नई दिल्ली:
प्रूडेन्शियल वर्ल्ड कप, 1983 में भारतीय टीम 'अंडरडॉग' के रूप में शामिल हुई थी, और उनसे एक-दो मैच जीतने से ज़्यादा की उम्मीद किसी ने नहीं की थी। आज के प्रशंसकों को भले ही इस बात पर यकीन करना मुश्किल लगे, लेकिन उस वक्त वन-डे क्रिकेट में भारत, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया की छवि भी वैसी ही थी, जैसी ज़िम्बाब्वे की, जबकि वेस्ट इंडीज़ का दर्जा 'वन-डे क्रिकेट के बादशाह' का था, और इंग्लैंड काफी मजबूत टीम आंकी जाती थी। यहां तक कि पाकिस्तान और न्यूज़ीलैंड की टीमें भी भारत से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए जानी जाती थीं। टूर्नामेंट में कुल आठ टीमें शामिल हुई थीं, जिन्हें दो ग्रुपों में बांटा गया था। ग्रुप 'ए' में न्यूज़ीलैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका और इंग्लैंड की टीमें थीं, जबकि भारत को ग्रुप 'बी' में ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज़ और ज़िम्बाब्वे के साथ रखा गया था।
सो, ऐसे में जब अपने पहले ही लीग मैच में भारतीयों ने वेस्ट इंडीज़ को हरा दिया, तो प्रशंसकों की बांछें खिल गईं। इसके बाद दूसरे मैच में टीम इंडिया ने ज़िम्बाब्वे को भी हरा दिया, और इससे टीम का आत्मविश्वास बढ़ गया। कप्तान कपिल देव ने भी कुछ साल पहले एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, "उस जीत से हमें लगा, हम कुछ कर सकते हैं..."
अपने तीसरे और चौथे मैच में भारत को क्रमशः कंगारुओं, यानी ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ के हाथों हार का सामना करना पड़ा, और 18 जून को ज़िम्बाब्वे के खिलाफ खेला जाने वाला टूर्नामेंट का 20वां मैच अचानक भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गया।
दरअसल, लीग स्तर में तब तक ज़िम्बाब्वे और वेस्ट इंडीज़ से हार चुकी ऑस्ट्रेलियाई टीम एक मैच में भारत को हरा चुकी थी, और टीम इंडिया इसके अलावा एक-एक लीग मैच में ज़िम्बाब्वे और वेस्ट इंडीज़ को हरा चुकी थी, और एक लीग मैच में वेस्ट इंडीज़ से भी हार चुकी थी।
मैच में भारतीय एकादश में कप्तान कपिल देव और विकेटकीपर सैयद किरमानी के अलावा सुनील गावस्कर, कृष्णमाचारी श्रीकांत, मोहिन्दर अमरनाथ, संदीप पाटिल, यशपाल शर्मा, रोजर बिन्नी, रवि शास्त्री, मदनलाल तथा बलविन्दर संधू शामिल थे, जबकि ज़िम्बाब्वे की टीम में कप्तान डंकन फ्लेचर और विकेटकीपर डेव हॉटन के अलावा रॉबिन ब्राउन, ग्रांट पीटरसन, जैक हेरॉन, एंडी पायक्रॉफ्ट, केविन कुर्रन, इयान बुच्चार्ट, जेराल्ड पेकोवर, पीटर रॉसन तथा जॉन ट्रायकॉस शामिल थे।
भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया, जो पूरी तरह गलत साबित होता नज़र आने लगा। दरअसल, शून्य के स्कोर पर ही टीम ने 'सबसे मजबूत नींव' कहे जाने वाले सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर को खो दिया था, जो पीटर रॉसन की गेंद पर पगबाधा आउट हो गए। इसके बाद टीम इंडिया इस जोरदार झटके से उबर भी नहीं पाई थी, और दूसरे सलामी बल्लेबाज कृष्णमाचारी श्रीकांत भी खाता खोले बिना (तब तक टीम के खाते में कुल छह रन जुड़ पाए थे) केविन कुर्रन की गेंद पर इयान बुच्चार्ट को कैच थमाकर पैवेलियन लौट गए।
