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This Article is From Dec 04, 2017

...तो इसलिए सालाना 25 करोड़ सैलरी बनती है कप्‍तान विराट कोहली की

अगले करीब एक या डेढ़ महीने के भीतर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड साल 2017-18 के लिए तीनों ग्रेड (ए, बी, सी) में शामिल किए जाने वाले खिलाड़ियों के नामों का ऐलान कर देगा

...तो इसलिए सालाना 25 करोड़ सैलरी बनती है कप्‍तान विराट कोहली की
virat Kohli
नई दिल्ली:

अगले करीब एक या डेढ़ महीने के भीतर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड साल 2017-18 के लिए तीनों ग्रेड (ए, बी, सी) में शामिल किए जाने वाले खिलाड़ियों के नामों का ऐलान कर देगा. उम्मीद की जा रही है कि इस बार खिलाड़ियों को बोर्ड भारी-भरकम सालाना सैलरी देने जा रहा है. इसी मुद्दे पर कुछ दिन पहले ही कप्तान विराट कोहली ने कोच रवि शास्त्री व महेंद्र सिंह धोनी को साथ लेकर प्रशासकीय समिति के चेयरमैन विनोद राय से मुलाकात की थी. सूत्रों की मानें, तो बोर्ड खिलाड़ियों की मांग को मान गया है. बावजूद इसके बहुत ही बड़ा गंभीर सवाल उठ रहा है. 

बहरहाल, बोर्ड खिलाड़ियों के वेतन में कितना भी इजाफा क्यों न करें, लेकिन सच यह है कि वे अपने 'वास्तविक और हक के वेतन' से मीलों दूर हैं. अगर वास्तव में बोर्ड अपने संविधान की शर्तों के हिसाब से खिलाड़ियों को वेतन दे, तो ए ग्रेड में शामिल प्रत्येक खिलाड़ी का सालाना वेतन आसानी से कम से कम पच्चीस करोड़ रुपये तो बनता ही है. बता दें कि बीसीसीआई अपने संविधान के अनुसार कुल सालाना राजस्व का 70 फीसदी हिस्सा घरेलू राज्य इकाइयों और इसका 26 फीसदी हिस्सा खिलाड़ियों को देता है. इस 26 में से 13 फीसदी इंटरनेशनल क्रिकेटरों और 10.6 हिस्सा घरेलू क्रिकेटरों को चला जाता है.

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वहीं बचा करीब 2.4 फीसदी राजस्व जूनियर क्रिकेटरों और महिला खिलाड़ियों को दिया जाता है. इसी तीस में से शेष चार फीसदी राजस्व स्टेडियमों के निर्माण, रख-रखाव और प्रशासकीय खर्चों में चला जाता है. इस फॉर्मूले को पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने साल 2004 में पूर्व क्रिकेटरों अनिल कुंबले और राहुल द्रविड़ से बातचीत के बाद ही हरी झंडी दिखाई थी.लेकिन साल 2008 में आईपीएल शुरू होने के बाद खिलाड़ियों की मांगों के साथ-साथ तेवर भी बदल गए. वहीं हाल ही में आईपीएल के चार साल के करीब 16,000 करोड़ रुपये में बिके प्रसारण अधिकार के बाद खिलाड़ियों की सोच अपने हिस्से को लेकर धीरे-धीरे और आक्रामक और मुखर हो चली है. लेकिन बोर्ड पूर्व में सैलरी को लेकर 'अपना ही खेल' खेलता रहा है.

बता दें कि खिलाड़ियों को दिए जाने वाला सालाना वेतन कुल राजस्व के दूसरे हिस्से 30 फीसदी (पहला हिस्सा 70 फीसदी) में से दिया जाता है, बोर्ड के कुल, या 100 फीसदी राजस्व में नहीं. वहीं, सबसे अहम बात यह है कि बोर्ड इस 26 फीसदी राजस्व में भी टीम इंडिया के इंटरनेशनल मैचों के मीडिया, या प्रसारण अधिकारों (टीवी, इंटरनेट और मोबाइल) से हासिल होने वाली कमाई को शामिल नहीं करता. जबकि बोर्ड को सबसे ज्यादा कमाई ही प्रसारण अधिकारों से होती है. ऐसे में आईपीएल के प्रसारण अधिकारों की बिक्री से मिले पैसे को खिलाड़ियों को दिए जाने वाले हिस्से में शामिल करने की बात ही स्वप्न सरीखी लगती है.

