गई जिम्मेदारी. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को दिल्ली कैंट और वजीरपुर की जिम्मेदारी दी गई, धर्मेंद्र प्रधान मालवीय नगर और ग्रेटर कैलाश विधानसभा संभालने को कहा गया, भूपेंद्र यादव को महरौली और बिजवासन की जिम्मेदारी दी गई. गजेंद्र सिंह शेखावत नरेला और बवाना, मनसुख मांडविया शकूरबस्ती और मादीपुर की, अनुराग ठाकुर को मुस्तफाबाद और करावल नगर, यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक आदर्श नगर और बुराड़ी, राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को जनकपुरी और उत्तम नगर, सुनील बंसल को शालीमार बाग और त्रिनगर की जिम्मेदारी सौंपी गई.
दिल्ली में रहने वाले दूसरे राज्यों से जुड़े मतदाताओं को लुभाने के लिए संबंधित राज्यों के विधायकों,सांसदों, मंत्रियों को दी गई है जिम्मेदारी. उदाहरण के तौर पर दिल्ली में करीब साढ़े तीन लाख तेलुगु वोटर हैं, उनसे संपर्क की जिम्मेदारी आंध्र प्रदेश के बीजेपी और टीडीपी विधायकों,सांसदों और मंत्रियों को दी गई. इसी तरह उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात जैसे राज्यों के दिल्ली में रह रहे लोगों को बीजेपी के पाले में लाने के लिए वहां के बीजेपी नेताओं को दिल्ली बुलाया गया. बीजेपी ने दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए क्लस्टर्स बनाए हैं और उसके लिए भी नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है. झुग्गी झोपड़ी क्लस्टर, अवैध कॉलोनी क्लस्टर, रेहड़ी-पटरी वालों का क्लस्टर आदि. इसके लिए भी हर नेता को कहा गया कि इनकी मतदाता सूची पर नजर रखें और सबसे संपर्क करें. इस काम में आरएसएस के नेताओं ने भी बीजेपी नेताओं के साथ सहयोग किया है.
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