भारत का तीसरा विकेट भी कुल छह रन के स्कोर पर ही मोहिन्दर अमरनाथ के रूप में गिरा, जिन्हें 20 गेंदों में एक चौके की मदद से 5 रन बनाने के बाद रॉसन ने विकेट के पीछे डेव हॉटन के हाथों लपकवाया। भारत की हालत खस्ता होती जी रही थी, लेकिन 'बुरा सपना' अभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। अमरनाथ के लौटने के बाद टीम के स्कोरबोर्ड पर कुल तीन रन ही और जुड़ पाए थे कि संदीप पाटिल भी 10 गेंदों में एक रन बनाकर कुर्रन की गेंद पर विकेटकीपर हॉटन को कैच थमा बैठे। इसके बाद 17 के कुल योग पर यशपाल शर्मा आउट हुए, और उन्होंने भी रॉसन की गेंद पर डेव हॉटन को कैच दिया।
अब 17 रन के कुल योग पर भारत आधी टीम गंवा चुका था, और उस समय की टीम की छवि के लिहाज़ से प्रशंसक लगभग पूरी तरह उम्मीद खो बैठे थे, और ऐसे में कपिल देव ने वह पारी खेली, जो विश्वरिकॉर्ड तो भले ही सिर्फ एक साल तक रह पाई, लेकिन देश के क्रिकेट प्रशंसकों के ज़हन से आज तक नहीं उतरी है, जबकि उस पारी को देखने का सौभाग्य विरलों को ही मिला था, क्योंकि उस मैच का टीवी प्रसारण नहीं हुआ था। दरअसल, टूर्नामेंट का आधिकारिक ब्रॉडकास्टर बीबीसी उस दिन हड़ताल पर था, सो, वह मैच न प्रसारित किया गया, न रिकॉर्ड हुआ। यही नहीं, इस पारी का एक और महत्व है - यह किसी भी भारतीय द्वारा एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लगाया गया पहला शतक था।
खैर, उस दिन मैदान में बैठे दर्शकों को एक ऐसी पारी देखने के मिली, जो भले ही आज के रिकॉर्ड्स के मुकाबले बहुत बड़ी न लगती हो, लेकिन कम से कम उस काल में तो वह 'भूतो न भविष्यति' जैसी थी। कपिल देव ने उसके बाद रोजर बिन्नी के साथ छठे विकेट के लिए 60 रन की, रवि शास्त्री के साथ सातवें विकेट के लिए 1 रन की, आठवें विकेट के लिए मदनलाल के साथ 62 रन की और आखिरकार नवें विकेट के लिए विकेटकीपर सैयद किरमानी के साथ 126 रन की नाबाद साझीदारी की। वैसे, बता दें कि यह साझीदारी एक-दिवसीय वर्ल्ड कप के दौरान नवें विकेट के लिए आज तक भी सबसे बड़ी पार्टनरशिप है, और वन-डे क्रिकेट के पूरे इतिहास में नवें विकेट के लिए इनसे अधिक रन सिर्फ एक बार वर्ष 2010 में श्रीलंका बनाम ऑस्ट्रेलिया मैच में बने थे, यानी 27 साल तक वन-डे क्रिकेट में कपिल-किरमानी की यह पार्टनरशिप विश्वरिकॉर्ड बनी रही।
कपिल ने इस पारी में 'धुआंधार बल्लेबाज' के रूप में अपनी लोकप्रियता को अमली जामा पहनाया, और कुल 138 गेंदों का सामना कर 16 चौकों और छह गगनभेदी छक्कों की मदद से नाबाद 175 रन बनाए। इस पारी की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि एक ओर जहां भारतीय टीम का कोई भी खिलाड़ी ज़िम्बाब्वे के गेंदबाजों का सामना नहीं कर पाया, वहीं कपिल के लिए जैसे वे स्कूली बच्चे थे, जिनकी गेंदों में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के बल्लेबाज के खिलाफ कोई धार ही नहीं हो। कपिल के अलावा कोई भी बल्लेबाज कामयाब नहीं हो पाया, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टीम इंडिया की तरफ से कपिल देव 175 (नॉट आउट) के आंकड़े के साथ टॉप स्कोरर रहे, और उनके बाद सबसे ज़्यादा 24 नाबाद रन विकेटकीपर सैयद किरमानी ने बनाए। पारी खत्म होने पर टीम के स्कोरबोर्ड पर निर्धारित 60 ओवर (जी हां, उन दिनों वन-डे मैच 60-60 ओवर के ही हुआ करते थे) में आठ विकेट खोकर 266 रन दिखाई दे रहे थे।