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वहीं, खिलाड़ियों को प्रायोजन अधिकार और आईसीसी प्रतियोगिताओं से मिली रकम में से भी बहुत ही मामूली हिस्सा मिलता है. लेकिन अब अब विराट एंड कंपनी चाहती है कि खिलाड़ियों को बोर्ड को प्रसारण अधिकारों से होने वाली मोटी कमाई से भी हिस्सा मिले. मतलब भारतीय टीम के प्रसारण अधिकार और आईपीएल दोनों के ही प्रसारणअधिकार से. ध्यान दिला दें कि टीम इंडिया के इंटरनेशनल मैच और आईपीएल दोनों के ही प्रसारण अधिकार स्टार स्पोर्ट्स के पास हैं. भारतीय टीम के मैचों के जुलाई 2012 से मार्च 2018 तक मीडिया अधिकार (टीवी, इंटरनेट और मोबाइल) के लिए स्टार स्पोर्ट्स ने करीब 37,00 करोड़ रुपये चुकाए थे.  इससे एक अंतरराष्ट्रीय मैच बीसीसीआई के लिए औसत 40 करोड़ रुपये लेकर आता है.  

इसका मतलब यह है कि हर साल सिर्फ टीम इंडिया के प्रसारण अधिकार से ही बीसीसीआई को करीब सवा छह सौ करोड़
रुपये आते हैं. इस रकम का 26 फीसदी करीब 160 करोड़ रुपये बैठता है. इस रकम का इंटरनेशनल खिलाड़ियों पर खर्च
किए जाने वाला 13 फीसदी यानी अस्सी करोड़ रुपये बैठता है. अब आप खुद ही सोचिए कि अगर सिर्फ यही 80 करोड़ रुपये इंटरनेशनल खिलाड़ियों को सालाना मिल जाएं, तो हर खिलाड़ी के हिस्से में कितनी ज्यादा रकम आएगी. वहीं, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब बीसीसीआई इन्हीं प्रसारण अधिकारों का हिस्सा खिलाड़ियों के साथ नहीं बांट रहा, तो वह आईपीएल के प्रसारण अधिकारों से मिली भारी भरकम 16,000 करोड़ रुपये की रकम को खिलाड़ियों के साथ साझा करने का बड़ा दिल कैसे दिखाएगा. आप देखिए कि 16000 करोड़ का 26 फीसदी 4160 करोड़ रुपये बैठता है.

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बीसीसीआई संविधान के अनुसार खिलाड़ियों के हक की इस रकम को सालाना आमदनी में तब्दील की जाए, तो यह करीब 832  करोड़ (इंटरनेशनल+घरेलू क्रिकेटर के लिए) रुपये बैठती है. इस रकम का मतलब यह है कि इस सालाना 26 फीसदी का 13 फीसदी मतलब टीम इंडिया के खिलाड़ियों पर खर्च की जाने वाली रकम 416 करोड़ रुपये हो जाती है. सोचिए कि अगर ये 416 करोड़ रुपये भारतीय टीम के तीनों ग्रेडों में शामिल खिलाड़ियों को बांटे जाएं, तो ग्रेड ए में शामिल शीर्ष आठ या दस खिलाड़ियों में से प्रत्येक के हिस्से में कम से कम 20  करोड़ रुपये तो आएंगे ही! बोर्ड के 'वास्तविक संविधान' के अनुसार इस पर उनका पूरा-पूरा हक भी बनता है!  वहीं, अगर इसमें टीम इंडिया के प्रसारण अधिकार और साल में खेले जाने वाले मैचों (प्रति टेस्ट-15 लाख, वनडे-6 लाख, टी-20-3 लाख रुपये) की फीस को को इस रकम में शामिल कर लिया जाए, तो यह सालाना फीस कम से कम 25 करोड़ रुपये हो जाती है.
 


एक तरह से यह रकम बीसीसीआई के संविधान (26 फीसदी) के अनुसार (प्रसारण अधिकारों को खिलाड़ियों के हिस्से में
शामिल करने पर, जो कि नहीं हैं) ही बनती है, लेकिन बोर्ड के अधिकारी ही इस बात का जवाब दे सकते हैं कि क्यों
'खास नियम' बनाकर सिर्फ प्रसारण अधिकारों से मिलने वाली रकम को 26 फीसदी से बाहर क्यों रखा गया है?

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