प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली.:
भारतीय क्रिकेट टीम से लेकर आईपीएल टीमों तक कोचों को मोटी तनख्वाह मिलती है और उनके काम से ग्लैमर भी जुड़ा है लेकिन प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कोचों की राह कोई फूलों की सेज नहीं है बल्कि इसमें कदम-कदम पर कांटे ही बिछे होते हैं. रणजी टीमों के कोच अपने काम को पूरी ईमानदारी से अंजाम देते हैं लेकिन कभी उन्हें श्रेय नहीं मिल पाता. इनमें से अधिकांश को पता है कि वे शायद राष्ट्रीय टीम के कोच कभी नहीं बन सकेंगे लेकिन सच्चाई को सहर्ष स्वीकार करके वे अपने काम में जुटे रहते हैं. इसमें उन्हें राज्य संघों के अधिकारियों के उदासीन और अक्खड़ रवैये का भी सामना करना पड़ता है.
घरेलू क्रिकेट के सबसे सफल कोचों में से एक के सनत कुमार के मार्गदर्शन में कर्नाटक , बड़ौदा और असम की टीमें खेल चुकी हैं. पिछले सत्र में उनके मार्गदर्शन में असम जैसी कमजोर मानी जाने वाली टीम रणजी सेमीफाइनल तक पहुंची. इसके लिये शाबासी देने की बजाय राज्य संघ के अधिकारियों ने उनके साथ बुरा सलूक किया.
कुमार ने कहा,‘घरेलू कोच के लिये अच्छे नतीजे काफी जरूरी हैं. असम को सेमीफाइनल तक पहुंचाने के बाद मुझे दूसरे राज्यों से तीन पेशकश थी लेकिन मैने खिलाड़ियों के कहने पर असम के साथ ही रहने का फैसला किया. मैं जब अपने अनुबंध के नवीनीकरण के लिये अधिकारियों के पास गया तो मुझे लगा कि तनख्वाह नहीं भी बढायेंगे तो पुरानी तनख्वाह तो देंगे लेकिन असम क्रिकेट संघ के एक अधिकारी ने कहा कि रणजी ट्राफी कोई पैमाना नहीं है. असल क्रिकेट वनडे और टी20 है. आप टीम का स्तर इन दो प्रारूपों में बेहतर करने के लिये क्या कर रहे हैं.’
कुमार ने कहा,‘मैं स्तब्ध रह गया क्योंकि शीर्ष राज्य हमेशा रणजी ट्रॉफी की तैयारी करते हैं. इसके बाद उन्होंने कम वेतन की पेशकश की जो मैने ठुकरा दी. मुझसे कहा गया कि वे संपर्क करेंगे लेकिन खिलाड़ियों ने बताया कि सुनील जोशी को मुख्य कोच बनाया गया है.’
उन्होंने कहा,‘मुझे सुनील के कोच बनने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे पहले बताना चाहिए था.मैं पेशेवर कोच हूं और यह मेरी आजीविका है. ईश्वर की कृपा से मुझे आंध्र रणजी टीम के साथ काम मिल गया क्योंकि उनके कोच निजी कारणों से अलग हो गए हैं.’ पेशेवर क्रिकेटरों के निजी कोच रहे प्रवीण आमरे ने कहा कि घरेलू टीमों को कोचिंग देना नीरस हो जाता है और लगातार नया सोचना पड़ता है.
रॉबिन उथप्पा, अजिंक्य रहाणे, श्रेयस अय्यर, दिनेश कार्तिक और नमन ओझा जैसे खिलाड़ियों को कोचिंग दे चुके आमरे ने कहा, ‘मैं पांच साल तक मुंबई रणजी टीम का कोच रहा और तीन बार खिताब जीता. मुझे पता था कि अब पाने के लिये कुछ नहीं है और भारतीय टीम का कोच बनना संभव नहीं. मैं तीन साल घर बैठा और बल्लेबाजी पर अपने तकनीकी ज्ञान में इजाफा किया.’ उन्होंने कहा,‘इसके बाद मैने निजी कोचिंग देना शुरू किया जो टीम की कोचिंग से एकदम अलग है. मुझे पता था कि मैं कुछ अलग कर रहा हूं और मुझे इसमें मजा आ रहा है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
घरेलू क्रिकेट के सबसे सफल कोचों में से एक के सनत कुमार के मार्गदर्शन में कर्नाटक , बड़ौदा और असम की टीमें खेल चुकी हैं. पिछले सत्र में उनके मार्गदर्शन में असम जैसी कमजोर मानी जाने वाली टीम रणजी सेमीफाइनल तक पहुंची. इसके लिये शाबासी देने की बजाय राज्य संघ के अधिकारियों ने उनके साथ बुरा सलूक किया.
कुमार ने कहा,‘घरेलू कोच के लिये अच्छे नतीजे काफी जरूरी हैं. असम को सेमीफाइनल तक पहुंचाने के बाद मुझे दूसरे राज्यों से तीन पेशकश थी लेकिन मैने खिलाड़ियों के कहने पर असम के साथ ही रहने का फैसला किया. मैं जब अपने अनुबंध के नवीनीकरण के लिये अधिकारियों के पास गया तो मुझे लगा कि तनख्वाह नहीं भी बढायेंगे तो पुरानी तनख्वाह तो देंगे लेकिन असम क्रिकेट संघ के एक अधिकारी ने कहा कि रणजी ट्राफी कोई पैमाना नहीं है. असल क्रिकेट वनडे और टी20 है. आप टीम का स्तर इन दो प्रारूपों में बेहतर करने के लिये क्या कर रहे हैं.’
कुमार ने कहा,‘मैं स्तब्ध रह गया क्योंकि शीर्ष राज्य हमेशा रणजी ट्रॉफी की तैयारी करते हैं. इसके बाद उन्होंने कम वेतन की पेशकश की जो मैने ठुकरा दी. मुझसे कहा गया कि वे संपर्क करेंगे लेकिन खिलाड़ियों ने बताया कि सुनील जोशी को मुख्य कोच बनाया गया है.’
उन्होंने कहा,‘मुझे सुनील के कोच बनने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे पहले बताना चाहिए था.मैं पेशेवर कोच हूं और यह मेरी आजीविका है. ईश्वर की कृपा से मुझे आंध्र रणजी टीम के साथ काम मिल गया क्योंकि उनके कोच निजी कारणों से अलग हो गए हैं.’ पेशेवर क्रिकेटरों के निजी कोच रहे प्रवीण आमरे ने कहा कि घरेलू टीमों को कोचिंग देना नीरस हो जाता है और लगातार नया सोचना पड़ता है.
रॉबिन उथप्पा, अजिंक्य रहाणे, श्रेयस अय्यर, दिनेश कार्तिक और नमन ओझा जैसे खिलाड़ियों को कोचिंग दे चुके आमरे ने कहा, ‘मैं पांच साल तक मुंबई रणजी टीम का कोच रहा और तीन बार खिताब जीता. मुझे पता था कि अब पाने के लिये कुछ नहीं है और भारतीय टीम का कोच बनना संभव नहीं. मैं तीन साल घर बैठा और बल्लेबाजी पर अपने तकनीकी ज्ञान में इजाफा किया.’ उन्होंने कहा,‘इसके बाद मैने निजी कोचिंग देना शुरू किया जो टीम की कोचिंग से एकदम अलग है. मुझे पता था कि मैं कुछ अलग कर रहा हूं और मुझे इसमें मजा आ रहा है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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