भारत की ओर से सुनील गावस्कर और कृष्णमाचारी श्रीकांत शून्य पर और संदीप पाटिल और रवि शास्त्री 1-1 रन पर आउट हुए, जबकि मोहिन्दर अमरनाथ ने 5 तथा यशपाल शर्मा ने 9 रन बनाए। दहाई के आंकड़े को कपिल और किरमानी के अलावा कुल दो बल्लेबाजों ने छुआ, जिनमें से मदनलाल ने 17 और रोजर बिन्नी ने 22 रनों का योगदान दिया। ज़िम्बाब्वे की ओर से रॉसन और कुर्रन ने तीन-तीन तथा कप्तान डंकन फ्लेचर तथा जॉन ट्रायकॉस ने एक-एक भारतीय खिलाड़ी को पैवेलियन लौटाया।
बल्लेबाजी में बेहद शोचनीय प्रदर्शन के बावजूद कपिल की पारी की वजह से बेहद सम्मानित स्कोर तक पहुंचने की वजह से उत्साहित भारतीय गेंदबाजों ने जवाबी पारी में धारदार प्रदर्शन किया, और किसी भी विपक्षी बल्लेबाज को बहुत देर तक टिककर नहीं खेलने दिया। ज़िम्बाब्वे की तरफ से केविन कुर्रन सबसे कामयाब बल्लेबाज रहे, जिन्होंने 93 गेंदों में आठ चौकों की मदद से 73 रनों का योगदान दिया, और दूसरे नंबर पर रहे सलामी बल्लेबाज रॉबिन ब्राउन, जिन्होंने 66 गेंदों का सामना कर दो चौकों की मदद से 35 रन बनाए। इन दोनों बल्लेबाजों के अलावा कोई भी बल्लेबाज ज़्यादा देर नहीं टिक पाया, और सारी टीम 57 ओवर में कुल 235 रन बनाकर ऑल आउट हो गई।
भारत की ओर से मदनलाल ने 42 रन देकर तीन खिलाड़ियों को पैवेलियन लौटाया, जबकि रोजर बिन्नी ने 45 रन देकर दो खिलाड़ियों को आउट किया। इनके अलावा कप्तान कपिल देव, बलविन्दर संधू और मोहिन्दर अमरनाथ ने एक-एक विकेट चटकाया। ज़िम्बाब्वे के दो खिलाड़ी भारतीयों की चुस्त फील्डिंग का शिकार होकर रन आउट हुए।
इस मैच के बाद भारतीयों के हौसले आसमान छूने लगे, और उन्होंने अगले ही लीग मैच में ऑस्ट्रेलिया से हार का बदला लिया, और सेमीफाइनल में जगह पक्की कर ली। अब तक जोश से लबालब भर चुकी टीम इंडिया ने इसके बाद टूर्नामेंट के पहले सेमीफाइनल में मेजबान इंग्लैंड को भी पटखनी दे डाली, और अब मुकाबला 'बादशाह' से होना था, क्योंकि दूसरे सेमीफाइनल में वेस्ट इंडीज़ ने पाकिस्तान को हरा दिया। लेकिन उस वर्ल्ड कप के फाइनल में ऑल-राउंडरों से सजी टीम इंडिया ने वह कारनामा कर दिखाया, जिसकी कल्पना खुद भारतीयों ने भी नहीं की थी। धुरंधरों से भरी वेस्ट इंडीज़ टीम के सामने पहले बल्लेबाजी करते हुए जब भारतीय टीम 54.4 ओवर में कुल 183 रन पर ऑल आउट हो गई, तब भी सभी ने मान लिया था कि वेस्ट इंडीज़ की टीम लगातार तीसरी बार वर्ल्ड कप ट्रॉफी उठाने जा रही है, लेकिन 'कपिल की टीम' ने कुछ और ही सोचा था। 'हार नहीं मानेंगे' के जज़्बे के साथ भारतीयों ने गेंदबाजी शुरू की, और 'बादशाह' को 52 ओवर में कुल 140 रनों पर ढेर कर ट्रॉफी अपने कब्जे में कर ली।
कपिल देव टूर्नामेंट में भारत की ओर से सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। उन्होंने आठ मैचों की आठ पारियों में तीन बार नॉट आउट रहकर 60.60 की औसत से एक नाबाद शतक की मदद से कुल 303 रन बनाए थे, और टॉप स्कोरर्स की सूची में कुल मिलाकर पांचवें नंबर पर रहे थे...
