दिल्ली सचिवालय (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
जरूरी प्रदूषण नियमों के उल्लंघन को आधार बनाते हुए दिल्ली सचिवालय इमारत को बंद किए जाने का निर्देश देने की मांग करते हुए एक वैज्ञानिक ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण का रुख किया है।
पूर्व में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वैज्ञानिक के तौर पर जुड़े महेंद्र पांडेय ने आरोप लगाया है कि सचिवालय भवन की स्थापना और उसके काम करने के लिए वायु (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) कानून, 1981 के साथ ही जल (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) कानून के तहत आवेदन नहीं किया गया।
वकील गौरव बंसल ने एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दायर याचिका में इसका जिक्र किया है जिस पर कल सुनवाई के लिए सहमति जताई गई। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि सचिवालय भवन यमुना प्रदूषण का बड़ा स्रोत है, पूर्व वैज्ञानिक ने कहा है कि बिना शोधित अपशिष्ट जल के साथ भवन हर दिन एक लाख लीटर सीवेज पैदा करता है।
पांडेय ने कहा है कि दिल्ली सचिवालय भवन तब तक काम नहीं कर सकता जब तक कि उसके पास वायु (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) कानून, 1981 के तहत ‘‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’’ ना हो।
उन्होंने आरोप लगाया है कि एक तरफ दिल्ली सरकार राजधानी में वायु प्रदूषण घटाने के लिए ‘सम विषम योजना’ शुरू कर रही है जबकि उसके सचिवालय भवन को ही सांविधिक एनओसी हासिल नहीं है, जो उसका दोहरे रवैया और हरित नियमों के क्रियान्वयन को लेकर मुद्दे पर कितना गंभीर है यह दिखाता है।
पूर्व में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वैज्ञानिक के तौर पर जुड़े महेंद्र पांडेय ने आरोप लगाया है कि सचिवालय भवन की स्थापना और उसके काम करने के लिए वायु (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) कानून, 1981 के साथ ही जल (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) कानून के तहत आवेदन नहीं किया गया।
वकील गौरव बंसल ने एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दायर याचिका में इसका जिक्र किया है जिस पर कल सुनवाई के लिए सहमति जताई गई। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि सचिवालय भवन यमुना प्रदूषण का बड़ा स्रोत है, पूर्व वैज्ञानिक ने कहा है कि बिना शोधित अपशिष्ट जल के साथ भवन हर दिन एक लाख लीटर सीवेज पैदा करता है।
पांडेय ने कहा है कि दिल्ली सचिवालय भवन तब तक काम नहीं कर सकता जब तक कि उसके पास वायु (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) कानून, 1981 के तहत ‘‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’’ ना हो।
उन्होंने आरोप लगाया है कि एक तरफ दिल्ली सरकार राजधानी में वायु प्रदूषण घटाने के लिए ‘सम विषम योजना’ शुरू कर रही है जबकि उसके सचिवालय भवन को ही सांविधिक एनओसी हासिल नहीं है, जो उसका दोहरे रवैया और हरित नियमों के क्रियान्वयन को लेकर मुद्दे पर कितना गंभीर है यह दिखाता है।
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