फ़ीनिक्स की तरह दस साल बाद लौट आए हैं जगमोहन डालमिया। वही डालमिया जो 2005 में शरद पवार गुट से बुरी तरह हारने के बाद हाशिए पर चले गए।
अगले साल 2006 में उन पर आर्थिक घपलों का आरोप लगाकर बोर्ड से ही बाहर कर दिया गया। हालांकि 2007 में उन्हें आदालत ने सारे आरोपों से मुक्त कर दिया। बावजूद इसके बोर्ड में उनका दबदबा कम होता गया और बढ़ती उम्र के साथ लगा कि वे भूतपूर्व के टैग को अपने नाम से हटा नहीं पाएंगे।
जगमोहन डालनिया 1979 में बीसीसीआई से जुड़े। 1983 में कोषाध्यक्ष बने। 1996 में आईसीसी के अध्यक्ष बनने की नाकाम कोशिश की। 1997 में 3 साल के लिए आईसीसी के अध्यक्ष चुन लिए गए। 2001 से 2004 तक वे बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे। 1987 और 1996 वर्ल्ड कप की मेज़बानी भारतीय उपमहाद्वीप को दिलाने में डालमिया की अहम भूमिका रही थी।
बीसीसीआई में तीन दशक तक शक्तिशाली रहा शख्स आसानी से मैदान छोड़ने वालों में से नहीं था। 2008 में उन्होंने बंगाल क्रिकेट संघ के अध्यक्ष के रूप में बोर्ड में वापसी की।
वापसी के बाद वे बोर्ड के खामोश सदस्य बने रहे। इसका इनाम उन्हें मिला। 2013 में आईपीएल स्पॉट फ़िक्सिंग विवाद में उन्हें 2 महीने के लिए अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया। पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम से 74 साल के डालमिया को अहसास हो गया था कि एक बार फिर अध्यक्ष पद उनके पास आने वाला है।
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