टूर्नामेंट में 76.80 की औसत से सबसे ज़्यादा 384 रन सात मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर इंग्लैंड के डेविड गॉवर ने बनाए थे, जिनमें एक शतक और एक अर्द्धशतक शामिल था। सूची में नंबर दो पर वेस्ट इंडीज़ के विवियन रिचर्ड्स थे, जिन्होंने आठ मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर 73.40 की औसत के साथ 367 रन ठोके, जिनमें एक शतक और दो अर्द्धशतक शामिल थे। तीसरा स्थान कब्जाया था इंग्लैंड के ही ग्रीम फाउलर ने, जिन्होंने सात मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर 72 की औसत के साथ चार अर्द्धशतकों की मदद से 360 रन बनाए, और चौथा स्थान हासिल किया था पाकिस्तान के दिग्गज बल्लेबाज ज़हीर अब्बास ने, जिन्होंने सात मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर 62.60 की औसत के साथ एक शतक और दो अर्द्धशतकों की मदद से 313 रन बनाए।
जहां तक गेंदबाजी का सवाल है, भारत की जीत में बहुत बड़ा योगदान उनका भी रहा। आंकड़ों पर नज़र डालें, तो वर्ल्ड कप के सफलतम गेंदबाज भारत के रोजर बिन्नी थे, जिन्होंने आठ मैचों में 18.66 की औसत से 18 विकेट चटकाए थे। इस सूची में भारत के ही मदनलाल श्रीलंका के अशांता डिमेल के साथ संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रहे, और दोनों ने ही 17-17 विकेट हासिल किए थे। अशांता का औसत 15.58 का रहा था, जबकि मदनलाल ने 16.76 की औसत से इन खिलाड़ियों को आउट किया। चौथे नंबर पर न्यूज़ीलैंड के सर रिचर्ड हेडली रहे थे, जिन्होंने छह मैचों में 12.85 की औसत से 14 विकेट लिए।
पांचवें स्थान पर इंग्लैंड के विक मार्क थे, जिन्होंने सात मैचों में 18.92 की औसत से 12 विकेट लिए। भारतीय कप्तान कपिल देव वेस्ट इंडीज़ के मैल्कम मार्शल और माइकल होल्डिंग के साथ संयुक्त रूप से छठे स्थान पर रहे, और इन तीनों खिलाड़ियों ने 12-12 बल्लेबाजों को आउट किया। मैल्कम मार्शल का छह मैचों में औसत 14.58, माइकल होल्डिंग का सात मैचों में औसत 19.58 तथा कपिल देव का आठ मैचों में औसत 20.41 का रहा।
कपिल देव का सबसे बड़ी वन-डे पारी का यह रिकॉर्ड अगले साल वेस्ट इंडीज़ के धुआंधार बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स ने तोड़ा, जब उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ मैनचेस्टर में 170 गेंदों में नाबाद 189 रन ठोके, जिनमें 21 चौके और पांच छक्के शामिल थे। वैसे, कपिल का यह रिकॉर्ड अब तक बहुत बार टूट चुका है, और कई भारतीय और विदेशी बल्लेबाजों ने कपिल से बड़ी पारियां खेली हैं। इस समय वन-डे इंटरनेशनल क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी व्यक्तिगत पारियों की सूची में शीर्ष पर रोहित शर्मा बैठे हैं, जिन्होंने कोलकाता में 13 नवंबर, 2014 को श्रीलंका के खिलाफ 173 गेंदों में 33 चौकों और नौ छक्कों की मदद से 264 रन ठोके