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Robin Singh: भारत का पहला 'विदेशी खिलाड़ी', डेब्यू के दो मैच के बाद हुआ टीम से बाहर, फिर 7 साल बाद वापसी कर मचाई खलबली

Indian Cricket Robin Singh , यह खिलाड़ी कपिल देव नहीं थे. भारतीय क्रिकेट टीम का यह खिलाड़ी पूरी तरह 'भारतीय' भी नहीं था.  लेकिन उसने टीम इंडिया में जो कमाल किया वह किसी धमाल से कम नहीं था.

Robin Singh: भारत का पहला 'विदेशी खिलाड़ी', डेब्यू के दो मैच के बाद हुआ टीम से बाहर, फिर 7 साल बाद वापसी कर मचाई खलबली
Robin Singh 

Robin Singh brilliant fielder of All time:  बात 90 के दशक की है. जब एक खिलाड़ी बड़ी तेजी से सिंगल चुराता था.फील्डिंग में बड़ा मुस्तैद था. फिटनेस इतनी बढ़िया थी कि मैदान पर खिलाड़ी की उछल कूद देखकर भारतीय फैंस हैरान रह जाते थे. वह तब भारतीय टीम का एकमात्र ऑलराउंडर भी था. यह खिलाड़ी कपिल देव नहीं थे. भारतीय क्रिकेट टीम का यह खिलाड़ी पूरी तरह 'भारतीय' भी नहीं था.  लेकिन उसने टीम इंडिया में जो कमाल किया वह किसी धमाल से कम नहीं था. इस खिलाड़ी का जन्म 1963 में कैरेबियाई धरती में त्रिनिदाद और टोबैगो द्वीप पर हुआ था. दोनों माता-पिता भारतीय थे और पूर्वज राजस्थान के अजमेर से ताल्लुक रखते थे.

19 साल की उम्र में यह लड़का तब भारत आया था. उन्हें मद्रास यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में पढ़ाई करनी थी. तब क्रिकेट का जुनून उन पर सवार हुआ था और लोकल टीम से खेलना शुरू किया. अपने हुनर, जुनून और फिटनेस ने इस खिलाड़ी को जल्द ही तमिलनाडु क्रिकेट टीम में जगह दिला दी थी. इन्होंने तमिलनाडु के लिए 1981-82 का सीजन खेलते हुए फर्स्ट क्लास डेब्यू किया अपनी हरफनमौला क्षमता से टीम में अहम जगह हासिल कर ली.  

क्रिकेट में इस खिलाड़ी की गाड़ी रफ्तार पकड़ चुकी थी. यह 1988 का रणजी सीजन था तब इस धुरंधर ने तमिलनाडु को रणजी ट्रॉफी जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. इसके एक साल बाद ही इस खिलाड़ी ने भारतीय वनडे टीम में जगह बनाने में कामयाबी हासिल की थी. दिलचस्प बात है कि यह मुकाबला भी कैरेबियाई धरती पर हुआ था. तब तक यह खिलाड़ी त्रिनिदाद के पासपोर्ट को अलविदा कह चुका था और भारतीय नागरिकता हासिल कर चुका था.

भारतीय टीम के यह खिलाड़ी थे रॉबिन सिंह (Robin Singh), जिन्होंने अपनी जीवटता के चलते अलग ही पहचान कायम की थी. 14 सितंबर को अपना 61वां जन्मदिन मना रहे रोबिन को इस मैच के बाद टीम इंडिया में फिर से एंट्री के लिए 7 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा था। उन्होंने फिर 33 साल की उम्र में 1996 के टाइटन कप में एंट्री की और भारतीय टीम के भी 'टाइटन' साबित हु. रोबिन बाएं हाथ के बल्लेबाज और दाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज की भूमिका में थे. रही-सही कसर फील्डिंग में पूरी कर देते थे, यानी एक पूरे हरफनमौला.

भारतीय टीम में तब भी नैसर्गिक प्रतिभा की कमी नहीं थी लेकिन रॉबिन सिंह की खासियत इससे हटकर थी.  वह परंपरागत भारतीय नहीं क्रिकेटर नहीं थे. उनके विकेटों की बीच की दौड़ तेज थी. जिनकी बेहतरीन फील्डिंग में 'डाइव' नाम का एक्स फैक्टर जुड़ा हुआ था.  जो बैटिंग में जी-जान लगा देते थे और कई बार हार के कगार से जीत को खोज लाते थे. उनकी मीडियम पेस भी सिर्फ खानापूर्ति से थोड़ी ज्यादा थी. अगर भारत का कोई पेसर नहीं खेल रहा है तो आप रोबिन सिंह पर ओपनिंग बॉलिंग के लिए भरोसा कर सकते थे, भले ही कुछ ही मैचों में सही.

रॉबिन की फील्डिंग ने तो वाकई में उनको समकालीन टीम साथियों से अलग खड़ा कर दिया था. उनकी डाइव ने भारतीय फील्डिंग में जो आयाम जोड़ा था, इसको लेकर भी कुछ थ्योरी भी दी गई थी.  जैसे कि रोबिन त्रिनिदाद में समुद्र के किनारे खेलते हुए बढ़े हुए थे. जहां पर डाइव करने से चोट लगने का डर नहीं लगता था. जबकि भारतीय खिलाड़ी सख्त मैदान पर खेलते हुए बढ़े हुए हैं जहां पर उछलकर छलांग लगाने के बाद गिरने से चोटिल होने का भय था। यह डर दिमाग में ज्यादा होता था.

रॉबिन ने इस डर को दूर करने में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी. रॉबिन के बाद हमने मोहम्मद कैफ और युवराज सिंह जैसे डाइव लगाने वाले फील्डर देखे। धोनी जैसा फिनिशर देखा और विराट कोहली जैसे विकेटों के बीच तेजी से भागने वाला खिलाड़ी देखा. रोबिन ने इस सब चीजों को तब शुरू कर दिया था जब भारतीय क्रिकेट अपने परंपरागत ढांचे में कहीं न कहीं कैद था. चाहे जरूरत के हिसाब से तेज खेलना हो, या परिस्थिति को समझते हुए समझबूझ से अपना विकेट बचाना हो, रॉबिन की मौजूदगी में भारतीय टीम के जीतने की उम्मीद बनी रहती थी. भारत के लिए 136 वनडे खेलने वाले रोबिन सिंह ने साल 2001 में अपना अंतिम मैच खेला था. उनको केवल एक ही टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला था. क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने कोचिंग में सफल करियर अपनाया है.

डेब्यू के बाद 7 साल का इंतजार: रॉबिन सिंह ने अक्टूबर 1989 में पोर्ट ऑफ स्पेन में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना वनडे डेब्यू किया, लेकिन दो मैच खेलने के बाद टीम से बाहर हो गए थे. लेकिन रॉबिन सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और सात साल बाद फिर से भारतीय क्रिकेट में वापसी की. साल 1996 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टाइटन कप में उन्हें वापस बुलाया गया. इसके बाद वे भारत की सीमित ओवरों की टीम का अहम हिस्सा बन गए थे. 

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