
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को सुधारने के लिए क्रिकेट की भूमिका की बड़ी चर्चा होती रही है. यह कहा जाता रहा है कि क्रिकेट डिप्लोमेसी के जरिए दोनों देशों के रिश्ते को बेहतर किया जा सकता है. कई बार ऐसी कोशिश भी हुई लेकिन नतीजा सिफर रहा. वर्ष 2011 के क्रिकेट वर्ल्डकप का सेमीफाइनल मैच जब मोहाली में था तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी मैच देखने खुद यहां पहुंचे थे हालांकि यह डिप्लोमेसी भी काम नहीं आई थी. अब जबकि पूर्व कप्तान इमरान खान, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं तो सवाल उठ रहा है कि क्या क्रिकेट के रिश्ते बहाल होंगे और इस जरिए आपसी संबंध सुधरेंगे.
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हालांकि भारत साफ तौर पर कह चुका है कि जब तक पाकिस्तान से आने वाला आतंकवाद बंद नहीं होता तब तक भारतीय टीम पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलेगी. पाकिस्तान क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (PCB) की ओर से कई बार ऐसी पेशकश आई कि किसी दूसरी देश में ही क्रिकेट खेला जाए लेकिन मोदी सरकार लगातार इससे इंकार करती रही. पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न खेलकर भारत दुनिया को यह संदेश देता रहा है कि वह आतंकवाद कतई बर्दाश्त नहीं करता और जो देश आतंकवाद भेजता है उसके साथ मैदान में क्रिकेट खेलने का कोई मतलब नहीं है.
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तो क्या इमरान खान सत्ता में आने के बाद चुनाव के पहले के तल्ख रवैये में नरमी लाते हुए भारत के साथ संबंध अच्छा बनाने की दिशा में काम करेंगे? एक क्रिकेटर होने के नाते क्या वे कोशिश करेंगे कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंध फिर से जुड़ें? इसके लिए जो भारत की पहली शर्त है कि आतंकवाद बंद हो तो क्या इमरान आतंकवाद पर लगाम लगाकर दोनों देशों को क्रिकेट के एक मैदान में खेलने का माहौल बनाएंगे. इमरान खान ऐसा करें] इसके लिए क्रिकेट की दुनिया की उम्मीद और दुआ भी काम आ सकती है. भारत के क्रिकेटर जो इमरान के साथ खेल चुके हैं शायद उनकी तरफ से यह पहल हो कि वह पाकिस्तान के पूर्व कप्तान को इस बात के लिए तैयार करें कि दोनों देशों के बीच क्रिकेट रिश्ते की जरूरत है और इस राह में आ रही बाधा को वे दूर करें. हो सकता है कि इमरान अपने पुराने साथियों की बात सुने. हालांकि यह सब अभी दूर की बात है. पाकिस्तान में जम्हूरियत का इंतिहान अभी कई अभी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है नतीजे पूरी तरह साफ होने के बाद शायद इस पहल की तरफ सोचा जाए.
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