थे। रोहित शर्मा के अलावा भी कई भारतीय कपिल से कहीं आगे निकल चुके हैं, और इस सूची में वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, सौरव गांगुली और विराट कोहली भी कपिल से ऊपर हैं। इनके अतिरिक्त कई विदेशी बल्लेबाज भी कपिल को पीछे छोड़ चुके हैं, लेकिन भले ही कपिल देव वन-डे इंटरनेशनल क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी व्यक्तिगत पारियों की सूची में 23वें नंबर पर खिसक गए हैं, लेकिन आज भी भारतीय प्रशंसकों के दिलोदिमाग में टनब्रिज वेल्स में खेली गई कपिल की वह पारी हर बड़ी पारी से ज़्यादा बड़ी है।
सो, ऐसे में जब अपने पहले ही लीग मैच में भारतीयों ने वेस्ट इंडीज़ को हरा दिया, तो प्रशंसकों की बांछें खिल गईं। इसके बाद दूसरे मैच में टीम इंडिया ने ज़िम्बाब्वे को भी हरा दिया, और इससे टीम का आत्मविश्वास बढ़ गया। कप्तान कपिल देव ने भी कुछ साल पहले एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, "उस जीत से हमें लगा, हम कुछ कर सकते हैं..."
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मैच में भारतीय एकादश में कप्तान कपिल देव और विकेटकीपर सैयद किरमानी के अलावा सुनील गावस्कर, कृष्णमाचारी श्रीकांत, मोहिन्दर अमरनाथ, संदीप पाटिल, यशपाल शर्मा, रोजर बिन्नी, रवि शास्त्री, मदनलाल तथा बलविन्दर संधू शामिल थे, जबकि ज़िम्बाब्वे की टीम में कप्तान डंकन फ्लेचर और विकेटकीपर डेव हॉटन के अलावा रॉबिन ब्राउन, ग्रांट पीटरसन, जैक हेरॉन, एंडी पायक्रॉफ्ट, केविन कुर्रन, इयान बुच्चार्ट, जेराल्ड पेकोवर, पीटर रॉसन तथा जॉन ट्रायकॉस शामिल थे।
भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया, जो पूरी तरह गलत साबित होता नज़र आने लगा। दरअसल, शून्य के स्कोर पर ही टीम ने 'सबसे मजबूत नींव' कहे जाने वाले सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर को खो दिया था, जो पीटर रॉसन की गेंद पर पगबाधा आउट हो गए। इसके बाद टीम इंडिया इस जोरदार झटके से उबर भी नहीं पाई थी, और दूसरे सलामी बल्लेबाज कृष्णमाचारी श्रीकांत भी खाता खोले बिना (तब तक टीम के खाते में कुल छह रन जुड़ पाए थे) केविन कुर्रन की गेंद पर इयान बुच्चार्ट को कैच थमाकर पैवेलियन लौट गए।
भारत का तीसरा विकेट भी कुल छह रन के स्कोर पर ही मोहिन्दर अमरनाथ के रूप में गिरा, जिन्हें 20 गेंदों में एक चौके की मदद से 5 रन बनाने के बाद रॉसन ने विकेट के पीछे डेव हॉटन के हाथों लपकवाया। भारत की हालत खस्ता होती जी रही थी, लेकिन 'बुरा सपना' अभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। अमरनाथ के लौटने के बाद टीम के स्कोरबोर्ड पर कुल तीन रन ही और जुड़ पाए थे कि संदीप पाटिल भी 10 गेंदों में एक रन बनाकर कुर्रन की गेंद पर विकेटकीपर हॉटन को कैच थमा बैठे। इसके बाद 17 के कुल योग पर यशपाल शर्मा आउट हुए, और उन्होंने भी रॉसन की गेंद पर डेव हॉटन को कैच दिया।
