ऋषभ पंत नहीं चले, लेकिन सरफराज ने फिर शानदार बैटिंग की (फोटो : ICC)
अंडर-19 वर्ल्डकप की प्रबल दावेदार मानी जा रही भारतीय टीम के कदम खिताब के 'बेहद करीब' जाकर ठिठक गए। वेस्टइंडीज ने ईशान किशन के नेतृत्व वाली टीम इंडिया को पांच विकेट से हराते हुए पहली बार अंडर-19 वर्ल्डकप खिताब जीत लिया। भारत के लिहाज से बात करें तो रिकॉर्ड चौथी बार खिताब जीतने का उसका सपना पूरा नहीं हो सका। टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही भारतीय टीम को इस बार विजेता ट्रॉफी का दावेदार माना जा रहा था। इसके पीछे तमाम कारण भी थे। बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग, तीनों ही लिहाज से इस टीम को बेहद संतुलित माना जा रहा था। कप्तान के तौर पर धोनी के राज्य झारखंड के ईशान किशन को काफी ऊंचा रेट किया जा रहा था और टीम की कोचिंग की जिम्मेदारी राहुल द्रविड़ के हाथ में पहुंचने के बाद ये उम्मीदें सातवें आसमान तक पहुंच गई थीं।
बहरहाल, ऐसा नहीं हो सका। एक मैच के खराब प्रदर्शन ने टीम इंडिया की उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया। भारतीय टीम के लिहाज से यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि उसके प्रदर्शन में यह बिखराब किसी लीग मैच के बजाय सबसे महत्वपूर्ण फाइनल मुकाबले में दिखा। नजर डालते हैं उन कारणों पर जो टीम इंडिया के लिए भारी पड़े....
गेंदबाजों को डिफेंड करने लायक टोटल नहीं दे सके बल्लेबाज
फाइनल में दबाव के बीच भारतीय बल्लेबाजी बुरी तरह बिखर गई। गेंदबाजी के लिहाज से आदर्श परिस्थितियों का वेस्टइंडीज ने पूरा लाभ उठाया और टीम इंडिया शुरुआती झटकों के बाद लगातार विकेट गंवाती रही। सरफराज खान ऐसे अकेले बल्लेबाज रहे जो संघर्ष करते दिखे। वरना अन्य बल्लेबाजों ने तो इसका माद्दा तक नहीं दिखाया। भारतीय टीम के 145 के स्कोर पर आउट होते ही यह लगभग तय हो गया था कि कोई चमत्कारी प्रदर्शन ही टीम को बचा सकता है। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। बल्लेबाज ऐसा स्कोर खड़ा नहीं कर पाए जिसे गेंदबाज डिफेंड कर सकें।
डागर की गेंदों पर छूटे दो कैच भारी पड़े
टीम ने जब केवल 145 रन का छोटा स्कोर बनाया तो यह जरूरी था कि हासिल हर मौके पर पूरा लाभ उठाया जाए। बाएं हाथ के स्पिनर मयंक डागर ने मिडिल ओवर्स में तीन विकेट लेते हुए टीम की मैच में एक हद तक वापसी करा दी थी, लेकिन इन क्षणों में छोड़े गए दो कैच टीम पर भारी पड़ गए। पहले पारी के 35वें ओवर में स्लिप में सरफराज ने पॉल का कैच छोड़ा जो उस समय केवल 10 रन के निजी स्कोर पर थे। इसके बाद 40वें ओवर में विकेटकीपर पंत ने कार्टी को 35 के स्कोर पर जीवनदान दिया। इन दोनों मौकों का यदि फायदा उठा लिया जाता तो मैच का परिणाम बदल सकता था। आखिरकार कार्टी और पॉल की जोड़ी ने ही छठे विकेट के लिए 69 रन जोड़ते हुए इंडीज को खिताबी जीत दिलाई।
अवेश खान से शुरुआती झटकों की उम्मीद पूरी नहीं हुई
145 के स्कोर को डिफेंड करने की उम्मीदें बहुत कुछ तेज गेंदबाज अवेश खान पर ही टिकी थी। अभी तक लगभग हर मैच में उन्होंने शुरुआत में ही विकेट झटककर भारत को अच्छी शुरुआत दी थी। यह जरूरी था कि अवेश कुछ विकेट जल्दी निकालें ताकि बाद के बल्लेबाजों पर दबाव बढ़े। अवेश और खलील ने एक-एक विकेट जरूर लिया, लेकिन इसके बाद इंडीज के बल्लेबाजों ने अवेश के ओवरों को सावधानी से निकालने की रणनीति अपनाई। टारगेट बहुत अधिक नहीं होने के चलते यह एक चतुराईपूर्ण रणनीति थी, जिसने अपना काम अच्छी तरह से किया।
बहरहाल, ऐसा नहीं हो सका। एक मैच के खराब प्रदर्शन ने टीम इंडिया की उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया। भारतीय टीम के लिहाज से यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि उसके प्रदर्शन में यह बिखराब किसी लीग मैच के बजाय सबसे महत्वपूर्ण फाइनल मुकाबले में दिखा। नजर डालते हैं उन कारणों पर जो टीम इंडिया के लिए भारी पड़े....
