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Gukesh D: महज 7 साल की उम्र में शुरू किया चेस खेलना, 11 में देखा वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना, ऐसी है गुकेश की कहानी

FIDE World Chess Championship 2024, Dommaraju Gukesh: फिडे वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप की 14वीं बाजी में डिंग लिरेन को हराते ही भारतीय ग्रैंडमास्टर डोम्माराजू गुकेश के आंखों में आंसू थे. उन्हें पता था कि उन्होंने क्या किया है. गुकेश सबसे कम उम्र में वर्ल्ड चैंपियन बनने वाले चेस प्लेयर हैं.

Gukesh D: फिडे वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप की 14वीं बाजी में डिंग लिरेन को हराते ही भारतीय ग्रैंडमास्टर डोम्माराजू गुकेश के आंखों में आंसू थे.

फिडे वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप की 14वीं बाजी में डिंग लिरेन को हराते ही भारतीय ग्रैंडमास्टर डोम्माराजू गुकेश के आंखों में आंसू थे. उन्हें पता था कि उन्होंने क्या किया है. गुकेश सबसे कम उम्र में वर्ल्ड चैंपियन बनने वाले चेस प्लेयर हैं. इतना ही नहीं वो दूसरे भारतीय हैं, जिन्होंने यह खिताब जीता है.

गुकेश के चैंपियन बनने के साथ ही उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. गुकेश का यह वीडियो तब का है जब वह 12 साल के थे और ग्रैंडमास्टर नहीं बने थे. इसमें चेसबेस इंडिया के आईएम सागर शाह गुकेश से पूछते हैं कि उनकी क्या इच्छा है, इस सवाल का जवाब देते हुए गुकेश कहते हैं,"मैं दुनिया का सबसे कम उम्र का शतरंज चैंपियन बनना चाहता हूं."

गुकेश ने यह बातें कहीं और इसके बाद वो हसंने लगते हैं, लेकिन इसके सात साल बाद, गुकेश ने जब इतिहास रचा, तब उनकी आंखों में आंसू थे. तीन सप्ताह तक चली 14 बाजियों में चीन के डिफेंडिंग चैंपियन डिंग लिरेन और डोम्माराजू गुकेश का मनोवैज्ञानिक और शारीरिक टेस्ट हुआ. इस दौरान ऐसे कई मौके आए, जब दोनों के बीच चल रहा यह मुकाबला नीरस लग रहा था और टाईब्रेकर में जाता दिख रहा था, लेकिन अंत में गुकेश ने दिखाया कि आखिर वो क्लासिकल चेस के बादशाह क्यों कहे जाते हैं.

डोम्माराजू गुकेश का जन्म 29 मई, 2006 को चेन्नई में हुआ था. उनके पिता डॉ. रजनीकांत, एक कान, नाक और गले के सर्जन हैं, जबकि उनकी माँ डॉ. पद्मा एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं. तेलुगु परिवार से आने वाले गुकेश ने सात साल की उम्र में शतरंज खेलना शुरू किया और सप्ताह में तीन दिन एक घंटे अभ्यास करते थे. अपने चेस मास्टर्स को प्रभावित करने के बाद, उन्होंने वीकेंड पर प्रतिस्पर्धी टूर्नामेंटों में हिस्सा लेना शुरू किया था.

गुकेश ने 2015 में एशियन स्कूल शतरंज चैंपियनशिप के अंडर-9 वर्ग में अपना पहला पुरस्कार जीता था. उसके बाद उन्होंने 2018 में अंडर 12 वर्ग में विश्व युवा शतरंज चैंपियनशिप जीती. 12 साल की छोटी सी उम्र में, उन्होंने 2018 एशियाई युवा शतरंज चैंपियनशिप में U-12 व्यक्तिगत रैपिड और ब्लिट्ज, U-12 टीम रैपिड और ब्लिट्ज और U-12 व्यक्तिगत क्लासिकल प्रारूपों में पांच स्वर्ण पदक जीते थे.

गुकेश के युवा कोच, ग्रैंडमास्टर विष्णु प्रसन्ना बताते हैं, गुकेश का जीवन बचपन से ही ऐसा ही रहा है. वह जो कुछ भी करता है वह उस एक ही लक्ष्य होता है: विश्व चैंपियन बनना. गुकेश अपनी जेनरेशन के अधिकांश लोगों के उलट, सोशल मीडिया और इंटरनेट का उपयोग काफी कम करते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए विष्णु ने कहा था,"वह 11 साल की उम्र में भी अपने आयु वर्ग के अन्य लोगों की तुलना में चेस को लेकर अधिक गंभीर था." "मुझे तब भी लगा कि यह लड़का सचमुच कुछ बनना चाहता है. वह शुरू से ही बहुत प्रेरित था. उनमें इच्छाएं काफी बड़ी थी. वह किसी और चीज़ के बारे में नहीं सोचेगा. बस एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया. यह एक तरह का जुनून है. मैंने जितने भी बच्चों के साथ काम किया है, उनमें से किसी ने भी वह नहीं दिखाया जो उसने दिखाया है: खेल के प्रति जुनून और नंबर 1 बनने का जुनून."

गुकेश एक प्लेयर के तौर पर जिस तरह से कैलकुलेशन करते हैं, उससे लगता है कि उनके दिमाग में कोई चिप लगी हुई है. वह जोखिम लेते हैं, जैसे उन्हें पता होता है कि आगे वाले क्या करेगा. गुकेश और डिंग लिरेन के बीच हुई चैंपियनशिप की आखिरी बाजी, जिस पर सभी का ध्यान था, में ऐसे कई मौके रहे, जब लिरेन ने बोर्ड की तरफ देखने के बजाए, गुकेश की तरफ देखा. ऐसा लग रहा था कि लिरेन उनके चेहरे के भाव को समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन लगा कि जैसे लिरेन को इसमें निरााश हाथ लगी.

विश्व चैम्पियनशिप के पहला गेम गुकेश हार गए थे. निश्चित रूप से उनकी शुरुआत खराब थी. लेकिन तब नहीं जब आप हर परिणाम के लिए तैयार होकर आएं. माइंड गुरु पैडी अप्टन ने इस दौरान कहा,"गुकेश ने सिंगापुर जाने से पहले, विश्व चैंपियनशिप में खेलने की पूरी किताब, एक तरह से याद कर ली थी."

उन्हें एक और झटका तब लगा जब वे गेम 11 में बढ़त लेने के तुरंत बाद हार गए.  उनसे जब इसको लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा,"मैं लड़ाई के लिए तैयार था." इस चैंपियनशिप के दौरान उन्होंने दो बार ड्रॉ के लिए मना किया, वो भी ऐसी स्थिति में जब लिरेन के पास बढ़त थी.

लिरेन की कोशिश शुरुआत से ही गेम को टाई ब्रेकर में लेकर जाने की थी और उन्होंने 2, 4, 5 और 6 बाजी में बढ़त होने के बाद भी ड्रॉ के लिए कहा. शतरंज की दुनिया के महारथियों ने इस दौरान माना कि लिरेन ने लग नहीं की बल्कि उनकी चाल है, लेकिन सभी ने गुकेश को कम आंका.

सुज़ैन पोल्गर ने कई साल पहले भविष्यवाणी की थी कि गुकेश काफी आगे तक जाएंगे. सुज़ैन पोल्गर ने कहा,"कुछ लोगों ने सोचा कि मैं ऐसा कहने के लिए पागल हूं… उनके ग्रैंडमास्टर बनने के कुछ ही समय बाद, मैंने उनके खेल, शतरंज के प्रति दृष्टिकोण और व्यवहार में कुछ बहुत खास देखा. उसके पास महत्वपूर्ण चीजें हैं जो इस उम्र के युवा खिलाड़ियों में शायद ही कभी देखी जाती हैं." उसने आगे कहा,"गुकेश ने अभी भी अपने चेस के प्राइम को हासिल नहीं किया है और कुछ प्रमुख क्षेत्रों में कुछ छोटे बदलाव किए जा सकते हैं और वह आने वाले सालों तक हावी रह सकते हैं."

चेस चैंपियनशिप की शुरुआत 1886 में हुई थी और तब से लेकर अब तक 17 खिलाड़ी इसे जीत चुके हैं. इसमें बॉबी फिशर, गैरी कास्परोव, विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन जैसे नाम शामिल हैं. लेकिन जब वे विश्व चैंपियन बने तो कोई भी इतना छोटा नहीं था, जितने गुकेश हैं.

अपने शुरुआती करियर में, गुकेश ने पहले ही बहुत सारे इतिहास रच दिए हैं. वह भारत के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं और वह केवल 17 दिनों से दुनिया के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर बनने के इतिहास से चूके थे. मार्च 2017 में, उन्होंने 34वें कैपेल-ला-ग्रांडे ओपन में इंटरनेशनल मास्टर का खिताब अर्जित किया था.

12 साल, 7 महीने और 17 दिन की उम्र के गुकेश अब तक के तीसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं. हालांकि, 2023 में गुकेश का जलवा देखने को मिला था. अगस्त में, वह 2750 की रेटिंग तक पहुंचने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने थे. इसके एक महीने के बाद गुकेश ने विश्व रैंकिंग में भारतीय ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़ा था. गुकेश, विश्वनाथन आनंद को रैंकिंग में 36 सालों में पीछे छोड़ने वाले पहले भारतीय हैं.

वह कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के अब तक के सबसे कम उम्र के विजेता हैं, जिसने उन्हें पहले स्थान पर विश्व चैम्पियनशिप में मौका दिलाया. सितंबर में, उन्होंने अर्जुन एरिगैसी, पेंटाला हरिकृष्णा, आर प्रगनानंद और विदित गुजराती जैसे खिलाड़ियों के साथ मिलकर भारत को पहली बार शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक दिलाने में मदद की थी.

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