अब 17 रन के कुल योग पर भारत आधी टीम गंवा चुका था, और उस समय की टीम की छवि के लिहाज़ से प्रशंसक लगभग पूरी तरह उम्मीद खो बैठे थे, और ऐसे में कपिल देव ने वह पारी खेली, जो विश्वरिकॉर्ड तो भले ही सिर्फ एक साल तक रह पाई, लेकिन देश के क्रिकेट प्रशंसकों के ज़हन से आज तक नहीं उतरी है, जबकि उस पारी को देखने का सौभाग्य विरलों को ही मिला था, क्योंकि उस मैच का टीवी प्रसारण नहीं हुआ था। दरअसल, टूर्नामेंट का आधिकारिक ब्रॉडकास्टर बीबीसी उस दिन हड़ताल पर था, सो, वह मैच न प्रसारित किया गया, न रिकॉर्ड हुआ। यही नहीं, इस पारी का एक और महत्व है - यह किसी भी भारतीय द्वारा एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लगाया गया पहला शतक था।
खैर, उस दिन मैदान में बैठे दर्शकों को एक ऐसी पारी देखने के मिली, जो भले ही आज के रिकॉर्ड्स के मुकाबले बहुत बड़ी न लगती हो, लेकिन कम से कम उस काल में तो वह 'भूतो न भविष्यति' जैसी थी। कपिल देव ने उसके बाद रोजर बिन्नी के साथ छठे विकेट के लिए 60 रन की, रवि शास्त्री के साथ सातवें विकेट के लिए 1 रन की, आठवें विकेट के लिए मदनलाल के साथ 62 रन की और आखिरकार नवें विकेट के लिए विकेटकीपर सैयद किरमानी के साथ 126 रन की नाबाद साझीदारी की। वैसे, बता दें कि यह साझीदारी एक-दिवसीय वर्ल्ड कप के दौरान नवें विकेट के लिए आज तक भी सबसे बड़ी पार्टनरशिप है, और वन-डे क्रिकेट के पूरे इतिहास में नवें विकेट के लिए इनसे अधिक रन सिर्फ एक बार वर्ष 2010 में श्रीलंका बनाम ऑस्ट्रेलिया मैच में बने थे, यानी 27 साल तक वन-डे क्रिकेट में कपिल-किरमानी की यह पार्टनरशिप विश्वरिकॉर्ड बनी रही।
कपिल ने इस पारी में 'धुआंधार बल्लेबाज' के रूप में अपनी लोकप्रियता को अमली जामा पहनाया, और कुल 138 गेंदों का सामना कर 16 चौकों और छह गगनभेदी छक्कों की मदद से नाबाद 175 रन बनाए। इस पारी की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि एक ओर जहां भारतीय टीम का कोई भी खिलाड़ी ज़िम्बाब्वे के गेंदबाजों का सामना नहीं कर पाया, वहीं कपिल के लिए जैसे वे स्कूली बच्चे थे, जिनकी गेंदों में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के बल्लेबाज के खिलाफ कोई धार ही नहीं हो। कपिल के अलावा कोई भी बल्लेबाज कामयाब नहीं हो पाया, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टीम इंडिया की तरफ से कपिल देव 175 (नॉट आउट) के आंकड़े के साथ टॉप स्कोरर रहे, और उनके बाद सबसे ज़्यादा 24 नाबाद रन विकेटकीपर सैयद किरमानी ने बनाए। पारी खत्म होने पर टीम के स्कोरबोर्ड पर निर्धारित 60 ओवर (जी हां, उन दिनों वन-डे मैच 60-60 ओवर के ही हुआ करते थे) में आठ विकेट खोकर 266 रन दिखाई दे रहे थे।