गेंदबाजों को डिफेंड करने लायक टोटल नहीं दे सके बल्लेबाज
फाइनल में दबाव के बीच भारतीय बल्लेबाजी बुरी तरह बिखर गई। गेंदबाजी के लिहाज से आदर्श परिस्थितियों का वेस्टइंडीज ने पूरा लाभ उठाया और टीम इंडिया शुरुआती झटकों के बाद लगातार विकेट गंवाती रही। सरफराज खान ऐसे अकेले बल्लेबाज रहे जो संघर्ष करते दिखे। वरना अन्य बल्लेबाजों ने तो इसका माद्दा तक नहीं दिखाया। भारतीय टीम के 145 के स्कोर पर आउट होते ही यह लगभग तय हो गया था कि कोई चमत्कारी प्रदर्शन ही टीम को बचा सकता है। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। बल्लेबाज ऐसा स्कोर खड़ा नहीं कर पाए जिसे गेंदबाज डिफेंड कर सकें।
डागर की गेंदों पर छूटे दो कैच भारी पड़े
टीम ने जब केवल 145 रन का छोटा स्कोर बनाया तो यह जरूरी था कि हासिल हर मौके पर पूरा लाभ उठाया जाए। बाएं हाथ के स्पिनर मयंक डागर ने मिडिल ओवर्स में तीन विकेट लेते हुए टीम की मैच में एक हद तक वापसी करा दी थी, लेकिन इन क्षणों में छोड़े गए दो कैच टीम पर भारी पड़ गए। पहले पारी के 35वें ओवर में स्लिप में सरफराज ने पॉल का कैच छोड़ा जो उस समय केवल 10 रन के निजी स्कोर पर थे। इसके बाद 40वें ओवर में विकेटकीपर पंत ने कार्टी को 35 के स्कोर पर जीवनदान दिया। इन दोनों मौकों का यदि फायदा उठा लिया जाता तो मैच का परिणाम बदल सकता था। आखिरकार कार्टी और पॉल की जोड़ी ने ही छठे विकेट के लिए 69 रन जोड़ते हुए इंडीज को खिताबी जीत दिलाई।
अवेश खान से शुरुआती झटकों की उम्मीद पूरी नहीं हुई
145 के स्कोर को डिफेंड करने की उम्मीदें बहुत कुछ तेज गेंदबाज अवेश खान पर ही टिकी थी। अभी तक लगभग हर मैच में उन्होंने शुरुआत में ही विकेट झटककर भारत को अच्छी शुरुआत दी थी। यह जरूरी था कि अवेश कुछ विकेट जल्दी निकालें ताकि बाद के बल्लेबाजों पर दबाव बढ़े। अवेश और खलील ने एक-एक विकेट जरूर लिया, लेकिन इसके बाद इंडीज के बल्लेबाजों ने अवेश के ओवरों को सावधानी से निकालने की रणनीति अपनाई। टारगेट बहुत अधिक नहीं होने के चलते यह एक चतुराईपूर्ण रणनीति थी, जिसने अपना काम अच्छी तरह से किया।
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