
पी चिदंबरम (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने बहस के दौरान कहा कि उपराज्यपाल संविधान और लोकतंत्र का मजाक बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल अंसवैधानिक तरीके से काम कर रहे हैं.
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामला : कोर्ट में चिदंबरम बोले- एलजी दिल्ली के वायसराय नहीं हैं
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार का पक्ष रखते हुए चिदंबरम ने कहा कि कानून के मुताबिक, एलजी के पास कोई शक्ति नहीं है और सारे अधिकार या तो मंत्रिमंडल के पास हैं या फिर राष्ट्रपति के पास है. अगर किसी से राष्ट्रपति सहमत होते हैं तो ये राष्ट्रपति की राय होगी ना कि एलजी की. उन्होंने कहा कि ये दूर्भाग्यपूर्ण है कि वो फाइलों को राष्ट्रपति के पास ना भेजकर खुद ही फैसले ले रहे हैं.
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चिदंबरम ने कहा कि वो कहते हैं कि वो ही फैसले लेंगे. उन्होंने कहा कि कोई भी मामले का मतलब हर मामला नहीं है. किसी भी मुद्दे पर मूल मतभेद हो तो मामले को तुरंत राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए. अगर दिल्ली सरकार की कोई पॉलिसी अंसवैधानिक है तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन मामले को राष्ट्रपति को पास भेजा जाना चाहिए.
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दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आईपीएस, आईएएस या डिप्टी सेक्टरी आदि तो केंद्र के अधीन हैं लेकिन दिल्ली सरकार के किस विभाग में वो काम करें तो उसमें सरकार की राय मानी जानी चाहिए. 1994 के सर्कुलर के मुताबिक, एलजी, सीएम और मंत्रिमंडल मिलकर ज्वाइंट कैडर के अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग की जाए तो सरकार को कोई दिक्कत नहीं है. एलजी तो दिल्ली सरकार के अधीनस्थ भी नियुक्तियों की फाइल ले लेते हैं.
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मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार का पक्ष रखते हुए चिदंबरम ने कहा कि कानून के मुताबिक, एलजी के पास कोई शक्ति नहीं है और सारे अधिकार या तो मंत्रिमंडल के पास हैं या फिर राष्ट्रपति के पास है. अगर किसी से राष्ट्रपति सहमत होते हैं तो ये राष्ट्रपति की राय होगी ना कि एलजी की. उन्होंने कहा कि ये दूर्भाग्यपूर्ण है कि वो फाइलों को राष्ट्रपति के पास ना भेजकर खुद ही फैसले ले रहे हैं.
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चिदंबरम ने कहा कि वो कहते हैं कि वो ही फैसले लेंगे. उन्होंने कहा कि कोई भी मामले का मतलब हर मामला नहीं है. किसी भी मुद्दे पर मूल मतभेद हो तो मामले को तुरंत राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए. अगर दिल्ली सरकार की कोई पॉलिसी अंसवैधानिक है तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन मामले को राष्ट्रपति को पास भेजा जाना चाहिए.
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दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आईपीएस, आईएएस या डिप्टी सेक्टरी आदि तो केंद्र के अधीन हैं लेकिन दिल्ली सरकार के किस विभाग में वो काम करें तो उसमें सरकार की राय मानी जानी चाहिए. 1994 के सर्कुलर के मुताबिक, एलजी, सीएम और मंत्रिमंडल मिलकर ज्वाइंट कैडर के अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग की जाए तो सरकार को कोई दिक्कत नहीं है. एलजी तो दिल्ली सरकार के अधीनस्थ भी नियुक्तियों की फाइल ले लेते हैं.
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चिदंबरम ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली फायर सर्विस एक्ट 2009 में दिल्ली सरकार ने बनाया, वहां नियुक्तियां कौन करेगा?, दिल्ली फायर सर्विस में 3000 से ऊपर पद खाली हैं, शिक्षा विभाग में 10332 पद खाली हैं और सारे मामले उपराज्यपाल के पास लंबित हैं. अब इस मामले में अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी.NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं