महेंद्र सिंह धोनी ने वनडे की कप्तानी से बुधवार को इस्तीफा दे दिया (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
यदि पहले मैचों के दौरान लिए गए फैसलों से इतर कप्तानी छोड़ने के बारे में बात करें, तो इसमें भी महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) कहीं से कमतर नहीं रहे. उन्होंने जब बुधवार को कप्तानी छोड़ने की घोषणा की, तो थोड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि माना जा रहा था कि वह चैंपियन्स ट्रॉफी के बाद इस पर कोई फैसला ले सकते हैं, लेकिन उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप ही फैसला लिया और अचानक ही वनडे और टी-20 कप्तानी छोड़कर एक बार फिर सबको गलत साबित कर दिया. इससे पहले 2014 के अंत में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सीरीज के अंतिम टेस्ट से पहले ही टेस्ट कप्तानी छोड़ने की घोषणा करके सबको हैरान कर दिया था. मतलब चौंकने वाले फैसले तो उनके मिजाज में ही हैं...
1. टी-20 वर्ल्ड कप, 2007 - फाइनल मैच- मिला एक मैच का हीरो
इस टूर्नामेंट में पहली बार टीम इंडिया की कप्तानी कर रहे एमएस धोनी ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही कई चौंकाने वाले फैसले लिए थे और उनकी चर्चा जोरों पर थी. टीम इंडिया फाइनल में पाकिस्तान के सामने थी और जीत मुश्किल नजर आ रही थी, क्योंकि मिस्बाह उल हक (Misbah-Ul-Haq) जबर्दस्त बल्लेबाजी कर रहे थे. भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 157 रन बनाए थे और अब पाकिस्तान को जीत के लिए 13 रन चाहिए थे, जो टी-20 के लिहाज से एक ओवर के लिए कतई मुश्किल नहीं था और फिर जब सामने मिस्बाह हों, तो हार तय थी, लेकिन तभी टीम इंडिया के कप्तान एमएस धोनी ने सबको हैरत में डाल दिया. गेंद नवोदित जोगिंदर शर्मा (Joginder Sharma) के हाथों में थी, जबकि सबने सोचा था कि कोई अनुभवी गेंदबाज गेंदबाजी करेगा.
एमएस धोनी ने एक फैसले से अनजान से जोगिंदर शर्मा को हीरो बना दिया.
जोगिंदर शर्मा के हाथ में गेंद आते ही लोग सोचने लगे कि अब तो मैच हाथ से गया. टीम इंडिया को जीत के लिए एक विकेट चाहिए था, लेकिन मिस्बाह के सामने रहते यह नामुमकिन लग रहा था, लेकिन जोगिंदर ने कप्तान धोनी के फैसले को सही साबित करते हुए तीसरी ही गेंद पर मिस्बाह को चलता कर दिया और टीम इंडिया ने इतिहास के पहले टी-20 वर्ल्ड कप पर कब्जा कर लिया. (महेंद्र सिंह धोनी ने भारतीय वन-डे और टी-20 टीम की कप्तानी छोड़ी, BCCI को दी सूचना)
2. उखाड़ना था विकेट, तो चुना उथप्पा और सहवाग को
एमएस धोनी (MS Dhoni) की कप्तानी के बारे में बात करते हुए उनके साथी मध्यम गति के तेज गेंदबाज आरपी सिंह ने कहा था कि यदि आप यह सोचते हैं कि धोनी कोई फैसला यूं ही ले लेते हैं, तो आप गलत हैं. धोनी मैच के दौरान और उससे पहले भी कई योजनाओं पर काम करते रहते हैं, जैसे कि उन्होंने 2007 के वर्ल्ड टी-20 में बॉल आउट के नियम को लेकर किया था. वास्तव में बॉल आउट होने की कल्पना तो किसी ने नहीं की थी, लेकिन धोनी ने इसके लिए नियमित अभ्यास के बाद लगभग हर दिन इसका अलग से अभ्यास कराया था और उसमें वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा सबसे अधिक बार विकेट उखाड़ रहे थे. एमएस धोनी ने टी-20 के अलावा टीम इंडिया को दूसरा वनडे वर्ल्ड कप भी दिलाया था.
आखिर में लीग राउंड में जब पाकिस्तान के खिलाफ टीम इंडिया का मैच अप्रत्याशित रूप से टाई हो गया और फैसला बॉल आउट से हुआ, तो धोनी ने इसके लिए हरभजन सिंह के साथ ही वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा जैसे गेंदबाजों पर दांव खेल दिया, जबकि पाक के कप्तान ने नियमित गेंदबाज चुने, जिन्होंने विकेट मिस कर दिया. बॉल आउट में गेंदबाज को एक ही बार में गेंद से विकेट गिराना था. फिर क्या था टीम इंडिया ने अहम मैच जीत लिया.
3. ऑस्ट्रेलिया में इतिहास रचने के लिए मांगी युवा टीम
आमतौर पर कोई भी कप्तान ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े दौरे में अनुभवी खिलाड़ियों से भरी टीम चाहता है, क्योंकि वहां खेलना आसान नहीं रहता, लेकिन टीम इंडिया के लिए 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप जीत चुके धोनी ने साल 2008 में ट्राई सीरीज के लिए चयनकर्ताओं से युवा खिलाड़ियों की मांग की. उस सीरीज में रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, प्रवीण कुमार, रॉबिन उथप्पा जैसे खिलाड़ियों पर एमएस धोनी ने भरोसा जताया था और टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया में बड़ी सफलता हासिल कर ली थी. टीम इंडिया ने तीन फाइनल वाले मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया को पहले दोनों फाइनल में हराकर टूर्नामेंट जीत लिया था. मध्यम गति के तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार तो मैन ऑफ द सीरीज बने थे.
4. फॉर्म में चल रहे युवराज से पहले आना
2007 के टी-20 वर्ल्ड कप के बाद भी कई मौकों पर एमएस धोनी ने कई अहम फैसले लिए थे, लेकिन 2011 के वनडे वर्ल्ड कप फाइनल में उन्होंने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag) और सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) के आउट होने पर खुद को बैटिंग ऑर्डर में प्रमोट कर लिया और शानदार फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह की जगह खुद बैटिंग करने के लिए मैदान पर आ गए. फैसला इसलिए भी चौंकाने वाला था, क्योंकि धोनी बहुत अच्छे फॉर्म में नहीं थे और टूर्नामेंट में कुछ खास रन नहीं बनाए थे, लेकिन अनहोनी को होनी करने वाले धोनी ने गौतम गंभीर के साथ मैच विजयी साझेदारी करके मैच को टीम इंडिया की ओर मोड़ दिया और श्रीलंका के खिलाफ धोनी ने वर्ल्ड कप विजयी छक्का लगाकर इतिहास रच दिया. उनकी इस पारी से टीम इंडिया ने 28 साल बाद वनडे वर्ल्ड कप फिर जीता था. धोनी ने पूरे टूर्नामेंट में युवराज को नियमित गेंदबाज की तरह आजमाया था और युवी ने 9 मैचों में 75 ओवर डाले और 15 विकेट लिए थे. 2011 वर्ल्ड कप में एमएस धोनी ने शानदार छक्के से जीत दिलाई थी (फाइल फोटो)
5. जमकर पिट रहे ईशांत शर्मा को थमा दी गेंद...
टी-20 और वनडे वर्ल्ड कप दिलवा चुके एमएस धोनी के लिए चौंकाने वाले फैसले लेना अब नई बात नहीं रह गई थी, लेकिन उन्होंने प्रयोग हमेशा जारी रखा. 2013 की चैंपियन्स ट्रॉफी में आईसीसी का एक और बड़ा टूर्नामेंट जीतने की दहलीज पर खड़ी टीम इंडिया के फैन एक बार फिर सकते में थे. टीम इंडिया ने इंग्लैंड को सामने जीत के लिए 130 रन का लक्ष्य रखा था. यह मैच बारिश के कारण टी-20 जैसे मैच में बदल गया था. इंग्लैंड को जीत के लिए अंतिम तीन ओवरों में 28 रन चाहिए थे. तभी धोनी ने तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा को गेंद थमा दी, जो इस मैच में जमकर रन लुटा चुके थे (तीन ओवर 27 रन). कुछ लोग तो धोनी के फैसले की आलोचना भी करने लगे थे, लेकिन एक बार फिर धोनी सही साबित हुए और ईशांत ने एक ही ओवर में जमकर खेल रहे इयोन मॉर्गन (33) और रवि बोपारा (30) को आउट करके मैच टीम इंडिया की ओर मोड़ दिया. टीम इंडिया ने मैच 5 रन से जीता और धोनी के माथे पर आईसीसी के तीनों अहम टूर्नामेंट जीतने का तिलक लग गया. ईशांत शर्मा की जमकर पिटाई होने के बावजूद एमएस धोनी ने उन पर भरोसा बनाए रखा (फाइल फोटो)
महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी के दौरान ऐसे कई आए जब उन्होंने लीक से हटकर फैसले लेकर विशेषज्ञों और प्रशंसकों को हैरान किया. उनके फैसले की आलोचना भी हुई. ज्यादातर बार वह सही साबित हुए, लेकिन कुछ बार दांव उल्टे भी पड़े. फिर भी समग्र रूप से देखा जाए, तो क्रिकेट के मैदान पर ऐसे फैसले लेने के लिए जुदा सोच और साहस की जरूरत होती है, जो धोनी जैसा महारथी ही कर सकता था.
महेंद्र सिंह धोनी ने टीम इंडिया की वनडे और टी-20 कप्तानी से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि एक खिलाड़ी के रूप में हम उन्हें अब भी मैदान पर धमाल मचाते देख पाएंगे, लेकिन वह भी कब तक कहना मुश्किल है. एमएस धोनी (MS Dhoni) ने अपनी कप्तानी में टीम इंडिया को नई ऊंचाइयां दीं और आईसीसी का ऐसा कोई भी टूर्नामेंट नहीं रहा जिसे उन्होंने टीम को न दिलाया हो. बल्कि ऐसा करने वाले वह दुनिया के पहले कप्तान भी हैं. संकट की घड़ी में भी मैदान पर एकदम कूल रहने वाले धोनी की 'कूल कप्तानी' अब हमें देखने को नहीं मिलेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि नए संभावित कप्तान विराट कोहली का अंदाज उनके बिल्कुल उलट आक्रामक और जोशीला है और वह अपनी भावनाओं को मैदान पर ही जाहिर कर देते हैं. हम आपको एमएस धोनी की कप्तानी में जीते गए अहम टूर्नामेंटों के दौरान लिए गए 5 चौंकाने वाले बड़े फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं. ये वह फैसले हैं, जिनसे टीम इंडिया ने जीत का परचम लहराया...
यदि पहले मैचों के दौरान लिए गए फैसलों से इतर कप्तानी छोड़ने के बारे में बात करें, तो इसमें भी महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) कहीं से कमतर नहीं रहे. उन्होंने जब बुधवार को कप्तानी छोड़ने की घोषणा की, तो थोड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि माना जा रहा था कि वह चैंपियन्स ट्रॉफी के बाद इस पर कोई फैसला ले सकते हैं, लेकिन उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप ही फैसला लिया और अचानक ही वनडे और टी-20 कप्तानी छोड़कर एक बार फिर सबको गलत साबित कर दिया. इससे पहले 2014 के अंत में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सीरीज के अंतिम टेस्ट से पहले ही टेस्ट कप्तानी छोड़ने की घोषणा करके सबको हैरान कर दिया था. मतलब चौंकने वाले फैसले तो उनके मिजाज में ही हैं...
1. टी-20 वर्ल्ड कप, 2007 - फाइनल मैच- मिला एक मैच का हीरो
इस टूर्नामेंट में पहली बार टीम इंडिया की कप्तानी कर रहे एमएस धोनी ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही कई चौंकाने वाले फैसले लिए थे और उनकी चर्चा जोरों पर थी. टीम इंडिया फाइनल में पाकिस्तान के सामने थी और जीत मुश्किल नजर आ रही थी, क्योंकि मिस्बाह उल हक (Misbah-Ul-Haq) जबर्दस्त बल्लेबाजी कर रहे थे. भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 157 रन बनाए थे और अब पाकिस्तान को जीत के लिए 13 रन चाहिए थे, जो टी-20 के लिहाज से एक ओवर के लिए कतई मुश्किल नहीं था और फिर जब सामने मिस्बाह हों, तो हार तय थी, लेकिन तभी टीम इंडिया के कप्तान एमएस धोनी ने सबको हैरत में डाल दिया. गेंद नवोदित जोगिंदर शर्मा (Joginder Sharma) के हाथों में थी, जबकि सबने सोचा था कि कोई अनुभवी गेंदबाज गेंदबाजी करेगा.
एमएस धोनी ने एक फैसले से अनजान से जोगिंदर शर्मा को हीरो बना दिया.
जोगिंदर शर्मा के हाथ में गेंद आते ही लोग सोचने लगे कि अब तो मैच हाथ से गया. टीम इंडिया को जीत के लिए एक विकेट चाहिए था, लेकिन मिस्बाह के सामने रहते यह नामुमकिन लग रहा था, लेकिन जोगिंदर ने कप्तान धोनी के फैसले को सही साबित करते हुए तीसरी ही गेंद पर मिस्बाह को चलता कर दिया और टीम इंडिया ने इतिहास के पहले टी-20 वर्ल्ड कप पर कब्जा कर लिया. (महेंद्र सिंह धोनी ने भारतीय वन-डे और टी-20 टीम की कप्तानी छोड़ी, BCCI को दी सूचना)
2. उखाड़ना था विकेट, तो चुना उथप्पा और सहवाग को
एमएस धोनी (MS Dhoni) की कप्तानी के बारे में बात करते हुए उनके साथी मध्यम गति के तेज गेंदबाज आरपी सिंह ने कहा था कि यदि आप यह सोचते हैं कि धोनी कोई फैसला यूं ही ले लेते हैं, तो आप गलत हैं. धोनी मैच के दौरान और उससे पहले भी कई योजनाओं पर काम करते रहते हैं, जैसे कि उन्होंने 2007 के वर्ल्ड टी-20 में बॉल आउट के नियम को लेकर किया था. वास्तव में बॉल आउट होने की कल्पना तो किसी ने नहीं की थी, लेकिन धोनी ने इसके लिए नियमित अभ्यास के बाद लगभग हर दिन इसका अलग से अभ्यास कराया था और उसमें वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा सबसे अधिक बार विकेट उखाड़ रहे थे.
आखिर में लीग राउंड में जब पाकिस्तान के खिलाफ टीम इंडिया का मैच अप्रत्याशित रूप से टाई हो गया और फैसला बॉल आउट से हुआ, तो धोनी ने इसके लिए हरभजन सिंह के साथ ही वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा जैसे गेंदबाजों पर दांव खेल दिया, जबकि पाक के कप्तान ने नियमित गेंदबाज चुने, जिन्होंने विकेट मिस कर दिया. बॉल आउट में गेंदबाज को एक ही बार में गेंद से विकेट गिराना था. फिर क्या था टीम इंडिया ने अहम मैच जीत लिया.
3. ऑस्ट्रेलिया में इतिहास रचने के लिए मांगी युवा टीम
आमतौर पर कोई भी कप्तान ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े दौरे में अनुभवी खिलाड़ियों से भरी टीम चाहता है, क्योंकि वहां खेलना आसान नहीं रहता, लेकिन टीम इंडिया के लिए 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप जीत चुके धोनी ने साल 2008 में ट्राई सीरीज के लिए चयनकर्ताओं से युवा खिलाड़ियों की मांग की. उस सीरीज में रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, प्रवीण कुमार, रॉबिन उथप्पा जैसे खिलाड़ियों पर एमएस धोनी ने भरोसा जताया था और टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया में बड़ी सफलता हासिल कर ली थी. टीम इंडिया ने तीन फाइनल वाले मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया को पहले दोनों फाइनल में हराकर टूर्नामेंट जीत लिया था. मध्यम गति के तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार तो मैन ऑफ द सीरीज बने थे.
एमएस धोनी युवा खिलाड़ियों का मुश्किल दौर में भी पूरा बचाव करते रहे (फोटो: AFP)
4. फॉर्म में चल रहे युवराज से पहले आना
2007 के टी-20 वर्ल्ड कप के बाद भी कई मौकों पर एमएस धोनी ने कई अहम फैसले लिए थे, लेकिन 2011 के वनडे वर्ल्ड कप फाइनल में उन्होंने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag) और सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) के आउट होने पर खुद को बैटिंग ऑर्डर में प्रमोट कर लिया और शानदार फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह की जगह खुद बैटिंग करने के लिए मैदान पर आ गए. फैसला इसलिए भी चौंकाने वाला था, क्योंकि धोनी बहुत अच्छे फॉर्म में नहीं थे और टूर्नामेंट में कुछ खास रन नहीं बनाए थे, लेकिन अनहोनी को होनी करने वाले धोनी ने गौतम गंभीर के साथ मैच विजयी साझेदारी करके मैच को टीम इंडिया की ओर मोड़ दिया और श्रीलंका के खिलाफ धोनी ने वर्ल्ड कप विजयी छक्का लगाकर इतिहास रच दिया. उनकी इस पारी से टीम इंडिया ने 28 साल बाद वनडे वर्ल्ड कप फिर जीता था. धोनी ने पूरे टूर्नामेंट में युवराज को नियमित गेंदबाज की तरह आजमाया था और युवी ने 9 मैचों में 75 ओवर डाले और 15 विकेट लिए थे.
5. जमकर पिट रहे ईशांत शर्मा को थमा दी गेंद...
टी-20 और वनडे वर्ल्ड कप दिलवा चुके एमएस धोनी के लिए चौंकाने वाले फैसले लेना अब नई बात नहीं रह गई थी, लेकिन उन्होंने प्रयोग हमेशा जारी रखा. 2013 की चैंपियन्स ट्रॉफी में आईसीसी का एक और बड़ा टूर्नामेंट जीतने की दहलीज पर खड़ी टीम इंडिया के फैन एक बार फिर सकते में थे. टीम इंडिया ने इंग्लैंड को सामने जीत के लिए 130 रन का लक्ष्य रखा था. यह मैच बारिश के कारण टी-20 जैसे मैच में बदल गया था. इंग्लैंड को जीत के लिए अंतिम तीन ओवरों में 28 रन चाहिए थे. तभी धोनी ने तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा को गेंद थमा दी, जो इस मैच में जमकर रन लुटा चुके थे (तीन ओवर 27 रन). कुछ लोग तो धोनी के फैसले की आलोचना भी करने लगे थे, लेकिन एक बार फिर धोनी सही साबित हुए और ईशांत ने एक ही ओवर में जमकर खेल रहे इयोन मॉर्गन (33) और रवि बोपारा (30) को आउट करके मैच टीम इंडिया की ओर मोड़ दिया. टीम इंडिया ने मैच 5 रन से जीता और धोनी के माथे पर आईसीसी के तीनों अहम टूर्नामेंट जीतने का तिलक लग गया.
महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी के दौरान ऐसे कई आए जब उन्होंने लीक से हटकर फैसले लेकर विशेषज्ञों और प्रशंसकों को हैरान किया. उनके फैसले की आलोचना भी हुई. ज्यादातर बार वह सही साबित हुए, लेकिन कुछ बार दांव उल्टे भी पड़े. फिर भी समग्र रूप से देखा जाए, तो क्रिकेट के मैदान पर ऐसे फैसले लेने के लिए जुदा सोच और साहस की जरूरत होती है, जो धोनी जैसा महारथी ही कर सकता था.
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