भारत की ओर से सुनील गावस्कर और कृष्णमाचारी श्रीकांत शून्य पर और संदीप पाटिल और रवि शास्त्री 1-1 रन पर आउट हुए, जबकि मोहिन्दर अमरनाथ ने 5 तथा यशपाल शर्मा ने 9 रन बनाए। दहाई के आंकड़े को कपिल और किरमानी के अलावा कुल दो बल्लेबाजों ने छुआ, जिनमें से मदनलाल ने 17 और रोजर बिन्नी ने 22 रनों का योगदान दिया। ज़िम्बाब्वे की ओर से रॉसन और कुर्रन ने तीन-तीन तथा कप्तान डंकन फ्लेचर तथा जॉन ट्रायकॉस ने एक-एक भारतीय खिलाड़ी को पैवेलियन लौटाया।
बल्लेबाजी में बेहद शोचनीय प्रदर्शन के बावजूद कपिल की पारी की वजह से बेहद सम्मानित स्कोर तक पहुंचने की वजह से उत्साहित भारतीय गेंदबाजों ने जवाबी पारी में धारदार प्रदर्शन किया, और किसी भी विपक्षी बल्लेबाज को बहुत देर तक टिककर नहीं खेलने दिया। ज़िम्बाब्वे की तरफ से केविन कुर्रन सबसे कामयाब बल्लेबाज रहे, जिन्होंने 93 गेंदों में आठ चौकों की मदद से 73 रनों का योगदान दिया, और दूसरे नंबर पर रहे सलामी बल्लेबाज रॉबिन ब्राउन, जिन्होंने 66 गेंदों का सामना कर दो चौकों की मदद से 35 रन बनाए। इन दोनों बल्लेबाजों के अलावा कोई भी बल्लेबाज ज़्यादा देर नहीं टिक पाया, और सारी टीम 57 ओवर में कुल 235 रन बनाकर ऑल आउट हो गई।
भारत की ओर से मदनलाल ने 42 रन देकर तीन खिलाड़ियों को पैवेलियन लौटाया, जबकि रोजर बिन्नी ने 45 रन देकर दो खिलाड़ियों को आउट किया। इनके अलावा कप्तान कपिल देव, बलविन्दर संधू और मोहिन्दर अमरनाथ ने एक-एक विकेट चटकाया। ज़िम्बाब्वे के दो खिलाड़ी भारतीयों की चुस्त फील्डिंग का शिकार होकर रन आउट हुए।
इस मैच के बाद भारतीयों के हौसले आसमान छूने लगे, और उन्होंने अगले ही लीग मैच में ऑस्ट्रेलिया से हार का बदला लिया, और सेमीफाइनल में जगह पक्की कर ली। अब तक जोश से लबालब भर चुकी टीम इंडिया ने इसके बाद टूर्नामेंट के पहले सेमीफाइनल में मेजबान इंग्लैंड को भी पटखनी दे डाली, और अब मुकाबला 'बादशाह' से होना था, क्योंकि दूसरे सेमीफाइनल में वेस्ट इंडीज़ ने पाकिस्तान को हरा दिया। लेकिन उस वर्ल्ड कप के फाइनल में ऑल-राउंडरों से सजी टीम इंडिया ने वह कारनामा कर दिखाया, जिसकी कल्पना खुद भारतीयों ने भी नहीं की थी। धुरंधरों से भरी वेस्ट इंडीज़ टीम के सामने पहले बल्लेबाजी करते हुए जब भारतीय टीम 54.4 ओवर में कुल 183 रन पर ऑल आउट हो गई, तब भी सभी ने मान लिया था कि वेस्ट इंडीज़ की टीम लगातार तीसरी बार वर्ल्ड कप ट्रॉफी उठाने जा रही है, लेकिन 'कपिल की टीम' ने कुछ और ही सोचा था। 'हार नहीं मानेंगे' के जज़्बे के साथ भारतीयों ने गेंदबाजी शुरू की, और 'बादशाह' को 52 ओवर में कुल 140 रनों पर ढेर कर ट्रॉफी अपने कब्जे में कर ली।
कपिल देव टूर्नामेंट में भारत की ओर से सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। उन्होंने आठ मैचों की आठ पारियों में तीन बार नॉट आउट रहकर 60.60 की औसत से एक नाबाद शतक की मदद से कुल 303 रन बनाए थे, और टॉप स्कोरर्स की सूची में कुल मिलाकर पांचवें नंबर पर रहे थे...
टूर्नामेंट में 76.80 की औसत से सबसे ज़्यादा 384 रन सात मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर इंग्लैंड के डेविड गॉवर ने बनाए थे, जिनमें एक शतक और एक अर्द्धशतक शामिल था। सूची में नंबर दो पर वेस्ट इंडीज़ के विवियन रिचर्ड्स थे, जिन्होंने आठ मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर 73.40 की औसत के साथ 367 रन ठोके, जिनमें एक शतक और दो अर्द्धशतक शामिल थे। तीसरा स्थान कब्जाया था इंग्लैंड के ही ग्रीम फाउलर ने, जिन्होंने सात मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर 72 की औसत के साथ चार अर्द्धशतकों की मदद से 360 रन बनाए, और चौथा स्थान हासिल किया था पाकिस्तान के दिग्गज बल्लेबाज ज़हीर अब्बास ने, जिन्होंने सात मैचों की सात पारियों में दो बार नाबाद रहकर 62.60 की औसत के साथ एक शतक और दो अर्द्धशतकों की मदद से 313 रन बनाए।
जहां तक गेंदबाजी का सवाल है, भारत की जीत में बहुत बड़ा योगदान उनका भी रहा। आंकड़ों पर नज़र डालें, तो वर्ल्ड कप के सफलतम गेंदबाज भारत के रोजर बिन्नी थे, जिन्होंने आठ मैचों में 18.66 की औसत से 18 विकेट चटकाए थे। इस सूची में भारत के ही मदनलाल श्रीलंका के अशांता डिमेल के साथ संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रहे, और दोनों ने ही 17-17 विकेट हासिल किए थे। अशांता का औसत 15.58 का रहा था, जबकि मदनलाल ने 16.76 की औसत से इन खिलाड़ियों को आउट किया। चौथे नंबर पर न्यूज़ीलैंड के सर रिचर्ड हेडली रहे थे, जिन्होंने छह मैचों में 12.85 की औसत से 14 विकेट लिए।
पांचवें स्थान पर इंग्लैंड के विक मार्क थे, जिन्होंने सात मैचों में 18.92 की औसत से 12 विकेट लिए। भारतीय कप्तान कपिल देव वेस्ट इंडीज़ के मैल्कम मार्शल और माइकल होल्डिंग के साथ संयुक्त रूप से छठे स्थान पर रहे, और इन तीनों खिलाड़ियों ने 12-12 बल्लेबाजों को आउट किया। मैल्कम मार्शल का छह मैचों में औसत 14.58, माइकल होल्डिंग का सात मैचों में औसत 19.58 तथा कपिल देव का आठ मैचों में औसत 20.41 का रहा।
कपिल देव का सबसे बड़ी वन-डे पारी का यह रिकॉर्ड अगले साल वेस्ट इंडीज़ के धुआंधार बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स ने तोड़ा, जब उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ मैनचेस्टर में 170 गेंदों में नाबाद 189 रन ठोके, जिनमें 21 चौके और पांच छक्के शामिल थे। वैसे, कपिल का यह रिकॉर्ड अब तक बहुत बार टूट चुका है, और कई भारतीय और विदेशी बल्लेबाजों ने कपिल से बड़ी पारियां खेली हैं। इस समय वन-डे इंटरनेशनल क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी व्यक्तिगत पारियों की सूची में शीर्ष पर रोहित शर्मा बैठे हैं, जिन्होंने कोलकाता में 13 नवंबर, 2014 को श्रीलंका के खिलाफ 173 गेंदों में 33 चौकों और नौ छक्कों की मदद से 264 रन ठोके थे। रोहित शर्मा के अलावा भी कई भारतीय कपिल से कहीं आगे निकल चुके हैं, और इस सूची में वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, सौरव गांगुली और विराट कोहली भी कपिल से ऊपर हैं। इनके अतिरिक्त कई विदेशी बल्लेबाज भी कपिल को पीछे छोड़ चुके हैं, लेकिन भले ही कपिल देव वन-डे इंटरनेशनल क्रिकेट के इतिहास की सबसे बड़ी व्यक्तिगत पारियों की सूची में 23वें नंबर पर खिसक गए हैं, लेकिन आज भी भारतीय प्रशंसकों के दिलोदिमाग में टनब्रिज वेल्स में खेली गई कपिल की वह पारी हर बड़ी पारी से ज़्यादा बड़ी है।
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